महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती
धर्मग्रंथों में धर्मयुद्धों से जुड़े प्रसंग हो या विज्ञान की अवधारणाएं, अस्तित्व बनाए रखने के लिए संघर्ष की अहमियत उजागर करते हैं। वजूद के लिये यह जद्दोजहद जीवन, मान-सम्मान या जीवन से जुड़े किसी भी विषय से जुड़ी हो सकती है। किंतु संघर्ष चाहे जैसा हो, शक्ति के बिना संभव नहीं।
यही कारण है कि शक्ति अस्तित्व का ही प्रतीक मानी गई है। चूंकि यह शक्ति मोटे तौर पर संसार में रचना, पालन व संहार रूप में दिखाई देती है। प्राकृतिक व व्यावहारिक रूप से स्त्री भी सृजन व पालन शक्ति की ही साक्षात् मूर्ति है। इसी शक्ति की अहमियत को जानकर ही सनातन संस्कृति में स्त्री स्वरूपा देवी शक्तियां पूजनीय और सम्माननीय है।
नवरात्रि शक्ति स्वरूप की पूजा का विशेष काल है। शक्ति पूजा में खासतौर पर महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती का विधान है, जो क्रमश: शक्ति, ऐश्वर्य और ज्ञान की देवी मानी जाती है।
व्यावहारिक जीवन की नजर से तीन शक्तियों का महत्व यही है कि तरक्की और सफलता के लिए सबल व दृढ़ संकल्पित होना जरूरी है। जिसके लिये सबसे पहले विचारों को सही दिशा देना यानी नकारात्मकता, अवगुणों व मानसिक कलह से दूर होना जरूरी है। महाकाली पूजा के पीछे यही भाव है। यही कारण है कि धन और ज्ञान पाने की कामना से नवरात्रि में पहले तीन दिन महाकाली पूजा की जाती है। बाद के तीन-तीन दिनों में महालक्ष्मी और महासरस्वती की पूजा।
महालक्ष्मी पावनता और महासरस्वती विवेक शक्ति का प्रतीक है, जो मन और तन को सशक्त बनाती है। ऐसी दशा ज्ञान, संस्कार आत्मविश्वास, सद्गगुणों, कुशलता और दक्षता पाने के लिये अनुकूल होती है। जिसके द्वारा कोई भी इंसान मनचाहा धन, वैभव बंटोरने के साथ ही सुखी और शांत जीवन की कामनाओं को सिद्ध कर सकता है।
इस तरह आज के दौर में इन तीन शक्तियों की पूजा का संदेश यही है कि जीवन में निरोगी, चरित्रवान, आत्म-अनुशासित, कार्य-कुशल व दक्ष बनकर शक्ति संपन्न बने और कामयाबी की ऊंचाईयों को छूकर प्राण, प्रतिष्ठा और प्रभाव को कायम भी रखें और इजाफा भी करें।
Comments