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Showing posts from August, 2011

सांई बाबा

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हम घर में कई देवी-देवताओं, भगवान की प्रतिमा या मूर्ति अवश्य ही रखते हैं। विद्वानों घर में भगवान की प्रतिमा अवश्य ही रखना चाहिए। हिंदू धर्म शास्त्रों में असंख्य देवी-देवता बताए गए हैं। सभी अपने भक्तों को सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। कई लोग संत-महात्माओं की भी तस्वीर या मूर्ति घर में रखते हैं। ऐसे ही एक महात्मा हैं शिर्डी के सांई बाबा। बड़ी संख्या में लोग सांई बाबा को भगवान का रूप ही मानते हैं। शिर्डी के सांई बाबा के भक्त दुनियाभर में फैले हैं। वे एक फकीर ही थे लेकिन उनके चमत्कारों की कई किस्से-कहानियां अक्सर हम सुनते रहते हैं। सांई बाबा ने हमेशा ही सभी के दुखों और परेशानियों को दूर किया है इसी वजह से उनके भक्तों की काफी बढ़ी है। नित्य उनके दर्शन से हमारा दिन अच्छा रहता है, सभी कार्य समय पर पूर्ण हो जाते हैं और जीवन के दुख-दर्द भी दूर हो जाते हैं। प्रतिदिन उनके दर्शन के लिए सांई बाबा की मूर्ति या फोटो घर में अवश्य रखना चाहिए। घर में सुख-समृद्धि बनी रहेगी। धन संबंधी रुकावटें दूर होंगी। साथ ही इन्हें घर में रखने से कई दोषों का प्रभाव भी नष्ट हो जाता है। परिवार के सभी सदस्यों में सकारात

रासलीला का फोटो कहां लगाएं?

विष्णु अवतार श्रीकृष्ण का नाम ही प्राणियों के पापों को नष्ट करने वाला है। मात्र श्रीकृष्ण के स्मरण से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। भगवान कृष्णा सभी सुखों को प्रदान करने वाले हैं। इनकी भक्ति से हमारे सभी कष्ट, क्लेश, बाधाएं दूर हो जाती हैं और जीवन में खुशहाली फैल जाती है। इनके दर्शन से हमारे कई जन्मों के पाप स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं। इसी वजह से अधिकांश घरों में भगवान की श्रीकृष्ण की तस्वीर या मूर्ति अवश्य ही रहती है। कुछ लोग श्रीकृष्ण की रासलीला के चित्र में भी रखते हैं। श्रीकृष्ण को सभी 64 कलाओं से युक्त माना गया है। इनका व्यक्तित्व इतना आकर्षक है कि गोकुल में सभी गोपियां इनके रूप को देखकर मोहित थीं। सभी श्रीकृष्ण से नि:स्वार्थ प्रेम करती थीं। शास्त्रों में उल्लेख है कि इन सभी गोपियों के साथ श्रीकृष्ण ने रासलीला की। रासलीला का मूल भाव नि:स्वार्थ प्रेम ही है। जो कि इनके चित्रों में भी साफ झलकता है। ये चित्र इतने सुंदर और आकर्षक होते हैं कि सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इसी वजह से इन चित्रों को घर में लगाना सभी पसंद करते हैं। घर में श्रीकृष्ण की रासलीला के चित्र लगाने के

श्रीकृष्ण की ये 6 अद्भुत बातें अपनाएं..........

श्रीकृष्ण पूर्ण कलाओं के अवतार हुए हैं। सौलहों कलाएं जिनकी विकसित हों, ऐसे अवतार थे श्रीकृष्ण। श्रीकृष्ण ने स्वयं तो सफल और सार्थक जीवन जीया ही साथ ही अपने करीबी दूसरे लोगों को भी जीवन को सार्थक बनाने, संवारने, निखारने में सहयोग किया। जीवन पूरी तरह से खिल व महक सके इसके सारे सूत्र श्रीकृष्ण ने दिये। जीवन निखार के 6 अद्भुत सूत्र: 1. समर्पण- पहला और सबसे अहम् सूत्र जो जिंदगी को बनाता, संवावता और निखारता है, वह है अपने काम के प्रति पूरा का पूरा समर्पण। समर्पण ऐसा कि जिसमे फिर कोई भी शंका और संदेह की गुंजाइश न रह जाए। 2. अविचलन- काम के परिणाम या नतीजे को लेकर भी किसी प्रकार की बैचेनी या उतावलापन न हो। किसी भी प्रकार का विचलन समस्या ही पैदा करेगा, इससे आपकी एकाग्रता तो टूटेगी ही साथ में गति भी धीमी पड़ जाएगी। 3. संघर्ष- जिंदगी में कठिनाइयों, मुसीबतों, दु:खों या कड़वाहटों का होना सामान्य बात है। इस हकीकत को हर कोई जानता है। लेकिन बहुत गहराई में छुपी हुई सच्चाई यह है कि जीवन में दुखों के रूप में आने वाले संघर्ष ही जीवन का सौन्दर्य हैं। आप दुनिया के किसी भी सुन्दर और सफल जीवन क

हनुमानजी से सीख लें

योजना जितनी स्पष्ट पूर्व नियोजित होगी परिणाम उतने ही सफलता लिए रहेंगे। आइए, किसी कार्य से पूर्व प्लानिंग कैसे की जाए हनुमानजी से सीख लें। सुंदरकाण्ड में जब वे सीताजी की खोज के लिए लंका की ओर उडऩे की तैयारी कर रहे थे तब तुलसीदासजी ने लिखा - सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।। बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी।। समुद्र के तीर पर एक सुंदर पर्वत था। हनुमानजी खेल-खेल में ही कूद कर उस पर जा चढ़े और बार-बार श्री रघुवीर का स्मरण करके हनुमानजी उस पर से बड़े वेग से उछले। यहां एक शब्द आया है कौतुक यानी खेल-खेल। हनुमानजी जा तो रहे थे युद्धभूमि में लेकिन वृत्ति थी खेल की। हनुमानजी कहते हैं जिंदगी को खेल की तरह लिया जाए। खेल में भी एक हारेगा, दूसरा जीतेगा। लेकिन खेल में प्रतिस्पर्धा होती है हिंसा नहीं होती, वैमनस्य नहीं होता। हारने वाला खिलाड़ी जानता है एक दिन फिर जीतने का मौका मिलेगा। पर्वत पर चढऩे का अर्थ है अपना आधार दृढ़ रखा। जिन्हें जीवन में लम्बी छलांग लगाना हो उन्हें अपना बेस मजबूत रखना चाहिए। इसका सीधा सा अर्थ है योजना व्यवस्थित रखी जाए उसके बाद काम किया जा

बुलाएं हनुमानजी को अपने जीवन में...

भक्ति में हृदय की प्रमुखता होती है। बुद्धि से भक्ति करने में बाधा आएगी। प्रेम का स्थान हृदय है। हनुमानचालीसा की अंतिम चौपाई में तुलसीदासजी ने भगवान से निवेदन किया है कि हमारे हृदय में विराजिए। हनुमानचालीसा मन से आरंभ हुई थी। पहले ही दोहे में श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।। यहां निज मनु का अर्थ है कि मन रूपी दर्पण को गुरु के चरणों की धूल से साफ किया जाता है। तो मन को लगातार साफ, शुद्ध करें और हृदय में परमात्मा के लिए स्थान बनाएं। 40वीं चौपाई में लिखा गया है - तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महं डेरा।। हे हनुमानजी! यह तुलसीदास सदा सर्वदा के लिए श्रीराम (हरि) का सेवक है। ऐसा समझकर आप उसके (तुलसीदास) हृदय में निवास करिए। इस चौपाई में ‘नाथ’ इसलिए कहा कि यदि हमको लगे कि हम अनाथ हैं, तो फिर हमारे भीतर बाबा हनुमंतलालजी की कृपा का अनुभव करें, हम अनाथ नहीं रहेंगे। आगे ‘डेरा’ शब्द का प्रयोग किया है। गोस्वामीजी ने स्पष्ट मांग की है कि हे हनुमानजी! अकेले मत आना, पूरा डेरा-डंडा लेकर आना। डेरा-डंडा से मतलब है कि आप तो आएंगे ही, सा

हनुमानजी से सीखें गलत का विरोध

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सहमति और विरोध की जीवन में अलग-अलग स्थिति में जरूरत पड़ती है, लेकिन यदि गलत में सहमति हो जाए और सही का विरोध हो जाए तो नुकसान भी उठाना पड़ता है। कहां सहमति देना और कहां विरोध करना है, इसमें हनुमानजी बहुत जागरूक थे। जब सुंदरकांड में वे लंका प्रवेश के समय लंका की सुरक्षा अधिकारी लंकिनी के सामने आते हैं, तो मच्छर के समान छोटा-सा आकार लेकर हनुमानजी लंका में प्रवेश कर रहे होते हैं और लंकनी उन्हें पकड़ लेती है। तुलसीदासजी ने लिखा है- जानेहि नहीं मरम् सठ मोरा। मोर अहार जहां लगि चोरा।। हे मूर्ख! तूने मेरा भेद नहीं जाना। जितने चोर हैं, वे सब मेरे आहार हैं। लंकिनी ने हनुमानजी को चोर बोला। बस, यहीं से हनुमानजी ने विरोध का स्वर प्रकट किया। उन्होंने लंकिनी से कहा- तुम मुझे क्या चोर बता रही हो, दुनिया का एक बड़ा चोर रावण हमारी मां सीता को चुरा लाया है। जब सुरक्षा व्यवस्था चोरों की ही रक्षा करने लग जाए, तब हनुमान का विरोध आरंभ होता है। हनुमानजी ने लंकिनी को एक मुक्का मारा और उसके मुंह से रक्त निकल आया। यह उनका सीधा विरोध था। गलत के प्रति आवाज उठाना, अनुचित का प्रतिकार करना हनुमानजी के चरित्र