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Showing posts from March, 2012

श्रीराम के अनन्य भक्त श्री हनुमान

कलयुग में हनुमानजी की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई है। श्रीराम के अनन्य भक्त श्री हनुमान अपने भक्तों और धर्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों की हर कदम मदद करते हैं। सीता माता के दिए वरदान के प्रभाव से वे अमर हैं और किसी ना किसी रूप में अपने भक्तों के साथ रहते हैं। हनुमानजी को मनाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ। हनुमानजी की यह स्तुति का सबसे सरल और सुरीली है। इसके पाठ से भक्त को असीम आनंद की प्राप्ति होती है। तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा बहुत प्रभावकारी है। इसकी सभी चौपाइयां मंत्र ही हैं। जिनके निरंतर जप से ये सिद्ध हो जाती है और पवनपुत्र हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो जाती है। यदि आप मानसिक अशांति झेल रहे हैं, कार्य की अधिकता से मन अस्थिर बना हुआ है, घर-परिवार की कोई समस्यां सता रही है तो ऐसे में सभी ज्ञानी विद्वानों द्वारा हनुमान चालीसा के पाठ की सलाह दी जाती है। इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है, इसमें को शंका या संदेह नहीं है। यह बात लोगों ने साक्षात् अनुभव की होगी की हनुमान चालीसा के पाठ से मन को शांति और कई समस्याओं के हल स्व

कामाख्या शक्तिपीठ का विशेष महत्व

हिन्दू धर्म में देवी के 51 शक्तिपीठों में से कामाख्या या कामरूप शक्तिपीठ का विशेष महत्व है । यह भारत की पूर्व-उत्तर दिशा में असम प्रदेश के गुवाहाटी में स्थित होकर कामाख्या देवी मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। पुराणों के अनुसार यह देवी का महाक्षेत्र है। यह मन्दिर नीलगिरी नामक पहाड़ी पर स्थित है। यह क्षेत्र कामरूप भी कहलाता है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि देवी कृपा से कामदेव को अपना मूल रूप प्राप्त हुआ। देश में स्थित विभिन्न पीठों में से कामाख्या पीठ को महापीठ माना जाता है। इस मंदिर में 12 स्तम्भों के मध्य देवी की विशाल मूर्ति है। मंदिर एक गुफा में स्थित है। यहां जाने का मार्ग पथरीला है, जिसे नरकासुर पथ भी कहा जाता है। मंदिर के पास ही एक कुण्ड है, जिसे सौभाग्य कुण्ड कहते हैं। इस स्थान को योनि पीठ के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि यहां देवी की देह का योनि भाग गिरा था। यहां पर देवी का शक्ति स्वरूप कामाख्या है एवं भैरव का रूप उमानाथ या उमानंद है। उमानंद को भक्त माता का रक्षक मानते हैं। कथा- शिव जब सती के मृत देह लेकर वियोगी भाव से घूम रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उनका वियोग दूर करने के लि

मंगलकारी रूप मां कालरात्रि

नवरात्रि में शक्ति आराधना तन-मन को संयम और अनुशासन द्वारा साधकर जीवन को आनंद और सुख से बिताने का संदेश देती है। नवरात्रि धर्म और ईश्वर से जुड़कर सफल जीवन और उसके लिए किए जाने वाले प्रयासों के लिए शक्ति संचय का अहम और शुभ काल है। चैत्र शुक्ल नवरात्रि की सातवीं रात सिद्धि की रात्रि मानी गई है। क्योंकि इस दिन आदिशक्ति दुर्गा के तामसी किंतु मंगलकारी रूप कालरात्रि की उपासना की जाती है। यह शक्ति और रात्रि सांसारिक कामनाओं के साथ तंत्र साधनाओं की सिद्धि की लिए भी अचूक मानी गई है। मां कालरात्रि का स्वरूप जितना भयानक है, उतना ही मंगलकारी और शुभ भी है। माता की उपासना जीवन से जुड़े हर भय, संशय और चिंता का नाश करने के साथ-साथ सभी सिद्धियां, सुख, साहस और कौशल देने वाली है। सरल शब्दों में मां कालरात्रि की भक्ति सफलता की राह में आने वाली मानसिक और व्यावहारिक बाधाओं को दूर कर देती है। मां कालरात्रि संकटमोचक शक्ति के रूप में पूजनीय है। अगर आप भी परेशानियों का सामना कर रहें है तो नवरात्रि के सातवें दिन (30 मार्च) को मां कालरात्रि के इस मंत्र का देवी पूजा के दौरान जरूर जप करें - - मां कालरात्रि की

भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण

1 अप्रैल को राम नवमी है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन श्रीराम का जन्म हुआ था। ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीराम नीले रंग के थे वहीं शास्त्रों में श्रीकृष्ण को काले रंग का बताया है। यह सुनकर अक्सर हमारे मन में यह सवाल उठता है कि हमारे भगवानों के रंग-रूप इतने अलग क्यों हैं। भगवान कृष्ण का काला रंग तो फिर भी समझ में आता है लेकिन भगवान राम को नील वर्ण भी कहा जाता है। क्या वाकई भगवान राम नीले रंग के थे, किसी इंसान का नीला रंग कैसे हो सकता है? वहीं काले रंग के कृष्ण इतने आकर्षक कैसे थे? इन भगवानों के रंग-रूप के पीछे क्या रहस्य है। राम के नीले वर्ण और कृष्ण के काले रंग के पीछे एक दार्शनिक रहस्य है। भगवानों का यह रंग उनके व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। दरअसल इसके पीछे भाव है कि भगवान का व्यक्तित्व अनंत है। उसकी कोई सीमा नहीं है, वे अनंत है। ये अनंतता का भाव हमें आकाश से मिलता है। आकाश की कोई सीमा नहीं है। वह अंतहीन है। राम और कृष्ण के रंग इसी आकाश की अनंतता के प्रतीक हैं। राम का जन्म दिन में हुआ था। दिन के समय का आकाश का रंग नीला होता है। इसी तरह कृष्ण का जन्म आधी रात के समय हुआ था और रात के समय

नवरात्रि: भगवान राम की आराधना

नवरात्रि में शक्ति की उपासना के साथ ही वासंतिक नवरात्र में भगवान राम की भी आराधना की जाती है। असल में शक्ति और श्रीराम उपासना के पीछे संदेश यह भी है कि जीवन में कामयाबी को छूने के लिए बेहतर व मर्यादित चरित्र व व्यक्तित्व की शक्ति भी जरूरी है। इस तरह नवरात्रि व रामनवमी शक्ति के साथ मर्यादा के महत्व की ओर इशारा करती है। खासतौर पर शक्ति के मद में रिश्तों, संबंधों और पद की मर्यादा न भूलकर दुर्गति से बचना ही दुर्गा पूजा की सार्थकता भी है। जगतजननी का यही स्वरूप व्यावहारिक जीवन में स्त्री को माना जाता है। यही कारण है कि वेद-पुराणों में 16 स्त्रियों को मां के समान दृष्टि रखने और सम्मान देने का महत्व बताया गया है। कौन हैं ये स्त्रियां जानिए - स्तनदायी गर्भधात्री भक्ष्यदात्री गुरुप्रिया। अभीष्टदेवपत्नी च पितु: पत्नी च कन्यका।। सगर्भजा या भगिनी पुत्रपत्त्नी प्रियाप्रसू:। मातुर्माता पितुर्माता सोदरस्य प्रिया तथा।। मातु: पितुश्र्च भगिनी मातुलानी तथैव च। जनानां वेदविहिता मातर: षोडश स्मृता:।। जिसका अर्थ है कि वेद में नीचे बताई 16 स्त्रियां मनुष्य के लिए माताएं हैं- स्तन या दूध पिलाने व

पवनपुत्र हनुमान के गुण से सीख

श्री हनुमान के चरित्र में अपनत्व का विलक्षण भाव देखने को मिलता है। श्री हनुमान ने इसी गुण के बूते हर स्थिति, स्थान और संबंधों को अनुकूल बना लिया। श्री हनुमान ने अपनेपन के इस भाव से ही न केवल स्वयं प्रभु राम की कृपा और माता सीता से अचूक सिद्धियां व अनमोल निधियां पाई, बल्कि दूसरों पर भी कृपा बरसाई। इस तरह पवनपुत्र हनुमान के इस गुण से सीख यही मिलती है कि जीवन में मुसीबतों को पछाडऩा है तो हालात से मुंह मोडऩे या रिश्तों से अलगाव के बजाए अपनेपन यानी तालमेल, प्रेम व जुड़ाव के सूत्र को अपनाएं। क्योंकि अलगाव में क्षण भर का आवेग लंबी पीड़ा दे सकता है, किंतु जुड़ाव वक्त लेकर भी लंबा सुख और सफलता देने वाला होता है। ऐसे मंगलमूर्ति श्री हनुमान के ध्यान से जीवन मंगलमय बनाने के लिए बहुत ही शुभ घड़ी मानी गई है- नवरात्रि में रामनवमी, मंगलवार, शनिवार या हनुमान जयंती। इस दिनों हनुमान का ध्यान ग्रह, मन, कर्म व विचारों के दोषों का शमन कर सुख-सफलता देने वाला माना गया है। जिसके लिए हनुमान के विशेष मंत्र स्तुति के ध्यान का महत्व बताया गया है। जानते हैं यह विशेष मंत्र और सरल पूजा विधि - - स्नान के बाद श्री

हनुमान चालीसा के दो दोहों

गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा की शुरुआत दो दोहों और गुरु के स्मरण से की है। लिखा है कि- श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनऊँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।। बुद्धिहीन तनु जानिक सुमिरौ पवन कुमार। बल, बुद्धि, विद्या देहु मोहि हरहु क्लेश विकार।। अर्थ है - श्री गुरु के चरण कमलों की रज से अपने मन रूपी दर्पण को साफ कर मैं श्री रघुनाथ के उस पावन यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फलों यानी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है। तुलसीदासजी ने दोहे की शुरुआत पहले गुरु को स्मरण कर की है। दरअसल, व्यावहारिक रूप से धूल से दर्पण साफ नहीं होता, बल्कि दर्पण से धूल साफ होती है। किंतु तुलसीदासजी की इस बात में भी जीवन को साधने के गहरे सूत्र हैं। उनका संकेत है कि जिस तरह हम दर्पण देखकर स्वयं के सौंदर्य को बेहतर ढंग से व्यवस्थित कर बाहर जाते हैं। ठीक उसी तरह से जीवन से जुड़े हर विषय की शुरुआत के लिए मन का साफ, मजबूत और संतुलित होना अहम है। जिसके लिये सत्य व ज्ञान से जुडऩे की अहमियत है, जिनकी यहां गुरु के रूप वंदना और आवाहन कर अहमियत बताई गई है। इसी तरह दोहे में श्री हनु

देवी दुर्गा को सभी देवताओं ने अपने प्रिय अस्त्र-शस्त्र प्रदान की

देवी दुर्गा को महाशक्ति बनाने के लिए सभी देवताओं ने उन्हें अपनी प्रिय वस्तुएं भेंट कीं। देवी भागवत के अनुसार जब असुरों का अत्याचार बढऩे लगा तब मां शक्ति देवताओं और मानवता की रक्षा के लिए प्रकट हुईं। मां भवानी ने सभी को असुरों के अत्याचारों से बचाने का संकल्प लिया। शक्ति को प्रसन्न करने के लिए देवताओं ने अपने प्रिय अस्त्र-शस्त्र सहित कई शक्तियां उन्हें प्रदान की। इन सभी शक्तियों को प्राप्त कर देवी मां ने महाशक्ति का रूप ले लिया। - भगवान शंकर ने मां शक्ति को त्रिशूल भेंट किया। - भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्रप्रदान दिया। - वरुणदेव ने शंख भेंट किया। - अग्निदेव ने अपनी शक्ति प्रदान की। - पवनदेव ने धनुष और बाण भेंट किए। - इंद्रदेव ने वज्र और घंटा अर्पित किया। - यमराज ने कालदंड भेंट किया। - प्रजापति दक्ष ने स्फटिक माला दी। - भगवान ब्रह्मा ने कमंडल भेंट दिया। - सूर्य देव ने माता को तेज प्रदान किया। - समुद्र ने मां को उज्जवल हार, दो दिव्य वस्त्र, दिव्य चूड़ामणि, दो कुंडल, कड़े, अर्धचंद्र, सुंदर हंसली और अंगुलियों में पहनने के लिए रत्नों की अंगूठियां भेंट कीं। - सरोवरों ने उन्हें क

हनुमान राम भक्ति को समर्पित

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा हनुमान भक्ति को समर्पित हनुमान चालीसा की ये चौपाई रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनिपुत्र पवनसुत नामा श्री हनुमान के राम भक्त होना व भक्त-भगवान के पावन रिश्तों को उजागर ही नहीं करती, बल्कि राम कृपा से ही बेजोड़ गुण व बल का स्वामी होना भी प्रकट करती है। राम की भक्ति और सेवा से ही श्री हनुमान रामदूत कहलाए। धार्मिक आस्था भी है कि जहां श्री राम का नाम व स्मरण होता है, वहीं उनके परम भक्त श्री हनुमान किसी न किसी रूप में उपस्थित रहते हैं। हनुमान के कारण ही युग-युगान्तर से राम भक्ति आस्था को बल और भक्ति को शक्ति देने वाली मानी जाती है। रुद्र अवतार श्री हनुमान की कृपा ग्रहदोषों को दूर करने में भी शुभ व अचूक उपाय मानी गई है। यही कारण है कि खासतौर पर शनिवार, मंगलवार के अलावा श्री राम के जन्मदिन यानी रामनवमी पर श्री राम की प्रतिमा या तस्वीर की गंध, अक्षत, फूल, धूप व दीप से पूजा कर यहां बताई जा रही राम मंत्र स्तुति का ध्यान करें और श्री हनुमान की भी विधिवत पूजा करें। यह श्रीराम मंत्र स्तुति है - आपदामपहर्तार दातारं सर्वसम्पदाम। लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्।। रामा

महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती

धर्मग्रंथों में धर्मयुद्धों से जुड़े प्रसंग हो या विज्ञान की अवधारणाएं, अस्तित्व बनाए रखने के लिए संघर्ष की अहमियत उजागर करते हैं। वजूद के लिये यह जद्दोजहद जीवन, मान-सम्मान या जीवन से जुड़े किसी भी विषय से जुड़ी हो सकती है। किंतु संघर्ष चाहे जैसा हो, शक्ति के बिना संभव नहीं। यही कारण है कि शक्ति अस्तित्व का ही प्रतीक मानी गई है। चूंकि यह शक्ति मोटे तौर पर संसार में रचना, पालन व संहार रूप में दिखाई देती है। प्राकृतिक व व्यावहारिक रूप से स्त्री भी सृजन व पालन शक्ति की ही साक्षात् मूर्ति है। इसी शक्ति की अहमियत को जानकर ही सनातन संस्कृति में स्त्री स्वरूपा देवी शक्तियां पूजनीय और सम्माननीय है। नवरात्रि शक्ति स्वरूप की पूजा का विशेष काल है। शक्ति पूजा में खासतौर पर महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती का विधान है, जो क्रमश: शक्ति, ऐश्वर्य और ज्ञान की देवी मानी जाती है। व्यावहारिक जीवन की नजर से तीन शक्तियों का महत्व यही है कि तरक्की और सफलता के लिए सबल व दृढ़ संकल्पित होना जरूरी है। जिसके लिये सबसे पहले विचारों को सही दिशा देना यानी नकारात्मकता, अवगुणों व मानसिक कलह से दूर होना जरूरी है।

भगवान की भक्ति

हमारी सभी आवश्यकताओं और मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए भगवान की भक्ति से अच्छा कोई और उपाय नहीं है। कहा जाता है कि सच्चे से भगवान से प्रार्थना की जाए तो सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण हो जाती हैं। वैसे तो सभी देवी-देवता हमारी सभी इच्छाएं पूर्ण करने में समर्थ माने गए हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग मनोकामनाओं के लिए अलग-अलग देवी-देवताओं को पूजने का विधान भी बताया गया है। शादी या विवाहित जीवन से जुड़ी समस्याओं के निराकरण के लिए शिव-पार्वती, लक्ष्मी-विष्णु, सीता-राम, राधा-कृष्ण, श्रीगणेश की पूजा करनी चाहिए। धन संबंधी समस्याओं के लिए देवी महालक्ष्मी, कुबेर देव, भगवान विष्णु से प्रार्थना करनी चाहिए। पूरी मेहनत के बाद भी यदि आपको कार्यों में असफलता मिलती है तो किसी भी कार्य की शुरूआत श्रीगणेश के पूजन के साथ ही करें। यदि आपको किसी प्रकार का भय या भूत-प्रेत आदि का डर सताता है तो पवनपुत्र श्री हनुमान का ध्यान करें। पति-पत्नी बिछड़ गए हैं और काफी प्रयत्नों के बाद भी वापस मिलने का योग नहीं बन पा रहा हो तो ऐसे में श्रीराम भक्त बजरंग बली की पूजा करें। सीता और राम का मिलन भी हनुमानजी द्वारा ही

सिरदर्द

भागदौड़ से भरी लाइफस्टाइल और रिलेक्सेशन न मिलने के कारण या अन्य कई वजहों से अक्सर सिरदर्द हो जाया करता है। ऐसे में ज्यादा पेन किलर खाने पर रिएक्शन का डर बना रहता है। इसीलिए सिरदर्द दूर करने के लिए आप इन घरेलू उपायों का भी प्रयोग कर सकते हैं। - सिरदर्द में खीरा काटकर सूँघने एवं सिर पर रगडऩे से तुरंत आराम मिलता है। - सिरदर्द में कच्चे अमरूद को पीसकर सूर्योदय से पहले सिर पर लेप लगाने से लाभ होता है। - लौकी का गूदा सिर पर लेप करने से सिरदर्द में तुरंत आराम मिलता है। - सिरदर्द में नींबू, आलूबुखारा या इमली से बना शरबत पिलाने से काफी आराम मिलता है। सिर में ठंडे पानी की धार गिराने से भी दर्द में आराम मिलता है। -नौशादर और बुझा चूना बराबर मात्रा में लेकर एक शीशी में भरकर रख लें। दर्द होने पर शीशी को हिलाकर सूघें। इससे सिरदर्द में आराम मिलता है। -सुबह खाली पेट प्रतिदिन एक सेब खाने से सिरदर्द की समस्या से छुटकारा मिलता है। -अदरक एक दर्द निवारक दवा के रूप में भी काम करती है। यदि सिरदर्द हो रहा हो तो सूखी अदरक को पानी के साथ पीसकर उसका पेस्ट बना लें और इसे अपने माथे पर लगाएं। इसे लगाने पर हल्की जलन

पंच देवी-देवताओं की पूजा

हमारी सभी मनोकामनाओं को पूरा करने की शक्ति केवल भगवान के पास ही है। कई बार कड़ी मेहनत के बाद भी किसी-किसी को उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं हो पाता है। ऐसे में धन संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और घर-परिवार में तनाव बढ़ता जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस प्रकार की समस्याओं से निजात पाने के लिए कई प्रकार की परंपराएं बनाई गई हैं। इन्हीं परंपराओं में से एक है प्रतिदिन प्रात: काल पंच देवी-देवताओं की पूजा करना। वेद-पुराण के अनुसार पांच प्रमुख देवी-देवता बताए गए हैं। किसी भी कार्य की सिद्धि और पूर्णता के लिए इन पांचों देवताओं का पूजन किया जाना अनिवार्य है। इनकी पूजा के कार्य में आने वाली सभी बाधाएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं और सफलता प्राप्त होती है। इन पंच देवी-देवताओं में शामिल हैं- प्रथम पूज्य श्रीगणेश, भगवान श्री विष्णु, महादेव, सूर्यदेव और देवी मां। इन पांचों की नित्य पूजा करने वाले व्यक्ति को जीवन में कभी भी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता है। ऐसे लोग हर परिस्थिति में समभाव ही रहते हैं। इन पर किसी भी दुख और दर्द का प्रभाव नहीं हो पाता। इन पांचों देवताओं को हमारे शरीर से ही जोड़ा

पदासन में प्रार्थना

समय अभाव के चलते अधिकांश लोग केवल हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं। पुराने समय में श्रद्धालुओं द्वारा एक पदासन में प्रार्थना की जाती थी। इस आसन से स्वास्थ्य लाभ तो है साथ ही इससे हमारा मानसिक तनाव भी तनाव दूर होता है। एक पदासन की विधि - किसी साफ-स्वच्छ और शुद्ध वातावरण वाले स्थान पर कंबल आदि बिछा लें। अब कंबल पर सीधे खड़े हो जाएं और पैरों को घुटनों से मोड़कर पजें के सहारे बैठ जाएं। अब सांस को बाहर निकालकर पेट को पूरा खाली कर लें और बाएं पैर के पजें पर बैठकर दाएं पैर को उठाकर बाएं जांघ पर रखें। इस तरह पद्मासन की स्थिति बन जाएगी। फिर सांस अन्दर खिंचते हुए दोनों हाथों को सामने सीधा में रखें जैसे भगवान से प्रार्थना करते समय रखते हैं। अपने आंखों को सामने की ओर रखें। इस स्थिति में कुछ देर तक रहें, फिर दूसरे पैर से भी यह क्रिया दोहराएं। इसमें पैर को बदलते समय सांस को छोडऩे व लेने की क्रिया को करते रहें। एक पदासन के लाभ एक पदासन आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत लाभदायक होता है। इस आसन से मानसिक तनाव दूर होता है। आलस्य खत्म करके शरीर को स्फूर्तिवान, शक्तिशाली बनाता है। इससे मन निर्मल व शांत करके नियंत्रि

अखंड ज्योत: नवरात्रि

चैत्र तथा आश्विन दोनों नवरात्रि में माता दुर्गा के समक्ष नौ दिन तक अखंड ज्योत जलाई जाती है। यह अखंड ज्योत माता के प्रति आपकी अखंड आस्था का प्रतीक स्वरूप होती है। यह अखंड ज्योत इसलिए भी जलाई जाती है कि जिस प्रकार विपरीत परिस्थितियों में भी छोटा का दीपक अपनी लौ से अंधेरे को दूर भगाता रहाता है उसी प्रकार हम भी माता की आस्था का सहारा लेकर अपने जीवन के अंधकार को दूर कर सकते हैं। मान्यता के अनुसार मंत्र महोदधि(मंत्रों की शास्त्र पुस्तिका) के अनुसार दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त हो है। कहा जाता है दीपम घृत युतम दक्षे, तेल युत: च वामत:। अर्थात - घी युक्त ज्योति देवी के दाहिनी ओर तथा तेल युक्त ज्योति देवी के बाई ओर रखनी चाहिए। अखंड ज्योत पूरे नौ दिनों तक अखंड रहनी चाहिए। इसके लिए एक छोटे दीपक का प्रयोग करें। जब अखंड ज्योत में घी डालना हो, बत्ती ठीक करनी हो तो या गुल झाडऩा हो तो छोटा दीपक अखंड दीपक की लौ से जलाकर अलग रख लें। यदि अखंड दीपक को ठीक करते हुए ज्योत बुझ जाती है तो छोटे दीपक की लौ से अखंड ज्योत पुुन: जलाई जा सकती है छोटे दीपक की लौ को घी में डूबोकर

नवरात्रि: देवी के विभिन्न रूपों की पूजा

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चैत्र नवरात्रि में हर दिन देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। इन नौ दिनों में विविध प्रकार की पूजा से माता को प्रसन्न किया जाता है। नवरात्रि में देवी को विभिन्न प्रकार के भोग लगाए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार प्रतिपदा से लेकर नौ तिथियों में देवी को विशिष्ट भोग अर्पित करने तथा ये ही भोग गरीबों को दान करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। उसके अनुसार- - प्रतिपदा (23 मार्च, शुक्रवार) को माता को घी का भोग लगाएं तथा उसका दान करें। इससे रोगी को कष्टों से मुक्ति मिलती है तथा वह निरोगी होता है। - द्वितीया (24 मार्च, शनिवार) को माता को शक्कर काभोग लगाएं तथा उसका दान करें। इससे साधक को दीर्घायु प्राप्त होती है। - तृतीया (25 मार्च, रविवार) को माता को दूध चढ़ाएं तथा इसका दान करें। ऐसा करने से सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति मिलती है। - चतुर्थी(26 मार्च, सोमवार) को मालपूआ चढ़ाकर दान करें। इससे सभी प्रकार की समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाती है। - पंचमी (27 व 28 मार्च, मंगलवार व बुधवार) को माता दुर्गा को केले का भोग लगाएं तथा इसका दान करें। ऐसा करने से बुद्धि का विकास होता है। - ष

सुन्दरकाण्ड

हिन्दू धर्मग्रंथ श्री रामचरितमानस आदर्श व्यावहारिक जीवन के अनेक सूत्रों और संदेशों को उजागर करता है। इसी कड़ी में इसके अहम चरित्र व पात्रों में एक रामभक्त व रुद्रावतार श्री हनुमान के जरिए कर्म, समर्पण, पराक्रम, प्रेम, परोपकार, मित्रता, वफादारी जैसे अनेक आदर्शों के दर्शन होते हैं। श्री हनुमान के दिव्य और संकटमोचक चरित्र का दर्शन श्री रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड में होता है। इसलिए सुन्दरकाण्ड का पाठ व्यावहारिक जीवन में आने वाली संकट, विपत्तियों और परेशानियों को दूर करने में बहुत ही असरदार माना जाता है। आस्था है कि इसी सुन्दरकाण्ड में दी गई श्री हनुमान की एक छोटी सी स्तुति का नियमित पाठ सारे दु:ख व कष्टों से छुटकारा देने के साथ हर इच्छा पूरी कर देता है। यही नहीं यह स्तुति शनि दोष या दशा के बुरे असर से भी बचाने वाली मानी गई है। यह हनुमान स्तुति छोटी होने से इसका पाठ समयाभाव में भी संभव है। श्री हनुमान उपासना के विशेष दिन शनिवार और मंगलवार को इच्छापूर्ति और शनि पीड़ा से रक्षा के लिए इस हनुमान स्तुति का पाठ अवश्य करें। - शनिवार या मंगलवार को बोल, विचार और व्यवहार की पवित्रता के संकल्प

श्री हनुमान संकटमोचक देवता हैं

श्री हनुमान संकटमोचक देवता हैं। माना जाता है कि पूर्ण आस्था और पवित्रता के साथ किसी भी रूप में हनुमान उपासना भक्त और उसके घर-परिवार पर आने वाले हर संकट को दूर करती है। खासतौर पर अमावस्या तिथि तो ग्रह पीड़ा, शांति, रोग, शोक दूर करने के लिए शिव या उनके अवतारों की आराधना के लिए बेहद मंगलकारी मानी गई है। यही कारण है कि कल अमावस्या पर श्री हनुमान की पूजा का यहां बताया जा रहा छोटा-सा उपाय जीवन से शारीरिक, मानसिक या आर्थिक परेशानियों को दूर करने में सरल और असरदार माना गया है। जानिए, यह सरल उपाय- - अमावस्या तिथि की सुबह स्नान और स्वच्छ यथासंभव लाल या सिंदूर रंग के वस्त्र पहन श्री हनुमान की पूजा करें। - सिंदूर का चोला चढ़े श्री हनुमान की पूजा में सिंदूर, कुमकुम, लाल अक्षत, फूल व फल चढ़ाएं। - इन पूजा सामग्रियों के अलावा विशेष रूप से सिंदूर लगे एक नारियल पर मौली या कलेवा लपेटकर श्री हनुमान के चरणों में अर्पित करें। - नारियल को चढ़ाते समय श्री हनुमान चालीसा की यह चौपाई का पाठ मन ही मन करें - जै जै जै हनुमान गौसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई। - श्री हनुमान से तन, मन या धन से जुड़े जीव

संकटमोचक हनुमान

श्री हनुमान बल, पराक्रम, ऊर्जा, बुद्धि, सेवा, भक्ति के आदर्श देवता माने जाते हैं। यही कारण है कि शास्त्रों में श्री हनुमान को सकलगुणनिधान भी कहा गया है। श्री हनुमान को चिरंजीव सरल शब्दों में कहें तो अमर माना जाता है। हनुमान उपासना के महापाठ श्री हनुमान चालीसा में गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है कि - 'चारो जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा।' इस चौपाई से साफ संकेत है कि श्री हनुमान ऐसे देवता है, जो हर युग में किसी न किसी रूप, शक्ति और गुणों के साथ जगत के लिए संकटमोचक बनकर मौजूद रहे। श्री हनुमान से जुड़ी यही विलक्षण और अद्भुत बात उनके प्रति आस्था और श्रद्धा गहरी करती है। इसलिए यहां जानिए, श्री हनुमान किस युग में किस तरह जगत के लिए शोकनाशक बनें और खासतौर पर कलियुग यानी आज के दौर में श्री हनुमान कहां बसते हैं - सतयुग - श्री हनुमान रुद्र अवतार माने जाते हैं। शिव का दु:खों को दूर करने वाला रूप ही रुद्र है। इस तरह कहा जा सकता है कि सतयुग में हनुमान का शिव रुप ही जगत के लिए कल्याणकारी और संकटनाशक रहा। त्रेतायुग - इस युग में श्री हनुमान को भक्ति, सेवा और समर्पण का आदर्श

चैत्र नवरात्र: 23 मार्च से शुरू होकर 1 अप्रैल तक

23 मार्च से 1 अप्रेल तक हर दिन आपकी किस्मत के लिए खास रहेगा क्योंकि इस नवरात्रि में हर दिन एक विशेष संयोग बन रहा है। चैत्र नवरात्र इस बार 10 दिन के होंगे। तिथियों की घटत-बढ़त के कारण ऐसा होगा। नवरात्र पर्व 23 मार्च से शुरू होकर 1 अप्रैल तक रहेगा। इस दौरान हर दिन विशेष संयोग भी रहेंगे। ज्योतिषविद् दस दिन के नवरात्र को भी जनता की संपन्नता के हिसाब से महत्वपूर्ण बता रहे हैं। ज्योतिषियों के अनुसार चैत्र नवरात्र देवी के वार यानी शुक्रवार से शुरु हो रहे हैं। ऐसे में ये देवी आराधना करने वाले साधकों के लिए विशेष फलदायी रहेंगे। खरीदारी व नए कामों के लिए भी ये नवरात्र बहुत शुभ रहेंगे। नवरात्र का बढऩा सुख-समृद्धि और जनता की संपन्नता का इशारा होता है। नवरात्र के दौरान हर दिन विशेष संयोग भी बन रहे हैं। क्यों बढ़ा एक दिन : 27 मार्च को सूर्योदय से पहले 5:29 से पंचमी तिथि शुरू होगी। यह अगले दिन 28 मार्च को सुबह 8:08 बजे तक रहेगी। इस कारण मंगलवार व बुधवार दोनों ही दिन सूर्योदय काल में पंचमी तिथि रहेगी। दोनों ही दिन पांचवीं देवी स्कंध माता की आराधना की जाएगी। ये रहेंगे श्रेष्ठ संयोग 23 मार्च

मीठा फल अंजीर

विश्व का सबसे मीठा फल अंजीर स्वाद में जितना मीठा और स्वादिष्ट है। शरीर के लिए भी उतना ही लाभदायक है।कैल्सियम, रेशों व विटामिन ए, बी, सी से युक्त होता है और एक अंजीर में लगभग 30 कैलोरी होती हैं। अंजीर में एंटीऑक्सीडेंट तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो संक्रमण और रोग से लडऩे की क्षमता को बढ़ाते हैं। इसमें कैल्सियम और लौह तत्व प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह दिमाग को शांत रखता है और शरीर को आराम देता है। डायबिटीज में अंजीर बहुत उपयोगी होता है। अंजीर में आयरन और कैल्सियम प्रचुर मात्रा में पाए जाने के कारण यह एनीमिया में लाभप्रद होता है। अंजीर में विटामिन्स ए, बी1, बी2, कैल्सियम, आयरन, फास्फोरस, मैगनीज, सोडियम, पोटैशियम और क्लोरीन पाया जाता है। इसका सेवन करने से डायबिटीज, सर्दी-जुकाम, अस्थमा और अपच जैसी तमाम व्याधियां दूर हो जाती हैं। घरेलू उपचार में ऐसा माना जाता है कि स्थाई रुप से रहने वाली कब्ज अंजीर खाने से दूर हो जाती है। जुकाम, फेफड़े के रोगों में पांच अंजीर पानी में उबाल कर छानकर यह पानी सुबह-शाम पीना चाहिए। दमा जिसमे कफ (बलगम) निकलता हो उसमें अंजीर खाना लाभकारी है इससे

कौन-से फूल-पत्ते शिव पर चढ़ाना कितना शुभ

शिव की उपासना की धर्म परंपराओं में खासतौर पर बिल्वपत्र का चढ़ावा बहुत ही शुभ और पुण्य देने वाला माना जाता है। धार्मिक आस्था है कि बिल्वपत्र का शिव को अर्पण जन्म-जन्मान्तर के पाप और दोषों का नाश करता है। किंतु शिव की पूजा में अनेक तरह की कुदरती सामग्रियों के चढ़ावे का भी महत्व है। जिनमें तरह-तरह के पेड़-पौधों के पत्ते, फूल और फल शामिल होते हैं। शास्त्रों के मुताबिक इन फूल-पत्तों में कुछ ऐसे भी हैं, जिनको शिव पूजा में चढ़ाना बिल्वपत्र से भी ज्यादा पुण्य और फलदायी है। जानिए, सोमवार या शिव भक्ति के किसी भी शुभ घड़ी में कौन-से फूल-पत्ते शिव पर चढ़ाना कितना शुभ और कामनासिद्धि में असरदार साबित होते हैं - धार्मिक महत्व की दृष्टि से शिव को चढ़ाने जाने वाले फूलों का फल इस तरह है कि- एक आंकडे का फूल चढऩा सोने के दान के बराबर फल देता है। एक हजार आंकड़े के फूल के बराबर एक कनेर का फूल फलदायी एक हजार कनेर के फूल के बराबर एक बिल्वपत्र फल देता है। हजार बिल्वपत्रों के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी। हजार गूमा के बराबर एक चिचिड़ा, हजार चिचिड़ा के बराबर एक कु श का फूल, हजार कुश फूलों के बराबर एक शमी का

होली

इस होली पर ऐसा कौन-सा रंग इस्तेमाल करें जो आपके व्यवसाय, नौकरी एवं पेशों के लिए लाभदायक हो। जी हां यह भी संभव है रंगो का चयन अपने आय स्रोत के अनुकूल करने से आप अपने लाभ को बढ़ा सकते हैं तथा मान-प्रतिष्ठा भी अर्जित कर सकते हैं। किसे कैसा रंग चुनना है? आइए देखते हैं: लाल रंग लाल रंग भूमि पूत्र मंगल का रंग है। भूमि से संबंधित कार्य करने वाले बिल्डर्स, प्रापर्टी डीलर्स, कॉलोनाइजर्स, इंजीनियर्स, बिल्डिंग मटेरियल का व्यवसाय करने वाले एवं प्रशासनिक अधिकारियों को लाल रंग से ही होली का उत्सव मनाना चाहिए तथा गरीबों को भोजन कराने से अप्रत्याशित लाभ होगा। सभी कामनाएं पूर्ण होगी। मित्र रंग: गुलाबी, केसरिया, महरून। हरा रंग हरा रंग बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। व्यापार में वृद्धि, शिक्षक, अभिभाषक, विद्यार्थियों, जज को सफलता हेतु एवं लेखक, पत्रकार, पटकथा, लेखक को भी होली हेतु इस रंग का प्रयोग करना, लाभ एवं सफलता दिलाएगा। कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर इंजीनियर भी हरा रंग का प्रयोग कर सकते हैं। मित्र रंग: नीला, पीला, आसमानी। पीला रंग पीला रंग गुरु का प्रतिनिधित्व करता है। गुरु सोना, चांद

नींबू का अनोखा गुण

नींबू का अनोखा गुण यह है कि इसकी खट्टी खुशबू खाने से पहले ही मुंह में पानी ला देती है। चांट हो या दाल कोई भी व्यंजन इसके प्रयोग से और भी सुस्वादु हो जाता है। यह फल खट्टा होने के साथ-साथ बेहद गुणकारी भी है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि नींबू के पत्ते भी बहुत उपयोगी होते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं नींबू के पत्तों के कुछ ऐसे ही रामबाण प्रयोगों के बारे में- कृमि रोग- 10 ग्राम नींबू के पत्तों का रस (अर्क) में 10 ग्राम शहद मिलाकर पीने से 10-15 दिनों में पेट के कीड़े मरकर नष्ट हो जाते हैं। नींबू के बीजों के चूर्ण की फं की लेने से कीड़ों का विनाश होता है। सिरदर्द या माइग्रेन- नींबू के पत्तों का रस निकालकर नाक से सूंघे, जिस व्यक्ति को हमेशा सिरदर्द बना रहता है, उसे भी इससे शीघ्र आराम मिलता है। नाक से खून आना- ताजे नींबू का रस निकालकर नाक में पिचकारी देने से नाक से खून गिरता हो, तो बंद हो जाएगा।

स्वाहा का उच्चारण

स्वाहा का उच्चारण क्यों? ........................................................ किसी भी शुभ कार्य में हवन होते हमने देखा है कि अग्नि में आहूति देते वक्त स्वाहा का उच्चारण किया जाता है। यह स्वाहा ही क्यों कहा जाए आईए जानते हैं इस शब्द के बारे में।अर्थ: स्वाहा शब्द का अर्थ है सु+आ+हा सुरो यानि अच्छे लोगों को दिया गया। अग्नि का प्रज्जवलन कर उसमें औषधियुक्त (खाने योग्य घी मिश्रित) की आहूति देकर क्रम से देवताओं के नाम का उल्लेख कर उसके पीछे स्वाहा बोला जाता है। जैसे इंद्राय स्वाहा यानि इंद्र को प्राप्त हो इसी तरह समस्त हविष्य सामग्री अलग-अलग देवताओं की समर्पित की जाती है। धार्मिक महत्व....................................... .......................................................... श्रीमद्भागवत एवं शिवपुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति की कई पुत्रियां थी। उनमें से पुत्री का विवाह उन्होंने अग्नि देवता के साथ किया था। उनका नाम था स्वाहा। अग्नि अपनी पत्नी स्वाहा द्वारा ही भोजन ग्रहण करते है। दक्ष ने अपनी एक अन्य पुत्री स्वाधा का विवाह पितरों के साथ किया था। अत: पितरों को आहूति देने के लिए स्वाहा

शिवजी का पूजन सर्वश्रेष्ठ

शिव पुराण के अनुसार शिवजी ने ही इस सृष्टि का निर्माण ब्रह्माजी द्वारा करवाया है। इसी वजह से हर युग में सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए शिवजी का पूजन सर्वश्रेष्ठ और सबसे सरल उपाय है। इसके साथ शिवजी के प्रतीक रुद्राक्ष को मात्र धारण करने से ही भक्त के सभी दुख दूर हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। रुद्राक्ष कई प्रकार के रहते हैं। सभी का अलग-अलग महत्व होता है। अधिकांश भक्त रुद्राक्ष धारण करते हैं। इन्हें धारण करने के लिए कई प्रकार के नियम बताए गए हैं, नियमों का पालन करते हुए रुद्राक्ष धारण करने पर बहुत जल्द सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगते हैं। रुद्राक्ष धारण करने से पूर्व इनका विधिवत पूजन किया जाना चाहिए इसके बाद मंत्र जप करते हुए इन्हें धारण किया जा सकता है। एक मुखी रुद्राक्ष, दोमुखी रुद्राक्ष, तीन मुखी रुद्राक्ष, चार मुखी रुद्राक्ष या पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। सामान्यतया पंचमुखी रुद्राक्ष आसानी से उपलब्ध हो जाता है। जानिए कौन सा रुद्राक्ष क्यों और किस मंत्र के साथ धारण करें- एक मुखी रुद्राक्ष- जिन लोगों को लक्ष्मी कृपा चाहिए और सभी सु

पंच देव

शास्त्रों के अनुसार पांच प्रमुख देवता माने गए हैं। किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत और पूर्णता के लिए इनकी पूजा करना अनिवार्य मानी गई है। इन पंच देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करने से कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो जाता है। हमारे शास्त्रो में पंच देव के नित्य पूजन का विधान बताया गया है। इन पंच देव में भगवान गणेशजी, विष्णुजी, शिवजी, देवी मां और सूर्य देव शामिल हैं। ऐसा माना जाता है कि हमारा शरीर पांच तत्वों से निर्मित माना गया है और इन्हीं तत्वों में पांचों देवी-देवता विद्यमान रहते हैं। गणेशजी जल तत्व माने गए हैं अत: इनका वास जल में माना गया है। श्री विष्णु- वायु तत्व हैं, शिवजी- पृथ्वी तत्व हैं, श्री देवी- अग्रि तत्व हैं और श्री सूर्य- आकाश तत्व माने गए हैं। हमारे जीवन के लिए सर्वप्रथम जल की ही आवश्यकता होती है। इसलिए प्रथम पूज्य श्रीगणेश माने गए हैं जो कि जल के देवता है। वायु साक्षात विष्णु देवता से संबधित तत्व है। भगवान शंकर पृथ्वी तत्व, देवी अग्नि तत्व तथा सूर्य आकाश तत्व के देवता है। यह सभी तत्व हमारे शरीर में विद्यमान रहते हैं अत: इस प्रकार इन पांचों देवी-देवताओं का पूजन करने पर हम अपने आप का

घर के नल

आपके घर में अगर किसी नल को बंद कर देने पर भी पानी लगातार बहता है या टपकता रहता है तो समझ लेना चाहिए कोई बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। यदि आपके घर के किचन या बाथरूम या अन्य किसी जगह नल से पानी टपकता है तो यह वास्तु के अनुसार अशुभ माना जाता है। व्यर्थ पानी बहना वैसे भी अच्छा नहीं माना जाता है। वास्तु और फेंगशुई में बताया गया है कि जिस घर में नल टपकता है वहां फिजूल खर्च अधिक होते हैं। लेकिन किचन का नल अगर लगातार टपकता है तो वो ज्यादा बुरा माना जाता है। ये ही नल आपको बरबादी की ओर मोड़ सकता है क्योंकि किचन में अग्रि का वास होता है। जहां आग और पानी एक साथ हो जाएं वहां बीमारियां, परेशानियां और फिजूल खर्च शुरु हो जाता है। पानी के फिजुल बहने से वरूण देव का दोष लगता है। शास्त्रों में भी जल को भी देवता ही माना है, इसके बिना किसी भी प्राणी के लिए जीवन असंभव है। इसका अनादर करने पर देवताओं की कृपा प्राप्त नहीं होती है। वास्तु के अनुसार नल से फिजूल पानी बहना घर में अशुभ प्रभाव को बढ़ाता है। ऐसे घर में पैसों की कमी रहती है। ऐसा माना जाता है कि जिस प्रकार नल से व्यर्थ पानी टपकता रहता

बांसुरी कितने कमाल की

आपको ये जान कर आश्चर्य होगा कि बांसुरी कितने कमाल की है। वैसे तो कई तरह की बांसुरियां होती है जो अलग अलग असर दिखाती है लेकिन बांस से बनी बांसुरी और चांदी की बांसुरी विशेष असर दिखाने वाली और कमाल की होती है। - चांदी की बांसुरी अगर आपके घर में होगी तो उस घर में पैसों से जूड़ी कोई परेशानी नहीं होगी। - सोने की बांसुरी घर में रखने से उस घर में लक्ष्मी रहने लग जाती है और ऐसे घर में पैसा ही पैसा होता है। - बाँस के पौधे से बनी होने के कारण लकड़ी की बांसुरी शीघ्र उन्नतिदायक प्रभाव देती है अत: जिन व्यक्तियों को जीवन में पर्याप्त सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही हो, अथवा शिक्षा, व्यवसाय या नौकरी में बाधा आ रही हो, तो उसे अपने बैडरूम के दरवाजे पर दो बाँसुरियों को लगाना चाहिए। - यदि घर में बहुत ही अधिक वास्तु दोष है, या दो से अधिक दरवाजे एक सीध में है, तो घर के मुख्यद्वार के ऊपर दो बांसुरी लगाने से लाभ मिलता है तथा वास्तु दोष धीरे धीरे समाप्त होने लगता है। - घर का कोई सदस्य अगर बहुत दिनों से बीमार हों या अकाल मृत्यु का डर या अन्य कोई स्वास्थ्य से सम्बन्धित बड़ी समस्या हो, तो प्रत्येक कमरें के ब

होली

होली... बसंत उत्सव... फाग... फागुन... एक ऐसा त्यौहार जिसमें सभी रिश्तों, दोस्ती आदि के मतभेद, मनमुटाव, गिले-शिकवे, दूरियां मिट जाती हैं... और मजबूत होती है रिश्तों की नाजुक डोर। होली को लेकर यह बात आधुनिक समाज में ही नहीं प्रचलित है अपितु पुरातन काल से ही होली का त्यौहार मिलन का प्रतिक माना गया है। होली को सबसे प्राचीन पर्व माना जाता है। होली की शुरूआत कब हुई इसकी ठीक-ठीक जानकारी नहीं है। परंतु पुराण आदि धर्म ग्रंथों में होली संबंधी अनेक कथाएं मिलती है। उन्हीं में से कुछ प्रमुख दंत कथाएं इस प्रकार है: प्रहलाद और होलिका होली का प्रारंभ प्रहलाद और होलिका के जीवन से जुड़ा है। प्रहलाद और होलिका की कथा विष्णु पुराण में उल्लेखित है। हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर वरदान प्राप्त कर लिया। अब वह न तो पृथ्वी पर मर सकता था न आकाश में, न दिन में, न रात में, न घर में, न बाहर, न अस्त्र से, न शस्त्र से, न मानव से मर सकता था न पशु से। वरदान के बल से उसने देवताओं-मानव आदि लोकों को जीत लिया और विष्णु पूजा बंद करा दी। परंतु पुत्र प्रहलाद को नारायण की भक्ति से विमुख नहीं कर सका। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को बहु

होली

प्रति वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होली पूजन- दहन तथा इससे अगले दिन गुलाल आदि रंगों से उल्लासपूर्ण उत्सव का चित्र भारत भर में कहीं भी देखा जा सकता है। होली दहनके पश्चात् तथा रंग खेलने में सभी परिचितों- अपरिचितों के प्रति सौहार्द एवं भ्रातृत्व का भाव इस पर्व की विलक्षणता को और अधिक विस्तृत छवि प्रदान करता है। मेरे घर में गोबर के उपले बना कर सामुदायिक होली की अग्नि द्वारा घर के आँगन में होली जलाना व उस अग्नि में गेहूँ- जौ के बालों को भूनना, अग्नि को अर्पित करने के पश्चात् घर के पास के परिवारों में उसे राम-राम कहते हुए वितरित करना, इस परम्परा का मैं साक्षी हूं। इससे गोधन के महत्व का होली के साथ सम्बन्ध भी स्थापित होता है, तथा परस्पर प्रेम- सौहार्द की भावना का भी। इस पर्व के ऐतिहासिक- सांस्कृतिक पक्ष के ज्ञान के रूप में प्राय हिरण्यकशिपु- प्रह्लाद- होलिका प्रकरण ही विख्यात है, इसके अतिरिक्त जानकारी का प्राय अभाव सा है, इसी कारण मैंने गत् वर्षों में होली के ऐतिहासिक सन्दर्भों को खोजने का जो प्रयास किया, उसके परिणामस्वरूप प्राप्त सूचनाओं को यहाँ उद्धृत करने का प्रयास कर रहा हूँ। इसका अधिकाधि

अंगूर

अंगूर खाने के बाद तुरंत स्फूर्ति अनुभव करते हैं। अंगूर विटामिनों का भी सबसे अच्छा स्रोत हैं। विटामिन का सेवन खाली पेट ज्यादा लाभदायक होता है इसलिए अंगूर का सेवन प्रात: काल करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। लाल और काले रंग के अंगूर शाम के समय खाए जा सकते हैं। अंगूर के सेवन से फेफड़ों मे जमा कफ निकल जाता है, इससे खांसी में भी आराम आता है। अंगूर जी मिचलाना, घबराहट, चक्कर आने वाली बीमारियों में भी लाभदायक है।श्वास रोग व वायु रोगों में भी अंगूर का प्रयोग हितकर है।नकसीर एवं पेशाब में होने वाली रूकावट में भी हितकर है।पके हुए अंगूर का रस मायग्रेन का घरेलू इलाज माना जाता है। अंगूर हृदय को स्वस्थ रखता है, साथ-साथ दिल की धड़कन और दिल के दर्द में भी लाभकारी पाया गया है। अच्छी मात्रा में थोड़े दिन अगर अंगूर का रस सेवन करे तो किसी भी रोग को काबू में लाया जा सकता है। हृदय रोगियों के लिए अंगूर का रस काफी लाभकारी हो सकता है। अंगूर का महत्व पानी और पोटैशियम की प्रचुर मात्रा के कारण भी है। इसी तरह अलब्युमिन और सोडियम क्लोराइड की मात्रा कम होने के कारण ये गुर्दे की बीमारी में लाभकारी हैं। अंगूर में प्

शुभ चिन्ह

घर के बाहर मेन गेट पर लक्ष्मी जी के पैरों के निशान बनाने से इंसान मालामाल हो जाता है, लेकिन पैरों के निशान खास तरह से बने हुए होना चाहिए। हिन्दु शास्त्रों के अनुसार घर में सुख-शांति और समृद्धि के लिए कई तरह के शुभ चिन्ह बनाएं जाते हैं। शास्त्रों और वास्तु के अनुसार कई खास शुभ चिन्ह बताए गए हैं जो घर से सभी परेशानियों को दूर रखते हैं। इन्हीं निशानों में स्वस्तिक, ऊँ, ऊँ नम: शिवाय, श्री, श्रीगणेश आदि शामिल हैं। परिवार के सभी लोगों के अच्छे जीवन के लिए जरूरी है कि घर के मेन गेट पर कोई ना कोई शुभ चिन्ह जरूर लगाया जाए। कुछ निशान मेन गेट पर या दीवार पर ऊपर की ओर लगाए जाते हैं लेकिन कुछ चिन्ह दरवाजे के नीचे भी लगाने चाहिए। घर में पैसा तभी आने लगेगा जब महालक्ष्मी की कृपा आपको मिले। माता लक्ष्मी को खुश करने के कई उपाय बताए गए हैं, इन्हीं में से एक है देवी के पैरों के निशान मुख्य द्वार पर जमीन पर लगाना। मुख्य के नीचे बाहर की ओर देवी लक्ष्मी के लाल या पीले रंग के पैरों के चिन्ह बनाए जाते हैं। इससे सभी देवी-देवताओं की शुभ दृष्टि हमारे घर और परिवार वालों पर हमेशा बनी रहती है। ज्योतिष के अनुसार

बदलते मौसम में खांसी

बदलते मौसम में कोई भी खांसी की गिरफ्त में आ सकता है। इसके अलावा कई बार एलर्जी या ठंडा-गर्म खाने से भी खांसी हो जाती है। लेकिन लगातार खांसी बने रहना चिंता का विषय है क्योंकि खांसी क ई बड़े रोगों का कारण भी बन सकती है। इसीलिए जब खांसी हो तो इन घरेलू उपायों को जरूर अपनाएं, कैसी भी खांसी हो शीघ्र राहत मिलेगी। - 10 ग्राम फिटकरी को तवा गर्म करके उस पर रख दें। थोड़ी देर बुदबुदाहट के बाद वह फिटकरी ठंडी होकर बैठ जावेगी । फिर उसी फिटकरी को चाकू जैसी किसी नोकदार वस्तु से उस गर्म तवे पर पलट दें। थोड़ी देर में वह फिटकरी बुदबदाते दिखेगी व बैठ जावेगी । यह शोधित फिटकरी कहलाती है । इस फिटकरी को बेलन की मदद से बिल्कुल बारीक पीस लें और इसमें 100 ग्राम शक्कर का बुरा मिलाकर इसे एकजान करके इसकी बराबर वजन की 15 पुडिय़ा बना लें। अगर खांसी कफ वाली हो तो इस पुडिय़ा को सुबह-शाम पानी से लें, सुखी हो तो गुनगुने दूध से इसका सेवन करें।

जानवर भी आपका भविष्य बता सकते हैं

आपको यकीन नहीं होगा ये जानकर कि क्या जानवर भी आपका भविष्य बता सकते हैं। लेकिन ये सच है। ये बात तो रहस्य है कि ये जानवर कैसे बता देते हैं कि आने वाले कल में क्या होने वाला है लेकिन ज्योतिष का मानना है कि जानवरों को पूर्वाभास हो जाता है कि आने वाले कल में क्या घटना होने वाली है। जनिए कैसे गाय- अगर आपका कोई काम होने वाला है या आप किसी काम के लिए जा रहे हैं तब गाय रम्भा दे तो समझ लेना चहिए आपका सोचा हुआ काम पूरा होगा। कौआ- अगर आपके साथ कुछ बुरा या अशुभ होने वाला है तो कौआ आपके सिर पर चौंच मार के आपको बाता देगा। कुत्ता- अगर आपके साथ कुछ बुरा या अशुभ होने वाला है तो कुत्ता आपके घर की तरफ मुंह कर के रोने लगेगा। बिल्ली- अगर आपके साथ कुछ बुरा होने वाला है तो बिल्ली रास्ता काट लेगी। कबूतर- अगर आपके घर पर कबूतरों का डेरा लगा है तो समझना चाहिए घर का कोई सदस्य कम होने वाला है या धीरे-धीरे वो घर सुनसान होने वाला है।

केला एक सम्पूर्ण आहार है

केले को पूजा-पाठ से लेकर सौन्दर्य बढ़ाने में प्राचीन समय से उपयोग में लाया जा रहा है। केला एक सम्पूर्ण आहार है यह वीर्यवर्धक, शुक्रवर्धक है। नेत्र रोग में लाभदायक है, यह एक शक्तिदायक आहार है। खाना खाने के बाद केला खाने से भोजन आसानी से पच जाता है। कॉन्स्टिपेशन के मरीजों के लिए भी यह अच्छा रहता है। पेट की सुजन में केला आसानी से पच जाता है जबकि दूसरे पदार्थ मुश्किल से पचते है।टायफाइड तथा अन्य ज्वरों में केले का पथ्य बहुत लाभ देता है। आंतों के अल्सर तथा दूसरे रोग हो जाने पर रोजाना 6 से 9 केले खिलाने से लाभ होता है। खून की कमी को दूर करता है तथा गले की सुजन में लाभकारी है। गाउट रोग में यह मूत्र की यूरिक अम्ल घुलाने की शक्ति बढ़ा देता है। रोज सुबह एक केला और एक गिलास दूध पीने से वजन कंट्रोल में रहता है और बार- बार भूख भी नहीं लगती। केला खाने से हाई ब्लड प्रेशर और यूरीन की समस्या को दूर करने में मदद मिलती है कच्चे केले को दूध में मिलाकर लगाने से त्वचा निखर जाती है और चेहरे पर भी चमक आ जाती है। गर्भावस्था में महिलाओं के लिए केला बहुत अच्छा होता है क्योंकि यह विटामिन से भरपूर होता है। केले

एलोवेरा

एलोवेरा पौधे को घृतकुमारी, कुमारी, घी-ग्वार भी कहा जाता है। एलोवेरा का जीवन देने वाली यानी संजीवनी आयुर्वेदिक औषधी भी मानी जाती है। घी ग्वार को पेट के लिए अमृत माना गया है। साथ ही स्कीन प्रॉब्लम्स और हेयर प्रॉब्लम्स के लिए भी इसे वरदान माना गया है। एलोवेरा के इन गुणों को तो सभी जानते हैं। लेकिन इसका उपयोग कैसे किया जाए ये बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं एलोवेरा के ऐसे ही कुछ प्रयोग जिनसे आपका चेहरा चमकने लगेगा और बालों की समस्याएं भी दूर हो जाएंगी। - एलोवेरा के पत्तों के रस में नारियल के तेल की थोड़ी मात्रा मिलाकर कुहनी, घुटने व एडिय़ों पर कुछ देर लगाकर धोने से इन स्थानों की त्वचा का कालापन दूर होता है। - सुबह उठकर खाली पेट एलोवेरा की पत्तियों का सेवन करने से पेट में कब्ज की समस्या से निजात मिलती है। - गुलाबजल में एलोवेरा का रस मिलाकर त्वचा पर लगाने से त्वचा की खोई नमी लौटती है। - एलोवेरा के पल्प में मुलतानी मिट्टी या चंदन पावडर मिलाकर लगाने से त्वचा के कील-मुंहासे आदि मिट जाते हैं। - एलोवेरा जेल को सिर्फ आधा लगाने के बाद आप उनको धो सकते हैं। ऐसा आप सिर्फ महीन

संतरे के छिलके

क्या आप जानते हैं कि सिर्फ संतरे ही नहीं बल्कि संतरे के छिलके भी हमारे शरीर के लिए बहुत उपयोगी है। संतरे के छिलकों में विटामिन सी मात्रा में मौजूद रहता है। इसी कारण ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। विटामिन सी होने के कारण ही यह त्वचा को जवान रखता है और बालों को झडऩे से रोकता है। संतरे के छिलके का उपयोग- - संतरे के छिलके प्राकृतिक रूप से बढ़ते वजन को नियंत्रित करते हैं। - संतरे के छिलके कैंसर से बचाते हैं। - संतरों के छिलके पीस कर लेप लगाने से अथवा छिलके रगडऩे से कुछ ही दिनों में मुंहासे मिट जाते हैं। - संतरे के छिलकों को पानी में पीस कर लेप लगाने से खुजली मिटती है और इसे लगाने से फुंसियों से भी छुटकारा मिलता है। - संतरे के पिछले को पीस कर इसके पाउडर से बाल मुलायम व चमकदार बनते हैं। - संतरे के छिलके का पाउडर बनाकर उसमें कुछ बुंदें नींबू के रस की डाले और थोड़ा सा दही डालकर मिलाएं और चेहरे पर लगाएं। इससे त्वचा कोमल और आकर्षक बन जाती है। - संतरे के छिलकों में पेक्टिन पाया जाता है जिसे प्राकृतिक फाइबर के रूप में भी जाना जाता है। इसकी वजह से आपकी पेट की सारी बीमारियां दूर

होलिका दहन

होलिका दहन पर्व के कई मत, मतांतर हैं। इसे मुख्य रूप से हिरण्य कश्यप की बहन होलिका के दहन का दिन माना जाता है, वहीं शास्त्रों में कई तरह के मत दिए गए हैं। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिन होलाष्टक के बाद होलिका दहन की परंपरा है। प्राचीन समय से पंरपरा है कि खेत से नव अन्न को यज्ञ हवन किया जाता है, यह परंपरा गांवों में अभी भी प्रचलित है। सामान्यत: रंगों को इस त्यौहार के संबंध में भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के दहन की कथा प्रचलित है। इसके साथ ही होली से कई मान्यताएं प्रचलित हैं- शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के दौरान मानव मन-मस्तिष्क में काम भाव रहता है। भगवान शंकर द्वारा क्रोधाग्नि से काम दहन किया गया था, तभी से होलिका दहन की शुरुआत होना भी माना गया है। एक अन्य कथा के अनुसार होलिका दहन पर्व को राजा हिरण्य कश्यप की बहन होलिका की याद में भी मनाया जाता है। होलिका को अग्नि स्नान कर सकने का वरदान था, जिसने भक्त प्रहलाद को गोद में बैठाकर अग्नि स्नान किया था। इसमें प्रहलाद का बचना और होलिका का जलना एक पर्व का रूप बन गया। होली इस पर्व के पीछे वैज्ञानिक क

भगवान का कक्ष

सुबह-सुबह घर के मंदिर में विराजित भगवान के दर्शन मात्र से हमारा दिन शुभ हो जाता है। साथ ही दिनभर सकारात्मक विचारों का प्रवाह बना रहता है। कार्यों में आ रही बाधाएं स्वत: ही समाप्त हो जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार मंदिर के आसपास का वातावरण बहुत ही संवेदनशील होता है। मंदिर में स्थित भगवान घर में होने वाली हर छोटी-बड़ी घटना को प्रभावित करते हैं। इसी वजह से जाने-अनजाने हमारे द्वारा यदि कोई गलत कार्य हो जाता है तो हमें उसके बुरे प्रभाव झेलना पड़ते हैं। ऐसा माना जाता है भगवान हर पल जागृत अवस्था में ही रहते हैं लेकिन रात के समय उन्हें प्रतिकात्मक रूप से विश्राम कराया जाना चाहिए। इसके लिए कुछ नियम बताए गए हैं। जिस प्रकार दिनभर के कार्य के बाद हमें थकान होती है और रात में विश्राम करने के बाद अगले दिन फिर से तरोताजा हो जाते हैं। ठीक इसी प्रकार प्रतिकात्मक रूप से रात के समय भगवान को विश्राम कराया जाना चाहिए। इसके लिए रात के समय घर के मंदिर को पर्दे से ढंक देना चाहिए। वैसे तो घर में भगवान का कक्ष या मंदिर अलग ही होना चाहिए लेकिन कुछ घरों में पर्याप्त जगह न होने के कारण भगवान को कमरे में या कीचन

हनुमान की भक्ति के गुण

तुलसीदास द्वारा लिखी श्री हनुमान चालीसा की हर चौपाई संकटमोचक श्री हनुमान की शक्ति और भक्ति के करिश्माई परिणामों की महिमा बताती है। धर्मग्रंथों में बताए श्री हनुमान के ऐसे दिव्य चरित्र, गुण और अतुलनीय शक्तियां ही युग-युगान्तर से धर्मावलंबियों के मन में श्री हनुमान भक्ति के लिए श्रद्धा, भक्ति और विश्वास जगाती है। यह भरोसा ही सारे शोक, संताप व रोग दूर करने में भी निर्णायक होता है। दरअसल, हनुमान चरित्र भक्ति और शक्ति का बेजोड़ संगम माना गया है। इसलिए जानिए, कैसे हनुमान की भक्ति और शक्ति का प्रभाव सांसारिक व्यक्ति को स्वस्थ्य और पीड़ामुक्त जीवन देने वाला होता है? इसका जवाब भी श्री हनुमान चरित्र और गुणों में मिल जाता है। जानिए, यह रहस्य - शास्त्रों के मुताबिक श्री हनुमान जितेन्द्रिय और प्रजापत्य ब्रह्मचारी है। श्री हनुमान का यह बेजोड़ गुण ही सांसारिक प्राणी के लिए हमेशा रोग और दु:ख से मुक्त रहने का श्रेष्ठ सूत्र माना गया है। इस दिव्य गुण के कारण ही श्री हनुमान भक्ति और उपासना के नियमों में पवित्रता, मर्यादा और संयम का पालन अहम माना गया है। श्री हनुमान के इन गुणों और भक्ति के नियम किसी

सूर्य देव की उपासना

रविवार का दिन सूर्य देव की उपासना का विशेष दिन होता है। ज्योतिष में सूर्य को मस्तिष्क का स्वामी भी माना गया है। इसलिए कुण्डली में सूर्य के अच्छे या बुरे प्रभाव बुद्धि और विवेक पर असर डालते हैं, जिससे जीवन में लाभ-हानि नियत होती है। अगर आप सुखी और स्वस्थ्य जीवन चाहते हैं या सूर्य दोष दूर कर बुद्धि व यश-सम्मान की कामना है तो यहां बताए जा रहे विशेष सूर्य मंत्रों की स्तुति का पाठ रविवार के दिन यहां बताई जा रही सरल विधि से करें - - सुबह स्नान कर भगवान सूर्य देव को तांबे के जल भरे कलश में लाल गंध, अक्षत, फूल डालकर अर्घ्य दें। - इसके बाद सूर्य की ओर मुख कर नीचे लिखी सूर्य मंत्र स्तुति का पाठ शक्ति, सद्बुद्धि, स्वास्थ्य और सम्मान की कामना से करें - नमामि देवदेवशं भूतभावनमव्ययम्। दिवाकरं रविं भानुं मार्तण्डं भास्करं भगम्।। इन्दं विष्णुं हरिं हंसमर्कं लोकगुरुं विभुम्। त्रिनेत्रं त्र्यक्षरं त्र्यङ्गं त्रिमूर्तिं त्रिगतिं शुभम्।। - अंत में सूर्यदेव की धूप, दीप से आरती कर दीपज्योति ग्रहण करें।