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Showing posts from 2014

Sons of Krishna

Krishna married 16, 108 wives as requested by them! Out of 16.108 wives of Krishna, every wife had 10 children who had the same nature of Krishna! Thus, Krishna had totally 1,61,080 Children. Let us see the list of the 80 children born through the first 8 wives! (1) The names of the children of Rukmani: Prathyumnan, Charudeshnan, Sudheshnan, Charudehan, Seecharu, Saaraguptha, Bathracharu, Charuchandharin, Visaru & Charu! (2) The names of the children of Sathyabama are: Banu, Subanu, Swarabanu, Prabanu, Banuman, Chandrabanu, Pragathbanu, Athibanu, Sribanu & Prathibanu! (3) The 10 sons through Krishna’s third wife Jambhavathi: Samban, Sumithra, Prujith, Sadhajith, Sagasrajith, Vijayan, Chitrakethu, Vasuman, Dravidan & Kirathu. Krishna had more attachment with the sons through Jambhavathi. (4) The 10 sons through Krishna’s Fourth wife Sathya, who was the daughter of the king of Nagnajith: Veera, Chandra, Ashvasena, Chitragu, Vegavan, Virusha, Aman, Sangu, Vasu, Kunti. Ku

चमत्कारिक मंदिर मेहंदीपुर बालाजी..!!!

कहावत है चमत्कार को नमस्कार। राजस्थान के दौसा जिले में मेहंदीपुर बालाजी का चमत्कारिक मंदिर है। बाल रूप हनुमान का स्वरूप ही बालाजी के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर जयपुर-आगरा मार्ग पर जयपुर से सौ किमी और आगरा से १३५ किमी और दिल्ली से वाया २७५ किमी की दूरी पर स्थित है। आगरा-जयपुर मार्ग पर बालाजी मोड़ एक स्थान है। हरेक बस यहां रुकती है। यहां से मंदिर तीन किमी दूर है और दर्शनार्थइयों को लाने-ले जाने के लिए यहां से टेंपो, जीप या रिक्शा आदि हर समय मिलते हैं। इस मंदिर में भारत के हर स्थान से दर्शनार्थी तीन में से किसी उद्देश्य को लेकर आते हैं। पहला मात्र दर्शन, दूसरा मनोकामना की पूर्ति के लिए अर्जी लगाना और तीसरा भूत-प्रेत से पीडि़तों के लिए मुक्ति के लिए। इस मंदिर में तीन देवताओं का वास है-बाल रूप में हनुमान जी, भैंरो बाबा और प्रेत राज सरकार। प्रत्येक दर्शनार्थी तीनों देवों के दर्शन कर कृतार्थ महसूस करता है। कामना पूर्ति के लिए यहां अर्जी लगायी जाती है। इसका नियम से पालन करने वाले की बालाजी तत्काल सुनते हैं। नियम इस तरह है-सबसे पहले हलवाई से दरख्वास्त लेते हैं। यह कागज पर कलम से लिखी दरख

कर्म बाई जी भगवान को बाल भाव से भजती थी

कर्म बाई जी भगवान को बाल भाव से भजती थी. बिहारी जी से रोज बाते किया करती थी. एक दिन बिहारी जी से बोली - तुम मेरी एक बात मानोगे. ------------------------------------------------------------------- भगवान ने कहा- कहो ! क्या बात है? कर्म बाई जी ने कहा- मेरी एक इच्छा है कि एक बार अपने हाथो से आपको कुछ बनाकर खिलाऊ. बिहारी जी ने कहा- ठीक है! अगले दिन कर्माबाई जी ने खिचड़ी बनायीं और बिहारी जी को भोग लगाया,जब बिहारी जी ने खिचड़ी खायी, तो उन्हे इतनी अच्छी लगी, कि वे रोज आने लगे. कर्मा बाई जी रोज सुबह उठकर सबसे पहले खिचड़ी बनाती बिहारी जी भी सुबह होते ही दौड़कर आते और दरवाजे से ही आवाज लगाते, माँ में आ गया जल्दी से खिचड़ी लाओ कर्मा बाई जी लाकर सामने रख देती भगवान भोग लगाते और चले जाते एक बार एक संत कर्माबाई जी के पास आये और उन्होंने सब देखा तो वे बोले आप सर्वप्रथम सुबह उठाकर खिचड़ी क्यों बनाती है, ना स्नान किया, ना रसोई घर साफ की, आप को ये सब करके फिर भगवान के लिये भोग बनाना चाहिये,अगले दिन कर्माबाई जी ने ऐसा ही किया. जैसे ही सुबह हुई भगवान आये और बोले माँ में आ गया, खिचड़ी लाओ. कर्मा बाई जी

Krishna and Shrila Prabhupada

Acharya Prabhakar said that on Shri Krishna Janmashtami in 1954, he had to go to Delhi. When he returned to Jhansi, he took a little rest, woke up at 1:00 am and heard Shrila Prabhupada ecstatically playing mridanga in the temple room. Prabhupada was chanting in total bliss. Acharya Prabhakar went upstairs and saw Shrila Prabhupada bouncing around the temple room performing kirtan. Prabhupada was wearing a kadamba flower garland that went all the way down to his feet. Kadamba flowers are very rare in Jhansi and when they are available they are usually the size of a golf ball.But the ones Prabhupada was wearing were big, the size of tennis balls. And he said that the atmosphere right down to the atoms in the room was not material, aprakrita. The place was surcharged with the fragrance of the heavenly planets. Acharya Prabhakar wanted to ask Shrila Prabhupada, “Where did this garland come from? It is not available from the market.” But Shrila Prabhupada would not answer. His Divine Grace

मृत्यु के 47 दिन बाद आत्मा पहुंचती है यमलोक, ये होता है रास्ते में --

मृत्यु एक ऐसा सच है जिसे कोई भी झुठला नहीं सकता। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद स्वर्ग-नरक की मान्यता है। पुराणों के अनुसार जो मनुष्य अच्छे कर्म करता है, वह स्वर्ग जाता है, जबकि जो मनुष्य जीवन भर बुरे कामों में लगा रहता है, उसे यमदूत नरक में ले जाते हैं। सबसे पहले जीवात्मा को यमलोक ले जाया जाता है। वहां यमराज उसके पापों के आधार पर उसे सजा देते हैं। मृत्यु के बाद जीवात्मा यमलोक तक किस प्रकार जाती है, इसका विस्तृत वर्णन गरुड़ पुराण में है। गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि किस प्रकार मनुष्य के प्राण निकलते हैं और किस तरह वह पिंडदान प्राप्त कर प्रेत का रूप लेता है। - गरुड़ पुराण के अनुसार जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, वह बोल नहीं पाता है। अंत समय में उसमें दिव्य दृष्टि उत्पन्न होती है और वह संपूर्ण संसार को एकरूप समझने लगता है। उसकी सभी इंद्रियां नष्ट हो जाती हैं। वह जड़ अवस्था में आ जाता है, यानी हिलने-डुलने में असमर्थ हो जाता है। इसके बाद उसके मुंह से झाग निकलने लगता है और लार टपकने लगती है। पापी पुरुष के प्राण नीचे के मार्ग से निकलते हैं। - मृत्यु के समय दो यमदूत आते हैं। व

शरणागति-श्री हनुमान ऐसे भक्त

श्री हनुमान ऐसे भक्त के रूप में भी पूजनीय है, जिनकी भक्ति सर्वश्रेष्ठ, विलक्षण और अतुलनीय है। जिससे वह भक्त शिरोमणि भी पुकारे जाते हैं। हालांकि युग-युगान्तर से धर्मशास्त्रों में अनेक भक्त और उनकी ईश भक्ति के अनेक रूपों की अपार महिमा बताई गई है। किंतु श्री हनुमान की रामभक्ति की एक खासियत उनको श्रेष्ठ व सर्वोपरि बनाती है। वह है - शरणागति। शरणागति यानी शरण में चले जाना। हालांकि शरणागति भी अलग-अलग रूपों में देखी जाती है। कमजोरी, भय या स्वार्थ से सबल का आसरा क्षणिक लाभ दे सकता है, किंतु लंबे वक्त के लिए नकारात्मक नतीजे भी देने वाला भी होता है। किंतु यश और सफलता के लिए गुण, शक्ति संपन्न होने पर भी निर्भयता के साथ अपनाई शरणागति ही सार्थक होती है। यह शरण देने वाले और शरणागत दोनों को ही बलवान और सुखी करती है। शक्तिधर श्रीराम और बल, बुद्धि, विद्या संपन्न श्री हनुमान के भक्त और भगवान के गठजोड़ में भी शरणागति का ऐसा ही आदर्श छुपा है। जिसका संबंध श्री हनुमान द्वारा राम की शरणागति से है, जो व्यावहारिक जीवन में लक्ष्य प्राप्ति का एक बेहतरीन सूत्र सिखाता है। असल में शरणागति के पीछे समर्पण और न

........... पाप कहाँ जाता है ...........

..... एक बार एक ऋषि ने सोचा कि लोग गंगा में पाप धोने जाते है, तो इसका मतलब हुआ कि सारे पाप गंगा में समा गए और गंगा भी पापी हो गयी . अब यह जानने के लिए तपस्या की, कि पाप कहाँ जाता है ? तपस्या करने के फलस्वरूप देवता प्रकट हुए , ऋषि ने पूछा कि भगवन जो पाप गंगा में धोया जाता है वह पाप कहाँ जाता है ? भगवन ने जहा कि चलो गंगा से ही पूछते है , दोनों लोग गंगा के पास गए और कहा कि , हे गंगे ! जो लोग तुम्हारे यहाँ पाप धोते है तो इसका मतलब आप भी पापी हुई . गंगा ने कहा मैं क्यों पापी हुई , मैं तो सारे पापों को ले जाकर समुद्र को अर्पित कर देती हूँ , .....अब वे लोग समुद्र के पास गए , हे सागर ! गंगा जो पाप आपको अर्पित कर देती है तो इसका मतलब आप भी पापी हुए . समुद्र ने कहा मैं क्यों पापी हुआ , मैं तो सारे पापों को लेकर भाप बना कर बादल बना देता हूँ , .....अब वे लोग बादल के पास गए, हे बादलों ! समुद्र जो पापों को भाप बनाकर बादल बना देते है , तो इसका मतलब आप पापी हुए . बादलों ने कहा मैं क्यों पापी हुआ , मैं तो सारे पापों को वापस पानी बरसा कर धरती पर भेज देता हूँ , जिससे अन्न उपजता है , जिसको मानव खाता है .