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Showing posts from January, 2014

मृत्यु के 47 दिन बाद आत्मा पहुंचती है यमलोक, ये होता है रास्ते में --

मृत्यु एक ऐसा सच है जिसे कोई भी झुठला नहीं सकता। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद स्वर्ग-नरक की मान्यता है। पुराणों के अनुसार जो मनुष्य अच्छे कर्म करता है, वह स्वर्ग जाता है, जबकि जो मनुष्य जीवन भर बुरे कामों में लगा रहता है, उसे यमदूत नरक में ले जाते हैं। सबसे पहले जीवात्मा को यमलोक ले जाया जाता है। वहां यमराज उसके पापों के आधार पर उसे सजा देते हैं। मृत्यु के बाद जीवात्मा यमलोक तक किस प्रकार जाती है, इसका विस्तृत वर्णन गरुड़ पुराण में है। गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि किस प्रकार मनुष्य के प्राण निकलते हैं और किस तरह वह पिंडदान प्राप्त कर प्रेत का रूप लेता है। - गरुड़ पुराण के अनुसार जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, वह बोल नहीं पाता है। अंत समय में उसमें दिव्य दृष्टि उत्पन्न होती है और वह संपूर्ण संसार को एकरूप समझने लगता है। उसकी सभी इंद्रियां नष्ट हो जाती हैं। वह जड़ अवस्था में आ जाता है, यानी हिलने-डुलने में असमर्थ हो जाता है। इसके बाद उसके मुंह से झाग निकलने लगता है और लार टपकने लगती है। पापी पुरुष के प्राण नीचे के मार्ग से निकलते हैं। - मृत्यु के समय दो यमदूत आते हैं। व

शरणागति-श्री हनुमान ऐसे भक्त

श्री हनुमान ऐसे भक्त के रूप में भी पूजनीय है, जिनकी भक्ति सर्वश्रेष्ठ, विलक्षण और अतुलनीय है। जिससे वह भक्त शिरोमणि भी पुकारे जाते हैं। हालांकि युग-युगान्तर से धर्मशास्त्रों में अनेक भक्त और उनकी ईश भक्ति के अनेक रूपों की अपार महिमा बताई गई है। किंतु श्री हनुमान की रामभक्ति की एक खासियत उनको श्रेष्ठ व सर्वोपरि बनाती है। वह है - शरणागति। शरणागति यानी शरण में चले जाना। हालांकि शरणागति भी अलग-अलग रूपों में देखी जाती है। कमजोरी, भय या स्वार्थ से सबल का आसरा क्षणिक लाभ दे सकता है, किंतु लंबे वक्त के लिए नकारात्मक नतीजे भी देने वाला भी होता है। किंतु यश और सफलता के लिए गुण, शक्ति संपन्न होने पर भी निर्भयता के साथ अपनाई शरणागति ही सार्थक होती है। यह शरण देने वाले और शरणागत दोनों को ही बलवान और सुखी करती है। शक्तिधर श्रीराम और बल, बुद्धि, विद्या संपन्न श्री हनुमान के भक्त और भगवान के गठजोड़ में भी शरणागति का ऐसा ही आदर्श छुपा है। जिसका संबंध श्री हनुमान द्वारा राम की शरणागति से है, जो व्यावहारिक जीवन में लक्ष्य प्राप्ति का एक बेहतरीन सूत्र सिखाता है। असल में शरणागति के पीछे समर्पण और न

........... पाप कहाँ जाता है ...........

..... एक बार एक ऋषि ने सोचा कि लोग गंगा में पाप धोने जाते है, तो इसका मतलब हुआ कि सारे पाप गंगा में समा गए और गंगा भी पापी हो गयी . अब यह जानने के लिए तपस्या की, कि पाप कहाँ जाता है ? तपस्या करने के फलस्वरूप देवता प्रकट हुए , ऋषि ने पूछा कि भगवन जो पाप गंगा में धोया जाता है वह पाप कहाँ जाता है ? भगवन ने जहा कि चलो गंगा से ही पूछते है , दोनों लोग गंगा के पास गए और कहा कि , हे गंगे ! जो लोग तुम्हारे यहाँ पाप धोते है तो इसका मतलब आप भी पापी हुई . गंगा ने कहा मैं क्यों पापी हुई , मैं तो सारे पापों को ले जाकर समुद्र को अर्पित कर देती हूँ , .....अब वे लोग समुद्र के पास गए , हे सागर ! गंगा जो पाप आपको अर्पित कर देती है तो इसका मतलब आप भी पापी हुए . समुद्र ने कहा मैं क्यों पापी हुआ , मैं तो सारे पापों को लेकर भाप बना कर बादल बना देता हूँ , .....अब वे लोग बादल के पास गए, हे बादलों ! समुद्र जो पापों को भाप बनाकर बादल बना देते है , तो इसका मतलब आप पापी हुए . बादलों ने कहा मैं क्यों पापी हुआ , मैं तो सारे पापों को वापस पानी बरसा कर धरती पर भेज देता हूँ , जिससे अन्न उपजता है , जिसको मानव खाता है .