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भक्ति

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एक व्यक्ति ने जब एक संत के बारे में सुना तो वह पाकिस्तान से रुहानी इत्र लेकर वृन्दवन आया. इत्र सबसे महगा था जिस समय वह संत से मिलने गया उस समय वे भावराज में थे आँखे बंद करे भगवान राधा-कृष्ण जी के होली उत्सव में लीला में थे. उस व्यक्ति ने देखा की ये तो ध्यान में है . तो उसने वह इत्र की शीशी उनके पास में रख दी और पास में बैठकर, संत की समाधी खुलने का इंतजार करने लगा. तभी संत ने भावराज में देखा राधा जी अपनी पिचकारी भरकर कृष्ण जी के पास आई, तुंरत कृष्ण जी ने राधा जी के ऊपर पिचकारी चला दी. राधा जी सिर से पैर तक रंग में नहा गई अब तुरंत राधा जी ने अपनी पिचकारी कृष्ण जी पर चला दी पर राधा जी की पिचकारी खाली थी.संत को लगा की राधा जी तो रंग डाल ही नहीं पा रही है संत ने तुरंत वह इत्र की शीशी खोली और राधा जी की पिचकारी में डाल दी और तुरंत राधा जी ने पिचकारी कृष्ण जी पर चला दी, पर उस भक्त को वह इत्र नीचे जमीन पर गिरता दिखाई दिया उसने सोचा में इतने दूर से इतना महगा इत्र लेकर आया था पर इन्होने तो इसे बिना देखे ही सारा का सारा रेत में गिरा दिया पर वह कुछ भी ना बोल सका थोड़ी देर बाद संत ने आँखे खोली उस

श्री हनुमान चालीसा

श्री हनुमान चालीसा श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारी बरनौ  रघुबर  बिमल जसु, जो दायकू फल चारि बुध्दि हीन तनु जानिके सुमिरौ पवन कुमार | बल बुध्दि विद्या देहु मोंही , हरहु कलेश विकार ||              चोपाई जय हनुमान ज्ञान गुन सागर | जय कपीस तिहुं लोक उजागर || राम दूत अतुलित बल धामा | अंजनी पुत्र पवन सुत नामा || महाबीर बिक्रम बजरंगी| कुमति निवार सुमति के संगी || कंचन बरन बिराज सुबेसा | कानन कुण्डल कुंचित केसा || हाथ वज्र औ ध्वजा विराजे| काँधे मूंज जनेऊ साजे|| संकर सुवन केसरी नंदन | तेज प्रताप महा जग बंदन|| विद्यावान गुनी अति चातुर | राम काज करिबे को आतुर || प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया | राम लखन सीता मन बसिया || सुषम रूप धरी सियहि दिखावा | बिकट रूप धरी लंक जरावा || भीम रूप धरी असुर संहारे | रामचंद्र के काज संवारे || लाय संजीवन लखन जियाये | श्रीरघुवीर हरषि उर लाये || रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई | तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई || सहस बदन तुम्हरो जस गावे | अस कही श्रीपति कंड लगावे || सनकादिक ब्रह्मादी मुनीसा| नारद सारद सहित अहीसा || जम कुबेर दिगपाल जहा ते|