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Itne Ram Kahan se laun

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भ्रामरीदेवी

देवताओं की सहायता के लिए देवी ने अनेक अवतार लिए। भ्रामरी देवी का अवतार लेकर देवी ने अरुण नामक दैत्य से देवताओं की रक्षा की। इसकी कथा इस प्रकार है- पूर्व समय की बात है। अरुण नामक दैत्य ने कठोर नियमों का पालन कर भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या की। तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव प्रकट हुए और अरुण से वर मांगने को कहा। अरुण ने वर मांगा कि कोई युद्ध में मुझे नहीं मार सके, न किसी अस्त्र-शस्त्र से मेरी मृत्यु हो, स्त्री-पुरुष के लिए मैं अवध्य रहूं और न ही दो व चार पैर वाला प्राणी मेरा वध कर सके। साथ ही मैं देवताओं पर विजय प्राप्त कर सकूं। ब्रह्माजी ने उसे यह सारे वरदान दे दिए। वर पाकर अरुण ने देवताओं से स्वर्ग छीनकर उस पर अपना अधिकार कर लिया। सभी देवता घबराकर भगवान शंकर के पास गए। तभी आकाशवाणी हुई कि सभी देवता देवी भगवती की उपासना करें, वे ही उस दैत्य को मारने में सक्षम हैं। आकाशवाणी सुनकर सभी देवताओं ने देवी की घोर तपस्या की। प्रसन्न होकर देवी ने देवताओं को दर्शन दिए। उनके छह पैर थे। वे चारों ओर से असंख्य भ्रमरों (एक विशेष प्रकार की बड़ी मधुमक्खी) से घिरी थीं। उनकी मुट्ठी भी भ्रमरों से भरी थी।

राम स्तुति का पाठ करें-रामचरितमानस

तरक्की के बिना जिंदगी थम सी जाती है। पूरी मेहनत और साधना के उपयोग के बाद भी अनेक बार सफलता दूर रह जाती है। ऐसी स्थितियां किसी भी योग्य व्यक्ति को तोड़ सकती है। किंतु कर्म के साथ धर्म को भी जीवन में उतारा जाए तो कोई भी आत्मविश्वास के साथ कार्य में सफलता को सुनिश्चित कर सकता है। क्योंकि धर्मशास्त्रों में कुछ ऐसे देव स्त्रोत बताए गए हैं। जिनका पाठ मानसिक परेशानियों से छुटकारा देकर मनचाहे फल देता है। ऐसा ही पाठ है रामचरितमानस जैसे पावन ग्रंथ में मुनि अत्रि द्वारा की गई श्री राम स्तुति। व्यावहारिक जीवन में इस राम स्तुति के पाठ से नौकरी, व्यवसाय या किसी भी कार्यक्षेत्र में सफलता और तरक्की के साथ ऊंचा पद मिलता है। यह राम स्तुति रामचरितमानस के अरण्यकाण्ड में आई है। हर रोज देवालय में श्रीराम की प्रतिमा की पंचोपचार (गंध, अक्षत, फूल, धूप, दीप) पूजा के साथ इस रामस्तुति का पाठ करें। नमामि भक्त वत्सलं । कृपालु शील कोमलं ॥ भजामि ते पदांबुजं । अकामिनां स्वधामदं ॥ निकाम श्याम सुंदरं । भवाम्बुनाथ मंदरं ॥ प्रफुल्ल कंज लोचनं । मदादि दोष मोचनं ॥ प्रलंब बाहु विक्रमं । प्रभोऽप्रमेय वैभवं ॥ निषंग चाप सायकं ।

नवरात्रि-देवी की पंचोपचार पूजा

किसी भी तरह की कमी या कमजोरी गंभीर परेशानियों का कारण बन सकती है। इसलिए अभाव या कमजोरी के प्रति हमेशा सचेत रहकर ही दु:ख और चिंताओं से बचा जा सकता है। खासतौर पर शरीर की कमजोरी तो सफल व सुखी जीवन की चाहत में बाधा माना गया है। यही कारण है कि निरोगी काया पहला सुख बताया गया है। व्यावहारिक रूप से तो बीमारी के बढऩे पर दवा आवश्यक और असरदार होती है। किंतु धर्म में आस्थावान लोग संकटमोचन के लिए भगवान को भी स्मरण करते हैं। देव शक्तियों के स्मरण से बेहतर सेहत के लिए नवरात्रि भी अहम घड़ी है। इससे जुड़ा वैज्ञानिक पहलू भी है। दरअसल, हिन्दू धर्म में शक्ति पूजा का पर्व नवरात्रि, दो ऋतुओं का मिलत काल होता है। जिससे मौसम में बदलाव से अनेक रोगाणुओं की सक्रियता स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है। शक्ति पूजा के जरिए इससे निपटने के लिये ही विशेष संयम और अनुशासन शरीर की ऊर्जा और शक्ति को बढ़ाने और वातावरण से तालमेल बनाने वाले सिद्ध होते है। अगर आप भी धर्म परंपराओं से जुड़े इस वैज्ञानिक लाभ को पाना चाहते हैं, तो शास्त्रों में बताए एक आसान देवी मंत्र का स्मरण रोगी या उसके परिजनों द्वारा करना मौसमी बीमारियों ही