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Babies born in Navaratra given free treatment by Doctors in Mathura

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पीपल के वृक्ष

हिंदू धर्म में पीपल के वृक्ष को बहुत ही पवित्र माना गया है। ऐसी मान्यता है कि जिसके घर में पीपल का वृक्ष होता है उसके घर कभी दरिद्रता नहीं आती और सुख-शांति बनी रहती है। विज्ञान ने भी पीपल के वृक्ष के महत्व को माना है। यहां हम आपको बता रहे हैं पीपल के वृक्ष से जुड़े कुछ तंत्र उपाय, जिससे आपकी कई समस्याओं का निदान हो जाएगा। उपाय धन प्राप्ति के लिए पीपल के पेड़ के नीचे शिव प्रतिमा स्थापित करके उस पर प्रतिदिन जल चढ़ाएं और पूजन-अर्चन करें। कम से कम 5 या 11 माला मंत्र का जप(ऊँ नम: शिवाय) करें। कुछ दिन नियमित साधना के बाद परिणाम आप स्वयं अनुभव करेंगे। प्रतिमा को धूप-दीप से शाम को भी पूजना चाहिए। हनुमानजी की कृपा पाने के लिए हनुमानजी की कृपा पाने के लिए भी पीपल के वृक्ष की पूजा करना शुभ होता है। पीपल के वृक्ष के नीचे नियमित रूप से बैठकर हनुमानजी का पूजन, स्तवन करने से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं और साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं। शनि दोष से बचने के लिए शनि दोष निवारण के लिए भी पीपल की पूजा करना श्रेष्ठ उपाय है। यदि रोज पीपल पर जल चढ़ाया जाए तो शनि दोष की शांति होती है। शनिवार की शाम प

Itne Ram Kahan se laun

Kalyug Betha Mar Kundali Jau To Mai Kaha Jau Ab To Har Ghar Me Ravan Baitha Itne Ram Kaha Se Lau Kalyug Betha Mar Kundali Jau To Mai Kaha Jau Ab Har Ghar Me Ravan Baitha Itne Ram Kaha Se Lau Dhasrath Kaushalya Jaise Maat Pita Ab Bhi Mil Jaye Per Raam Sa Putra Mile Na Jo Agya Le Van Jaye Dhasrath Kaushalya Jaise Maat Pita Ab Bhi Mil Jaye Per Raam Sa Putra Mile Na Jo Agya Le Van Jaye Bharat Lakhan Se Bhai Ko Mai Dhudh Kaha Se Ab Lau Ab Har Ghar Me Ravan Baitha Itne Ram Kaha Se Lau Jise Samajhte Ho Aapna Tum Jade Khodta Aaj Wahi Ramayan Ki Baate Jaise Lagti Hai Sapna Koi Jise Samajhte Ho Aapna Tum Jade Khodta Aaj Wahi Ramayan Ki Baate Jaise Lagti Hai Sapna Koi Tab Ki Dasi Ek Manthra Aaj Wahi Ghar Ghar Pau Ab Har Ghar Me Ravan Baitha Itne Ram Kaha Se Lau Saup Rahe Bagiya Ko Dekho Khud Hi Uske Rakhwale Apne Ghar Ki Neev Khodte Dekhe Maine Gharwale Saup Rahe Bagiya Ko Dekho Khud Hi Uske Rakhwale Apne Ghar Ki Neev Khodte Dekhe Maine Gharwale Tab Tha Ghar Ka Ek Hi Bhedi Aaj Wahi Gh

भ्रामरीदेवी

देवताओं की सहायता के लिए देवी ने अनेक अवतार लिए। भ्रामरी देवी का अवतार लेकर देवी ने अरुण नामक दैत्य से देवताओं की रक्षा की। इसकी कथा इस प्रकार है- पूर्व समय की बात है। अरुण नामक दैत्य ने कठोर नियमों का पालन कर भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या की। तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव प्रकट हुए और अरुण से वर मांगने को कहा। अरुण ने वर मांगा कि कोई युद्ध में मुझे नहीं मार सके, न किसी अस्त्र-शस्त्र से मेरी मृत्यु हो, स्त्री-पुरुष के लिए मैं अवध्य रहूं और न ही दो व चार पैर वाला प्राणी मेरा वध कर सके। साथ ही मैं देवताओं पर विजय प्राप्त कर सकूं। ब्रह्माजी ने उसे यह सारे वरदान दे दिए। वर पाकर अरुण ने देवताओं से स्वर्ग छीनकर उस पर अपना अधिकार कर लिया। सभी देवता घबराकर भगवान शंकर के पास गए। तभी आकाशवाणी हुई कि सभी देवता देवी भगवती की उपासना करें, वे ही उस दैत्य को मारने में सक्षम हैं। आकाशवाणी सुनकर सभी देवताओं ने देवी की घोर तपस्या की। प्रसन्न होकर देवी ने देवताओं को दर्शन दिए। उनके छह पैर थे। वे चारों ओर से असंख्य भ्रमरों (एक विशेष प्रकार की बड़ी मधुमक्खी) से घिरी थीं। उनकी मुट्ठी भी भ्रमरों से भरी थी।

राम स्तुति का पाठ करें-रामचरितमानस

तरक्की के बिना जिंदगी थम सी जाती है। पूरी मेहनत और साधना के उपयोग के बाद भी अनेक बार सफलता दूर रह जाती है। ऐसी स्थितियां किसी भी योग्य व्यक्ति को तोड़ सकती है। किंतु कर्म के साथ धर्म को भी जीवन में उतारा जाए तो कोई भी आत्मविश्वास के साथ कार्य में सफलता को सुनिश्चित कर सकता है। क्योंकि धर्मशास्त्रों में कुछ ऐसे देव स्त्रोत बताए गए हैं। जिनका पाठ मानसिक परेशानियों से छुटकारा देकर मनचाहे फल देता है। ऐसा ही पाठ है रामचरितमानस जैसे पावन ग्रंथ में मुनि अत्रि द्वारा की गई श्री राम स्तुति। व्यावहारिक जीवन में इस राम स्तुति के पाठ से नौकरी, व्यवसाय या किसी भी कार्यक्षेत्र में सफलता और तरक्की के साथ ऊंचा पद मिलता है। यह राम स्तुति रामचरितमानस के अरण्यकाण्ड में आई है। हर रोज देवालय में श्रीराम की प्रतिमा की पंचोपचार (गंध, अक्षत, फूल, धूप, दीप) पूजा के साथ इस रामस्तुति का पाठ करें। नमामि भक्त वत्सलं । कृपालु शील कोमलं ॥ भजामि ते पदांबुजं । अकामिनां स्वधामदं ॥ निकाम श्याम सुंदरं । भवाम्बुनाथ मंदरं ॥ प्रफुल्ल कंज लोचनं । मदादि दोष मोचनं ॥ प्रलंब बाहु विक्रमं । प्रभोऽप्रमेय वैभवं ॥ निषंग चाप सायकं ।

नवरात्रि-देवी की पंचोपचार पूजा

किसी भी तरह की कमी या कमजोरी गंभीर परेशानियों का कारण बन सकती है। इसलिए अभाव या कमजोरी के प्रति हमेशा सचेत रहकर ही दु:ख और चिंताओं से बचा जा सकता है। खासतौर पर शरीर की कमजोरी तो सफल व सुखी जीवन की चाहत में बाधा माना गया है। यही कारण है कि निरोगी काया पहला सुख बताया गया है। व्यावहारिक रूप से तो बीमारी के बढऩे पर दवा आवश्यक और असरदार होती है। किंतु धर्म में आस्थावान लोग संकटमोचन के लिए भगवान को भी स्मरण करते हैं। देव शक्तियों के स्मरण से बेहतर सेहत के लिए नवरात्रि भी अहम घड़ी है। इससे जुड़ा वैज्ञानिक पहलू भी है। दरअसल, हिन्दू धर्म में शक्ति पूजा का पर्व नवरात्रि, दो ऋतुओं का मिलत काल होता है। जिससे मौसम में बदलाव से अनेक रोगाणुओं की सक्रियता स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है। शक्ति पूजा के जरिए इससे निपटने के लिये ही विशेष संयम और अनुशासन शरीर की ऊर्जा और शक्ति को बढ़ाने और वातावरण से तालमेल बनाने वाले सिद्ध होते है। अगर आप भी धर्म परंपराओं से जुड़े इस वैज्ञानिक लाभ को पाना चाहते हैं, तो शास्त्रों में बताए एक आसान देवी मंत्र का स्मरण रोगी या उसके परिजनों द्वारा करना मौसमी बीमारियों ही

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम

भारतीय संस्कृति में भगवान राम जन-जन के दिलों में बसते हैं। इसके पीछे मात्र धार्मिक कारण ही नहीं है, बल्कि श्रीराम चरित्र से जुड़े वह आदर्श व जीवन मूल्य हैं, जो मानवीय रूप में स्थापित किए गए। खासतौर पर श्रीराम के जीवन और आचरण से जुड़ी एक बात तो हर इंसान के लिए निजी, कार्यक्षेत्र व रिश्तों की सफलता व जीवन में ऊंचाईयों को छूने का अहम गुरु सिखाती है। कौन-सी है श्रीराम चरित्र से जुड़ी यह बात, जो जीवन की सफलता व ऊंचे पद तक पहुंचने में बेहद निर्णायक सिद्ध होती है? जानिए- पौराणिक मान्यताओं में श्रीराम भगवान विष्णु का सातवां अवतार हैं। भगवान का मानवीय रूप में यह अवतार इंसान को समाज में रहने के सूत्र भी सिखाता है। असल में भगवान श्रीराम ने इंसानी जिंदगी से जुड़ी हर तरह की मर्यादाओं और मूल्यों को स्थापित किया। श्रीराम ने अयोध्या के राजकुमार से राजा बनने तक अपने व्यवहार और आचरण में स्वयं मर्यादाओं का पालन किया। एक आम इंसान परिवार और समाज के बीच रहकर कैसे बोल, व्यवहार और आचरण को अपनाकर जीवन का सफर पूरा करे, यह सभी सूत्र श्रीराम के बचपन से लेकर सरयू में प्रवेश करने तक के जीवन में छुपे हैं। धार

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रामराज्य

त्रेतायुग में मयार्दापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम द्वारा आदर्श शासन स्थापित किया गया। वह आज भी रामराज्य नाम से राम की तरह ही लोकप्रिय है। यह शासन व्यवस्था सुखी जीवन का आदर्श बन गई। व्यावहारिक जीवन में परिवार, समाज या राज्य में सुख और सुविधाओं से भरी व्यवस्था के लिए आज भी इसी रामराज्य का उदाहरण दिया जाता है। साधारण रूप से जिस रामराज्य को मात्र सुख-सुविधाओं का पर्याय माना जाता है। असल में वह मात्र सुविधाओं के नजरिए से ही नहीं बल्कि उसमें रहने वाले नागरिकों के पवित्र आचरण, व्यवहार और विचार और मर्यादाओं के पालन के कारण भी श्रेष्ठ शासन व्यवस्था का प्रतीक है। जानते हैं शास्त्रों में बताई रामराज्य से जुड़ी कुछ खास बातें, जो धर्म के पैमाने पर आदर्श और हर काल में अपनाने के लिए श्रेष्ठ हैं, किंतु कलिकाल में हावी अधर्म से या यूं कहें कि आज के भागदौड़ भरे जीवन में धर्म बनी दूरी से हैरान करने वाली भी लगती हैं। जानिए क्या थी रामराज्य की खासियत- गोस्वामी तुलसीदास ने स्वयं रामचरित मानस में कहा है - दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहहिं काहुहि ब्यापा।। - इस चौपाई के मुताबिक राम राज्य में शारीरिक,

रामायण

प्रमुख हिन्दू धर्मग्रंथ रामायण भगवान श्री राम के मर्यादित चरित्र को उजागर करता है। यह आदर्श व्यक्ति, आदर्श रिश्तों और आदर्श शासन व्यवस्था की भी रोचक कथा है, जो व्यावहारिक जीवन के अनमोल सूत्रों को भी सिखाती है। श्रीराम ही नहीं रामायण में बताया हर पात्र मानवीय जीवन, स्वभाव और गुणों से जुड़े कोई न कोई संदेश देता है। जिनके द्वारा कोई भी इंसान जीवन में संयम, संतुलन और अनुशासन लाकर सफलता व तरक्की पा सकता है। यही कारण है कि धर्म में रूचि रखने वाले और आस्थावान अनेक लोग रामायण को पढऩा और जानना चाहते हैं। किंतु समय के अभाव के चलते वे रामकथा को सुनने या पढऩे से वंचित रहते हैं। इसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए हम यहां बता रहे हैं सिर्फ 9 रोचक तस्वीरों के माध्यम से शास्त्रों में बताए एक श्लोक पर आधारित रामायण, जो एक श्लोकी रामायण के रूप में जानी जाती है। यहां बताई जा रही एक श्लोकी रामायण को प्रतिदिन राम दरबार जिनमें राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान आदि शामिल हों, का ध्यान कर पढऩा भी आपके जीवन से भय, चिंता और परेशानियों को दूर करने वाली मानी गई है - आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनं वैदेही हर

Significance, Importance of BHANG/ CANNABIS in Indian Culture

Bhang in India is distributed as a religious offering during Shiva festivals like “Mahashivratri”. It has now become synonymous with the Holi festival, to the point where consuming bhang at that time is a standard practice. It is also available as Bhang golis (balls) which is just freshly ground hemp with water. Apart from this, sweetened bhang golis are also widely available. These are not considered a drug, but a traditional sleeping aid and appetizer. Bhang is also part of much ayurvedic medicinal preparation, i.e. bhang powder is available at ayurvedic dispensaries throughout the country. Bhang Ki Thandai Bhang Ki Thandai also known as Sardai is a drink popular in many parts of sub-continent which is made by mixing bhang with thandai, a cold beverage prepared with almonds, spices (mainly black pepper), milk and sugar. Origin of Bhang/ Cannabis Bhang was first used as part of the Hindu rite in India around 1000 BC and soon became an integral part of Hindu culture. The herb

श्रीराम के अनन्य भक्त श्री हनुमान

कलयुग में हनुमानजी की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई है। श्रीराम के अनन्य भक्त श्री हनुमान अपने भक्तों और धर्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों की हर कदम मदद करते हैं। सीता माता के दिए वरदान के प्रभाव से वे अमर हैं और किसी ना किसी रूप में अपने भक्तों के साथ रहते हैं। हनुमानजी को मनाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ। हनुमानजी की यह स्तुति का सबसे सरल और सुरीली है। इसके पाठ से भक्त को असीम आनंद की प्राप्ति होती है। तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा बहुत प्रभावकारी है। इसकी सभी चौपाइयां मंत्र ही हैं। जिनके निरंतर जप से ये सिद्ध हो जाती है और पवनपुत्र हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो जाती है। यदि आप मानसिक अशांति झेल रहे हैं, कार्य की अधिकता से मन अस्थिर बना हुआ है, घर-परिवार की कोई समस्यां सता रही है तो ऐसे में सभी ज्ञानी विद्वानों द्वारा हनुमान चालीसा के पाठ की सलाह दी जाती है। इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है, इसमें को शंका या संदेह नहीं है। यह बात लोगों ने साक्षात् अनुभव की होगी की हनुमान चालीसा के पाठ से मन को शांति और कई समस्याओं के हल स्व

कामाख्या शक्तिपीठ का विशेष महत्व

हिन्दू धर्म में देवी के 51 शक्तिपीठों में से कामाख्या या कामरूप शक्तिपीठ का विशेष महत्व है । यह भारत की पूर्व-उत्तर दिशा में असम प्रदेश के गुवाहाटी में स्थित होकर कामाख्या देवी मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। पुराणों के अनुसार यह देवी का महाक्षेत्र है। यह मन्दिर नीलगिरी नामक पहाड़ी पर स्थित है। यह क्षेत्र कामरूप भी कहलाता है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि देवी कृपा से कामदेव को अपना मूल रूप प्राप्त हुआ। देश में स्थित विभिन्न पीठों में से कामाख्या पीठ को महापीठ माना जाता है। इस मंदिर में 12 स्तम्भों के मध्य देवी की विशाल मूर्ति है। मंदिर एक गुफा में स्थित है। यहां जाने का मार्ग पथरीला है, जिसे नरकासुर पथ भी कहा जाता है। मंदिर के पास ही एक कुण्ड है, जिसे सौभाग्य कुण्ड कहते हैं। इस स्थान को योनि पीठ के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि यहां देवी की देह का योनि भाग गिरा था। यहां पर देवी का शक्ति स्वरूप कामाख्या है एवं भैरव का रूप उमानाथ या उमानंद है। उमानंद को भक्त माता का रक्षक मानते हैं। कथा- शिव जब सती के मृत देह लेकर वियोगी भाव से घूम रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उनका वियोग दूर करने के लि

मंगलकारी रूप मां कालरात्रि

नवरात्रि में शक्ति आराधना तन-मन को संयम और अनुशासन द्वारा साधकर जीवन को आनंद और सुख से बिताने का संदेश देती है। नवरात्रि धर्म और ईश्वर से जुड़कर सफल जीवन और उसके लिए किए जाने वाले प्रयासों के लिए शक्ति संचय का अहम और शुभ काल है। चैत्र शुक्ल नवरात्रि की सातवीं रात सिद्धि की रात्रि मानी गई है। क्योंकि इस दिन आदिशक्ति दुर्गा के तामसी किंतु मंगलकारी रूप कालरात्रि की उपासना की जाती है। यह शक्ति और रात्रि सांसारिक कामनाओं के साथ तंत्र साधनाओं की सिद्धि की लिए भी अचूक मानी गई है। मां कालरात्रि का स्वरूप जितना भयानक है, उतना ही मंगलकारी और शुभ भी है। माता की उपासना जीवन से जुड़े हर भय, संशय और चिंता का नाश करने के साथ-साथ सभी सिद्धियां, सुख, साहस और कौशल देने वाली है। सरल शब्दों में मां कालरात्रि की भक्ति सफलता की राह में आने वाली मानसिक और व्यावहारिक बाधाओं को दूर कर देती है। मां कालरात्रि संकटमोचक शक्ति के रूप में पूजनीय है। अगर आप भी परेशानियों का सामना कर रहें है तो नवरात्रि के सातवें दिन (30 मार्च) को मां कालरात्रि के इस मंत्र का देवी पूजा के दौरान जरूर जप करें - - मां कालरात्रि की

भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण

1 अप्रैल को राम नवमी है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन श्रीराम का जन्म हुआ था। ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीराम नीले रंग के थे वहीं शास्त्रों में श्रीकृष्ण को काले रंग का बताया है। यह सुनकर अक्सर हमारे मन में यह सवाल उठता है कि हमारे भगवानों के रंग-रूप इतने अलग क्यों हैं। भगवान कृष्ण का काला रंग तो फिर भी समझ में आता है लेकिन भगवान राम को नील वर्ण भी कहा जाता है। क्या वाकई भगवान राम नीले रंग के थे, किसी इंसान का नीला रंग कैसे हो सकता है? वहीं काले रंग के कृष्ण इतने आकर्षक कैसे थे? इन भगवानों के रंग-रूप के पीछे क्या रहस्य है। राम के नीले वर्ण और कृष्ण के काले रंग के पीछे एक दार्शनिक रहस्य है। भगवानों का यह रंग उनके व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। दरअसल इसके पीछे भाव है कि भगवान का व्यक्तित्व अनंत है। उसकी कोई सीमा नहीं है, वे अनंत है। ये अनंतता का भाव हमें आकाश से मिलता है। आकाश की कोई सीमा नहीं है। वह अंतहीन है। राम और कृष्ण के रंग इसी आकाश की अनंतता के प्रतीक हैं। राम का जन्म दिन में हुआ था। दिन के समय का आकाश का रंग नीला होता है। इसी तरह कृष्ण का जन्म आधी रात के समय हुआ था और रात के समय

नवरात्रि: भगवान राम की आराधना

नवरात्रि में शक्ति की उपासना के साथ ही वासंतिक नवरात्र में भगवान राम की भी आराधना की जाती है। असल में शक्ति और श्रीराम उपासना के पीछे संदेश यह भी है कि जीवन में कामयाबी को छूने के लिए बेहतर व मर्यादित चरित्र व व्यक्तित्व की शक्ति भी जरूरी है। इस तरह नवरात्रि व रामनवमी शक्ति के साथ मर्यादा के महत्व की ओर इशारा करती है। खासतौर पर शक्ति के मद में रिश्तों, संबंधों और पद की मर्यादा न भूलकर दुर्गति से बचना ही दुर्गा पूजा की सार्थकता भी है। जगतजननी का यही स्वरूप व्यावहारिक जीवन में स्त्री को माना जाता है। यही कारण है कि वेद-पुराणों में 16 स्त्रियों को मां के समान दृष्टि रखने और सम्मान देने का महत्व बताया गया है। कौन हैं ये स्त्रियां जानिए - स्तनदायी गर्भधात्री भक्ष्यदात्री गुरुप्रिया। अभीष्टदेवपत्नी च पितु: पत्नी च कन्यका।। सगर्भजा या भगिनी पुत्रपत्त्नी प्रियाप्रसू:। मातुर्माता पितुर्माता सोदरस्य प्रिया तथा।। मातु: पितुश्र्च भगिनी मातुलानी तथैव च। जनानां वेदविहिता मातर: षोडश स्मृता:।। जिसका अर्थ है कि वेद में नीचे बताई 16 स्त्रियां मनुष्य के लिए माताएं हैं- स्तन या दूध पिलाने व

पवनपुत्र हनुमान के गुण से सीख

श्री हनुमान के चरित्र में अपनत्व का विलक्षण भाव देखने को मिलता है। श्री हनुमान ने इसी गुण के बूते हर स्थिति, स्थान और संबंधों को अनुकूल बना लिया। श्री हनुमान ने अपनेपन के इस भाव से ही न केवल स्वयं प्रभु राम की कृपा और माता सीता से अचूक सिद्धियां व अनमोल निधियां पाई, बल्कि दूसरों पर भी कृपा बरसाई। इस तरह पवनपुत्र हनुमान के इस गुण से सीख यही मिलती है कि जीवन में मुसीबतों को पछाडऩा है तो हालात से मुंह मोडऩे या रिश्तों से अलगाव के बजाए अपनेपन यानी तालमेल, प्रेम व जुड़ाव के सूत्र को अपनाएं। क्योंकि अलगाव में क्षण भर का आवेग लंबी पीड़ा दे सकता है, किंतु जुड़ाव वक्त लेकर भी लंबा सुख और सफलता देने वाला होता है। ऐसे मंगलमूर्ति श्री हनुमान के ध्यान से जीवन मंगलमय बनाने के लिए बहुत ही शुभ घड़ी मानी गई है- नवरात्रि में रामनवमी, मंगलवार, शनिवार या हनुमान जयंती। इस दिनों हनुमान का ध्यान ग्रह, मन, कर्म व विचारों के दोषों का शमन कर सुख-सफलता देने वाला माना गया है। जिसके लिए हनुमान के विशेष मंत्र स्तुति के ध्यान का महत्व बताया गया है। जानते हैं यह विशेष मंत्र और सरल पूजा विधि - - स्नान के बाद श्री

हनुमान चालीसा के दो दोहों

गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा की शुरुआत दो दोहों और गुरु के स्मरण से की है। लिखा है कि- श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनऊँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।। बुद्धिहीन तनु जानिक सुमिरौ पवन कुमार। बल, बुद्धि, विद्या देहु मोहि हरहु क्लेश विकार।। अर्थ है - श्री गुरु के चरण कमलों की रज से अपने मन रूपी दर्पण को साफ कर मैं श्री रघुनाथ के उस पावन यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फलों यानी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है। तुलसीदासजी ने दोहे की शुरुआत पहले गुरु को स्मरण कर की है। दरअसल, व्यावहारिक रूप से धूल से दर्पण साफ नहीं होता, बल्कि दर्पण से धूल साफ होती है। किंतु तुलसीदासजी की इस बात में भी जीवन को साधने के गहरे सूत्र हैं। उनका संकेत है कि जिस तरह हम दर्पण देखकर स्वयं के सौंदर्य को बेहतर ढंग से व्यवस्थित कर बाहर जाते हैं। ठीक उसी तरह से जीवन से जुड़े हर विषय की शुरुआत के लिए मन का साफ, मजबूत और संतुलित होना अहम है। जिसके लिये सत्य व ज्ञान से जुडऩे की अहमियत है, जिनकी यहां गुरु के रूप वंदना और आवाहन कर अहमियत बताई गई है। इसी तरह दोहे में श्री हनु

देवी दुर्गा को सभी देवताओं ने अपने प्रिय अस्त्र-शस्त्र प्रदान की

देवी दुर्गा को महाशक्ति बनाने के लिए सभी देवताओं ने उन्हें अपनी प्रिय वस्तुएं भेंट कीं। देवी भागवत के अनुसार जब असुरों का अत्याचार बढऩे लगा तब मां शक्ति देवताओं और मानवता की रक्षा के लिए प्रकट हुईं। मां भवानी ने सभी को असुरों के अत्याचारों से बचाने का संकल्प लिया। शक्ति को प्रसन्न करने के लिए देवताओं ने अपने प्रिय अस्त्र-शस्त्र सहित कई शक्तियां उन्हें प्रदान की। इन सभी शक्तियों को प्राप्त कर देवी मां ने महाशक्ति का रूप ले लिया। - भगवान शंकर ने मां शक्ति को त्रिशूल भेंट किया। - भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्रप्रदान दिया। - वरुणदेव ने शंख भेंट किया। - अग्निदेव ने अपनी शक्ति प्रदान की। - पवनदेव ने धनुष और बाण भेंट किए। - इंद्रदेव ने वज्र और घंटा अर्पित किया। - यमराज ने कालदंड भेंट किया। - प्रजापति दक्ष ने स्फटिक माला दी। - भगवान ब्रह्मा ने कमंडल भेंट दिया। - सूर्य देव ने माता को तेज प्रदान किया। - समुद्र ने मां को उज्जवल हार, दो दिव्य वस्त्र, दिव्य चूड़ामणि, दो कुंडल, कड़े, अर्धचंद्र, सुंदर हंसली और अंगुलियों में पहनने के लिए रत्नों की अंगूठियां भेंट कीं। - सरोवरों ने उन्हें क

हनुमान राम भक्ति को समर्पित

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा हनुमान भक्ति को समर्पित हनुमान चालीसा की ये चौपाई रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनिपुत्र पवनसुत नामा श्री हनुमान के राम भक्त होना व भक्त-भगवान के पावन रिश्तों को उजागर ही नहीं करती, बल्कि राम कृपा से ही बेजोड़ गुण व बल का स्वामी होना भी प्रकट करती है। राम की भक्ति और सेवा से ही श्री हनुमान रामदूत कहलाए। धार्मिक आस्था भी है कि जहां श्री राम का नाम व स्मरण होता है, वहीं उनके परम भक्त श्री हनुमान किसी न किसी रूप में उपस्थित रहते हैं। हनुमान के कारण ही युग-युगान्तर से राम भक्ति आस्था को बल और भक्ति को शक्ति देने वाली मानी जाती है। रुद्र अवतार श्री हनुमान की कृपा ग्रहदोषों को दूर करने में भी शुभ व अचूक उपाय मानी गई है। यही कारण है कि खासतौर पर शनिवार, मंगलवार के अलावा श्री राम के जन्मदिन यानी रामनवमी पर श्री राम की प्रतिमा या तस्वीर की गंध, अक्षत, फूल, धूप व दीप से पूजा कर यहां बताई जा रही राम मंत्र स्तुति का ध्यान करें और श्री हनुमान की भी विधिवत पूजा करें। यह श्रीराम मंत्र स्तुति है - आपदामपहर्तार दातारं सर्वसम्पदाम। लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्।। रामा

महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती

धर्मग्रंथों में धर्मयुद्धों से जुड़े प्रसंग हो या विज्ञान की अवधारणाएं, अस्तित्व बनाए रखने के लिए संघर्ष की अहमियत उजागर करते हैं। वजूद के लिये यह जद्दोजहद जीवन, मान-सम्मान या जीवन से जुड़े किसी भी विषय से जुड़ी हो सकती है। किंतु संघर्ष चाहे जैसा हो, शक्ति के बिना संभव नहीं। यही कारण है कि शक्ति अस्तित्व का ही प्रतीक मानी गई है। चूंकि यह शक्ति मोटे तौर पर संसार में रचना, पालन व संहार रूप में दिखाई देती है। प्राकृतिक व व्यावहारिक रूप से स्त्री भी सृजन व पालन शक्ति की ही साक्षात् मूर्ति है। इसी शक्ति की अहमियत को जानकर ही सनातन संस्कृति में स्त्री स्वरूपा देवी शक्तियां पूजनीय और सम्माननीय है। नवरात्रि शक्ति स्वरूप की पूजा का विशेष काल है। शक्ति पूजा में खासतौर पर महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती का विधान है, जो क्रमश: शक्ति, ऐश्वर्य और ज्ञान की देवी मानी जाती है। व्यावहारिक जीवन की नजर से तीन शक्तियों का महत्व यही है कि तरक्की और सफलता के लिए सबल व दृढ़ संकल्पित होना जरूरी है। जिसके लिये सबसे पहले विचारों को सही दिशा देना यानी नकारात्मकता, अवगुणों व मानसिक कलह से दूर होना जरूरी है।

भगवान की भक्ति

हमारी सभी आवश्यकताओं और मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए भगवान की भक्ति से अच्छा कोई और उपाय नहीं है। कहा जाता है कि सच्चे से भगवान से प्रार्थना की जाए तो सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण हो जाती हैं। वैसे तो सभी देवी-देवता हमारी सभी इच्छाएं पूर्ण करने में समर्थ माने गए हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग मनोकामनाओं के लिए अलग-अलग देवी-देवताओं को पूजने का विधान भी बताया गया है। शादी या विवाहित जीवन से जुड़ी समस्याओं के निराकरण के लिए शिव-पार्वती, लक्ष्मी-विष्णु, सीता-राम, राधा-कृष्ण, श्रीगणेश की पूजा करनी चाहिए। धन संबंधी समस्याओं के लिए देवी महालक्ष्मी, कुबेर देव, भगवान विष्णु से प्रार्थना करनी चाहिए। पूरी मेहनत के बाद भी यदि आपको कार्यों में असफलता मिलती है तो किसी भी कार्य की शुरूआत श्रीगणेश के पूजन के साथ ही करें। यदि आपको किसी प्रकार का भय या भूत-प्रेत आदि का डर सताता है तो पवनपुत्र श्री हनुमान का ध्यान करें। पति-पत्नी बिछड़ गए हैं और काफी प्रयत्नों के बाद भी वापस मिलने का योग नहीं बन पा रहा हो तो ऐसे में श्रीराम भक्त बजरंग बली की पूजा करें। सीता और राम का मिलन भी हनुमानजी द्वारा ही

सिरदर्द

भागदौड़ से भरी लाइफस्टाइल और रिलेक्सेशन न मिलने के कारण या अन्य कई वजहों से अक्सर सिरदर्द हो जाया करता है। ऐसे में ज्यादा पेन किलर खाने पर रिएक्शन का डर बना रहता है। इसीलिए सिरदर्द दूर करने के लिए आप इन घरेलू उपायों का भी प्रयोग कर सकते हैं। - सिरदर्द में खीरा काटकर सूँघने एवं सिर पर रगडऩे से तुरंत आराम मिलता है। - सिरदर्द में कच्चे अमरूद को पीसकर सूर्योदय से पहले सिर पर लेप लगाने से लाभ होता है। - लौकी का गूदा सिर पर लेप करने से सिरदर्द में तुरंत आराम मिलता है। - सिरदर्द में नींबू, आलूबुखारा या इमली से बना शरबत पिलाने से काफी आराम मिलता है। सिर में ठंडे पानी की धार गिराने से भी दर्द में आराम मिलता है। -नौशादर और बुझा चूना बराबर मात्रा में लेकर एक शीशी में भरकर रख लें। दर्द होने पर शीशी को हिलाकर सूघें। इससे सिरदर्द में आराम मिलता है। -सुबह खाली पेट प्रतिदिन एक सेब खाने से सिरदर्द की समस्या से छुटकारा मिलता है। -अदरक एक दर्द निवारक दवा के रूप में भी काम करती है। यदि सिरदर्द हो रहा हो तो सूखी अदरक को पानी के साथ पीसकर उसका पेस्ट बना लें और इसे अपने माथे पर लगाएं। इसे लगाने पर हल्की जलन

पंच देवी-देवताओं की पूजा

हमारी सभी मनोकामनाओं को पूरा करने की शक्ति केवल भगवान के पास ही है। कई बार कड़ी मेहनत के बाद भी किसी-किसी को उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं हो पाता है। ऐसे में धन संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और घर-परिवार में तनाव बढ़ता जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस प्रकार की समस्याओं से निजात पाने के लिए कई प्रकार की परंपराएं बनाई गई हैं। इन्हीं परंपराओं में से एक है प्रतिदिन प्रात: काल पंच देवी-देवताओं की पूजा करना। वेद-पुराण के अनुसार पांच प्रमुख देवी-देवता बताए गए हैं। किसी भी कार्य की सिद्धि और पूर्णता के लिए इन पांचों देवताओं का पूजन किया जाना अनिवार्य है। इनकी पूजा के कार्य में आने वाली सभी बाधाएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं और सफलता प्राप्त होती है। इन पंच देवी-देवताओं में शामिल हैं- प्रथम पूज्य श्रीगणेश, भगवान श्री विष्णु, महादेव, सूर्यदेव और देवी मां। इन पांचों की नित्य पूजा करने वाले व्यक्ति को जीवन में कभी भी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता है। ऐसे लोग हर परिस्थिति में समभाव ही रहते हैं। इन पर किसी भी दुख और दर्द का प्रभाव नहीं हो पाता। इन पांचों देवताओं को हमारे शरीर से ही जोड़ा

पदासन में प्रार्थना

समय अभाव के चलते अधिकांश लोग केवल हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं। पुराने समय में श्रद्धालुओं द्वारा एक पदासन में प्रार्थना की जाती थी। इस आसन से स्वास्थ्य लाभ तो है साथ ही इससे हमारा मानसिक तनाव भी तनाव दूर होता है। एक पदासन की विधि - किसी साफ-स्वच्छ और शुद्ध वातावरण वाले स्थान पर कंबल आदि बिछा लें। अब कंबल पर सीधे खड़े हो जाएं और पैरों को घुटनों से मोड़कर पजें के सहारे बैठ जाएं। अब सांस को बाहर निकालकर पेट को पूरा खाली कर लें और बाएं पैर के पजें पर बैठकर दाएं पैर को उठाकर बाएं जांघ पर रखें। इस तरह पद्मासन की स्थिति बन जाएगी। फिर सांस अन्दर खिंचते हुए दोनों हाथों को सामने सीधा में रखें जैसे भगवान से प्रार्थना करते समय रखते हैं। अपने आंखों को सामने की ओर रखें। इस स्थिति में कुछ देर तक रहें, फिर दूसरे पैर से भी यह क्रिया दोहराएं। इसमें पैर को बदलते समय सांस को छोडऩे व लेने की क्रिया को करते रहें। एक पदासन के लाभ एक पदासन आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत लाभदायक होता है। इस आसन से मानसिक तनाव दूर होता है। आलस्य खत्म करके शरीर को स्फूर्तिवान, शक्तिशाली बनाता है। इससे मन निर्मल व शांत करके नियंत्रि

अखंड ज्योत: नवरात्रि

चैत्र तथा आश्विन दोनों नवरात्रि में माता दुर्गा के समक्ष नौ दिन तक अखंड ज्योत जलाई जाती है। यह अखंड ज्योत माता के प्रति आपकी अखंड आस्था का प्रतीक स्वरूप होती है। यह अखंड ज्योत इसलिए भी जलाई जाती है कि जिस प्रकार विपरीत परिस्थितियों में भी छोटा का दीपक अपनी लौ से अंधेरे को दूर भगाता रहाता है उसी प्रकार हम भी माता की आस्था का सहारा लेकर अपने जीवन के अंधकार को दूर कर सकते हैं। मान्यता के अनुसार मंत्र महोदधि(मंत्रों की शास्त्र पुस्तिका) के अनुसार दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त हो है। कहा जाता है दीपम घृत युतम दक्षे, तेल युत: च वामत:। अर्थात - घी युक्त ज्योति देवी के दाहिनी ओर तथा तेल युक्त ज्योति देवी के बाई ओर रखनी चाहिए। अखंड ज्योत पूरे नौ दिनों तक अखंड रहनी चाहिए। इसके लिए एक छोटे दीपक का प्रयोग करें। जब अखंड ज्योत में घी डालना हो, बत्ती ठीक करनी हो तो या गुल झाडऩा हो तो छोटा दीपक अखंड दीपक की लौ से जलाकर अलग रख लें। यदि अखंड दीपक को ठीक करते हुए ज्योत बुझ जाती है तो छोटे दीपक की लौ से अखंड ज्योत पुुन: जलाई जा सकती है छोटे दीपक की लौ को घी में डूबोकर

नवरात्रि: देवी के विभिन्न रूपों की पूजा

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चैत्र नवरात्रि में हर दिन देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। इन नौ दिनों में विविध प्रकार की पूजा से माता को प्रसन्न किया जाता है। नवरात्रि में देवी को विभिन्न प्रकार के भोग लगाए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार प्रतिपदा से लेकर नौ तिथियों में देवी को विशिष्ट भोग अर्पित करने तथा ये ही भोग गरीबों को दान करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। उसके अनुसार- - प्रतिपदा (23 मार्च, शुक्रवार) को माता को घी का भोग लगाएं तथा उसका दान करें। इससे रोगी को कष्टों से मुक्ति मिलती है तथा वह निरोगी होता है। - द्वितीया (24 मार्च, शनिवार) को माता को शक्कर काभोग लगाएं तथा उसका दान करें। इससे साधक को दीर्घायु प्राप्त होती है। - तृतीया (25 मार्च, रविवार) को माता को दूध चढ़ाएं तथा इसका दान करें। ऐसा करने से सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति मिलती है। - चतुर्थी(26 मार्च, सोमवार) को मालपूआ चढ़ाकर दान करें। इससे सभी प्रकार की समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाती है। - पंचमी (27 व 28 मार्च, मंगलवार व बुधवार) को माता दुर्गा को केले का भोग लगाएं तथा इसका दान करें। ऐसा करने से बुद्धि का विकास होता है। - ष

सुन्दरकाण्ड

हिन्दू धर्मग्रंथ श्री रामचरितमानस आदर्श व्यावहारिक जीवन के अनेक सूत्रों और संदेशों को उजागर करता है। इसी कड़ी में इसके अहम चरित्र व पात्रों में एक रामभक्त व रुद्रावतार श्री हनुमान के जरिए कर्म, समर्पण, पराक्रम, प्रेम, परोपकार, मित्रता, वफादारी जैसे अनेक आदर्शों के दर्शन होते हैं। श्री हनुमान के दिव्य और संकटमोचक चरित्र का दर्शन श्री रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड में होता है। इसलिए सुन्दरकाण्ड का पाठ व्यावहारिक जीवन में आने वाली संकट, विपत्तियों और परेशानियों को दूर करने में बहुत ही असरदार माना जाता है। आस्था है कि इसी सुन्दरकाण्ड में दी गई श्री हनुमान की एक छोटी सी स्तुति का नियमित पाठ सारे दु:ख व कष्टों से छुटकारा देने के साथ हर इच्छा पूरी कर देता है। यही नहीं यह स्तुति शनि दोष या दशा के बुरे असर से भी बचाने वाली मानी गई है। यह हनुमान स्तुति छोटी होने से इसका पाठ समयाभाव में भी संभव है। श्री हनुमान उपासना के विशेष दिन शनिवार और मंगलवार को इच्छापूर्ति और शनि पीड़ा से रक्षा के लिए इस हनुमान स्तुति का पाठ अवश्य करें। - शनिवार या मंगलवार को बोल, विचार और व्यवहार की पवित्रता के संकल्प

श्री हनुमान संकटमोचक देवता हैं

श्री हनुमान संकटमोचक देवता हैं। माना जाता है कि पूर्ण आस्था और पवित्रता के साथ किसी भी रूप में हनुमान उपासना भक्त और उसके घर-परिवार पर आने वाले हर संकट को दूर करती है। खासतौर पर अमावस्या तिथि तो ग्रह पीड़ा, शांति, रोग, शोक दूर करने के लिए शिव या उनके अवतारों की आराधना के लिए बेहद मंगलकारी मानी गई है। यही कारण है कि कल अमावस्या पर श्री हनुमान की पूजा का यहां बताया जा रहा छोटा-सा उपाय जीवन से शारीरिक, मानसिक या आर्थिक परेशानियों को दूर करने में सरल और असरदार माना गया है। जानिए, यह सरल उपाय- - अमावस्या तिथि की सुबह स्नान और स्वच्छ यथासंभव लाल या सिंदूर रंग के वस्त्र पहन श्री हनुमान की पूजा करें। - सिंदूर का चोला चढ़े श्री हनुमान की पूजा में सिंदूर, कुमकुम, लाल अक्षत, फूल व फल चढ़ाएं। - इन पूजा सामग्रियों के अलावा विशेष रूप से सिंदूर लगे एक नारियल पर मौली या कलेवा लपेटकर श्री हनुमान के चरणों में अर्पित करें। - नारियल को चढ़ाते समय श्री हनुमान चालीसा की यह चौपाई का पाठ मन ही मन करें - जै जै जै हनुमान गौसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई। - श्री हनुमान से तन, मन या धन से जुड़े जीव

संकटमोचक हनुमान

श्री हनुमान बल, पराक्रम, ऊर्जा, बुद्धि, सेवा, भक्ति के आदर्श देवता माने जाते हैं। यही कारण है कि शास्त्रों में श्री हनुमान को सकलगुणनिधान भी कहा गया है। श्री हनुमान को चिरंजीव सरल शब्दों में कहें तो अमर माना जाता है। हनुमान उपासना के महापाठ श्री हनुमान चालीसा में गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है कि - 'चारो जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा।' इस चौपाई से साफ संकेत है कि श्री हनुमान ऐसे देवता है, जो हर युग में किसी न किसी रूप, शक्ति और गुणों के साथ जगत के लिए संकटमोचक बनकर मौजूद रहे। श्री हनुमान से जुड़ी यही विलक्षण और अद्भुत बात उनके प्रति आस्था और श्रद्धा गहरी करती है। इसलिए यहां जानिए, श्री हनुमान किस युग में किस तरह जगत के लिए शोकनाशक बनें और खासतौर पर कलियुग यानी आज के दौर में श्री हनुमान कहां बसते हैं - सतयुग - श्री हनुमान रुद्र अवतार माने जाते हैं। शिव का दु:खों को दूर करने वाला रूप ही रुद्र है। इस तरह कहा जा सकता है कि सतयुग में हनुमान का शिव रुप ही जगत के लिए कल्याणकारी और संकटनाशक रहा। त्रेतायुग - इस युग में श्री हनुमान को भक्ति, सेवा और समर्पण का आदर्श

चैत्र नवरात्र: 23 मार्च से शुरू होकर 1 अप्रैल तक

23 मार्च से 1 अप्रेल तक हर दिन आपकी किस्मत के लिए खास रहेगा क्योंकि इस नवरात्रि में हर दिन एक विशेष संयोग बन रहा है। चैत्र नवरात्र इस बार 10 दिन के होंगे। तिथियों की घटत-बढ़त के कारण ऐसा होगा। नवरात्र पर्व 23 मार्च से शुरू होकर 1 अप्रैल तक रहेगा। इस दौरान हर दिन विशेष संयोग भी रहेंगे। ज्योतिषविद् दस दिन के नवरात्र को भी जनता की संपन्नता के हिसाब से महत्वपूर्ण बता रहे हैं। ज्योतिषियों के अनुसार चैत्र नवरात्र देवी के वार यानी शुक्रवार से शुरु हो रहे हैं। ऐसे में ये देवी आराधना करने वाले साधकों के लिए विशेष फलदायी रहेंगे। खरीदारी व नए कामों के लिए भी ये नवरात्र बहुत शुभ रहेंगे। नवरात्र का बढऩा सुख-समृद्धि और जनता की संपन्नता का इशारा होता है। नवरात्र के दौरान हर दिन विशेष संयोग भी बन रहे हैं। क्यों बढ़ा एक दिन : 27 मार्च को सूर्योदय से पहले 5:29 से पंचमी तिथि शुरू होगी। यह अगले दिन 28 मार्च को सुबह 8:08 बजे तक रहेगी। इस कारण मंगलवार व बुधवार दोनों ही दिन सूर्योदय काल में पंचमी तिथि रहेगी। दोनों ही दिन पांचवीं देवी स्कंध माता की आराधना की जाएगी। ये रहेंगे श्रेष्ठ संयोग 23 मार्च

मीठा फल अंजीर

विश्व का सबसे मीठा फल अंजीर स्वाद में जितना मीठा और स्वादिष्ट है। शरीर के लिए भी उतना ही लाभदायक है।कैल्सियम, रेशों व विटामिन ए, बी, सी से युक्त होता है और एक अंजीर में लगभग 30 कैलोरी होती हैं। अंजीर में एंटीऑक्सीडेंट तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो संक्रमण और रोग से लडऩे की क्षमता को बढ़ाते हैं। इसमें कैल्सियम और लौह तत्व प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह दिमाग को शांत रखता है और शरीर को आराम देता है। डायबिटीज में अंजीर बहुत उपयोगी होता है। अंजीर में आयरन और कैल्सियम प्रचुर मात्रा में पाए जाने के कारण यह एनीमिया में लाभप्रद होता है। अंजीर में विटामिन्स ए, बी1, बी2, कैल्सियम, आयरन, फास्फोरस, मैगनीज, सोडियम, पोटैशियम और क्लोरीन पाया जाता है। इसका सेवन करने से डायबिटीज, सर्दी-जुकाम, अस्थमा और अपच जैसी तमाम व्याधियां दूर हो जाती हैं। घरेलू उपचार में ऐसा माना जाता है कि स्थाई रुप से रहने वाली कब्ज अंजीर खाने से दूर हो जाती है। जुकाम, फेफड़े के रोगों में पांच अंजीर पानी में उबाल कर छानकर यह पानी सुबह-शाम पीना चाहिए। दमा जिसमे कफ (बलगम) निकलता हो उसमें अंजीर खाना लाभकारी है इससे

कौन-से फूल-पत्ते शिव पर चढ़ाना कितना शुभ

शिव की उपासना की धर्म परंपराओं में खासतौर पर बिल्वपत्र का चढ़ावा बहुत ही शुभ और पुण्य देने वाला माना जाता है। धार्मिक आस्था है कि बिल्वपत्र का शिव को अर्पण जन्म-जन्मान्तर के पाप और दोषों का नाश करता है। किंतु शिव की पूजा में अनेक तरह की कुदरती सामग्रियों के चढ़ावे का भी महत्व है। जिनमें तरह-तरह के पेड़-पौधों के पत्ते, फूल और फल शामिल होते हैं। शास्त्रों के मुताबिक इन फूल-पत्तों में कुछ ऐसे भी हैं, जिनको शिव पूजा में चढ़ाना बिल्वपत्र से भी ज्यादा पुण्य और फलदायी है। जानिए, सोमवार या शिव भक्ति के किसी भी शुभ घड़ी में कौन-से फूल-पत्ते शिव पर चढ़ाना कितना शुभ और कामनासिद्धि में असरदार साबित होते हैं - धार्मिक महत्व की दृष्टि से शिव को चढ़ाने जाने वाले फूलों का फल इस तरह है कि- एक आंकडे का फूल चढऩा सोने के दान के बराबर फल देता है। एक हजार आंकड़े के फूल के बराबर एक कनेर का फूल फलदायी एक हजार कनेर के फूल के बराबर एक बिल्वपत्र फल देता है। हजार बिल्वपत्रों के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी। हजार गूमा के बराबर एक चिचिड़ा, हजार चिचिड़ा के बराबर एक कु श का फूल, हजार कुश फूलों के बराबर एक शमी का

होली

इस होली पर ऐसा कौन-सा रंग इस्तेमाल करें जो आपके व्यवसाय, नौकरी एवं पेशों के लिए लाभदायक हो। जी हां यह भी संभव है रंगो का चयन अपने आय स्रोत के अनुकूल करने से आप अपने लाभ को बढ़ा सकते हैं तथा मान-प्रतिष्ठा भी अर्जित कर सकते हैं। किसे कैसा रंग चुनना है? आइए देखते हैं: लाल रंग लाल रंग भूमि पूत्र मंगल का रंग है। भूमि से संबंधित कार्य करने वाले बिल्डर्स, प्रापर्टी डीलर्स, कॉलोनाइजर्स, इंजीनियर्स, बिल्डिंग मटेरियल का व्यवसाय करने वाले एवं प्रशासनिक अधिकारियों को लाल रंग से ही होली का उत्सव मनाना चाहिए तथा गरीबों को भोजन कराने से अप्रत्याशित लाभ होगा। सभी कामनाएं पूर्ण होगी। मित्र रंग: गुलाबी, केसरिया, महरून। हरा रंग हरा रंग बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। व्यापार में वृद्धि, शिक्षक, अभिभाषक, विद्यार्थियों, जज को सफलता हेतु एवं लेखक, पत्रकार, पटकथा, लेखक को भी होली हेतु इस रंग का प्रयोग करना, लाभ एवं सफलता दिलाएगा। कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर इंजीनियर भी हरा रंग का प्रयोग कर सकते हैं। मित्र रंग: नीला, पीला, आसमानी। पीला रंग पीला रंग गुरु का प्रतिनिधित्व करता है। गुरु सोना, चांद

नींबू का अनोखा गुण

नींबू का अनोखा गुण यह है कि इसकी खट्टी खुशबू खाने से पहले ही मुंह में पानी ला देती है। चांट हो या दाल कोई भी व्यंजन इसके प्रयोग से और भी सुस्वादु हो जाता है। यह फल खट्टा होने के साथ-साथ बेहद गुणकारी भी है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि नींबू के पत्ते भी बहुत उपयोगी होते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं नींबू के पत्तों के कुछ ऐसे ही रामबाण प्रयोगों के बारे में- कृमि रोग- 10 ग्राम नींबू के पत्तों का रस (अर्क) में 10 ग्राम शहद मिलाकर पीने से 10-15 दिनों में पेट के कीड़े मरकर नष्ट हो जाते हैं। नींबू के बीजों के चूर्ण की फं की लेने से कीड़ों का विनाश होता है। सिरदर्द या माइग्रेन- नींबू के पत्तों का रस निकालकर नाक से सूंघे, जिस व्यक्ति को हमेशा सिरदर्द बना रहता है, उसे भी इससे शीघ्र आराम मिलता है। नाक से खून आना- ताजे नींबू का रस निकालकर नाक में पिचकारी देने से नाक से खून गिरता हो, तो बंद हो जाएगा।

स्वाहा का उच्चारण

स्वाहा का उच्चारण क्यों? ........................................................ किसी भी शुभ कार्य में हवन होते हमने देखा है कि अग्नि में आहूति देते वक्त स्वाहा का उच्चारण किया जाता है। यह स्वाहा ही क्यों कहा जाए आईए जानते हैं इस शब्द के बारे में।अर्थ: स्वाहा शब्द का अर्थ है सु+आ+हा सुरो यानि अच्छे लोगों को दिया गया। अग्नि का प्रज्जवलन कर उसमें औषधियुक्त (खाने योग्य घी मिश्रित) की आहूति देकर क्रम से देवताओं के नाम का उल्लेख कर उसके पीछे स्वाहा बोला जाता है। जैसे इंद्राय स्वाहा यानि इंद्र को प्राप्त हो इसी तरह समस्त हविष्य सामग्री अलग-अलग देवताओं की समर्पित की जाती है। धार्मिक महत्व....................................... .......................................................... श्रीमद्भागवत एवं शिवपुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति की कई पुत्रियां थी। उनमें से पुत्री का विवाह उन्होंने अग्नि देवता के साथ किया था। उनका नाम था स्वाहा। अग्नि अपनी पत्नी स्वाहा द्वारा ही भोजन ग्रहण करते है। दक्ष ने अपनी एक अन्य पुत्री स्वाधा का विवाह पितरों के साथ किया था। अत: पितरों को आहूति देने के लिए स्वाहा

शिवजी का पूजन सर्वश्रेष्ठ

शिव पुराण के अनुसार शिवजी ने ही इस सृष्टि का निर्माण ब्रह्माजी द्वारा करवाया है। इसी वजह से हर युग में सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए शिवजी का पूजन सर्वश्रेष्ठ और सबसे सरल उपाय है। इसके साथ शिवजी के प्रतीक रुद्राक्ष को मात्र धारण करने से ही भक्त के सभी दुख दूर हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। रुद्राक्ष कई प्रकार के रहते हैं। सभी का अलग-अलग महत्व होता है। अधिकांश भक्त रुद्राक्ष धारण करते हैं। इन्हें धारण करने के लिए कई प्रकार के नियम बताए गए हैं, नियमों का पालन करते हुए रुद्राक्ष धारण करने पर बहुत जल्द सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगते हैं। रुद्राक्ष धारण करने से पूर्व इनका विधिवत पूजन किया जाना चाहिए इसके बाद मंत्र जप करते हुए इन्हें धारण किया जा सकता है। एक मुखी रुद्राक्ष, दोमुखी रुद्राक्ष, तीन मुखी रुद्राक्ष, चार मुखी रुद्राक्ष या पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। सामान्यतया पंचमुखी रुद्राक्ष आसानी से उपलब्ध हो जाता है। जानिए कौन सा रुद्राक्ष क्यों और किस मंत्र के साथ धारण करें- एक मुखी रुद्राक्ष- जिन लोगों को लक्ष्मी कृपा चाहिए और सभी सु

पंच देव

शास्त्रों के अनुसार पांच प्रमुख देवता माने गए हैं। किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत और पूर्णता के लिए इनकी पूजा करना अनिवार्य मानी गई है। इन पंच देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करने से कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो जाता है। हमारे शास्त्रो में पंच देव के नित्य पूजन का विधान बताया गया है। इन पंच देव में भगवान गणेशजी, विष्णुजी, शिवजी, देवी मां और सूर्य देव शामिल हैं। ऐसा माना जाता है कि हमारा शरीर पांच तत्वों से निर्मित माना गया है और इन्हीं तत्वों में पांचों देवी-देवता विद्यमान रहते हैं। गणेशजी जल तत्व माने गए हैं अत: इनका वास जल में माना गया है। श्री विष्णु- वायु तत्व हैं, शिवजी- पृथ्वी तत्व हैं, श्री देवी- अग्रि तत्व हैं और श्री सूर्य- आकाश तत्व माने गए हैं। हमारे जीवन के लिए सर्वप्रथम जल की ही आवश्यकता होती है। इसलिए प्रथम पूज्य श्रीगणेश माने गए हैं जो कि जल के देवता है। वायु साक्षात विष्णु देवता से संबधित तत्व है। भगवान शंकर पृथ्वी तत्व, देवी अग्नि तत्व तथा सूर्य आकाश तत्व के देवता है। यह सभी तत्व हमारे शरीर में विद्यमान रहते हैं अत: इस प्रकार इन पांचों देवी-देवताओं का पूजन करने पर हम अपने आप का

घर के नल

आपके घर में अगर किसी नल को बंद कर देने पर भी पानी लगातार बहता है या टपकता रहता है तो समझ लेना चाहिए कोई बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। यदि आपके घर के किचन या बाथरूम या अन्य किसी जगह नल से पानी टपकता है तो यह वास्तु के अनुसार अशुभ माना जाता है। व्यर्थ पानी बहना वैसे भी अच्छा नहीं माना जाता है। वास्तु और फेंगशुई में बताया गया है कि जिस घर में नल टपकता है वहां फिजूल खर्च अधिक होते हैं। लेकिन किचन का नल अगर लगातार टपकता है तो वो ज्यादा बुरा माना जाता है। ये ही नल आपको बरबादी की ओर मोड़ सकता है क्योंकि किचन में अग्रि का वास होता है। जहां आग और पानी एक साथ हो जाएं वहां बीमारियां, परेशानियां और फिजूल खर्च शुरु हो जाता है। पानी के फिजुल बहने से वरूण देव का दोष लगता है। शास्त्रों में भी जल को भी देवता ही माना है, इसके बिना किसी भी प्राणी के लिए जीवन असंभव है। इसका अनादर करने पर देवताओं की कृपा प्राप्त नहीं होती है। वास्तु के अनुसार नल से फिजूल पानी बहना घर में अशुभ प्रभाव को बढ़ाता है। ऐसे घर में पैसों की कमी रहती है। ऐसा माना जाता है कि जिस प्रकार नल से व्यर्थ पानी टपकता रहता

बांसुरी कितने कमाल की

आपको ये जान कर आश्चर्य होगा कि बांसुरी कितने कमाल की है। वैसे तो कई तरह की बांसुरियां होती है जो अलग अलग असर दिखाती है लेकिन बांस से बनी बांसुरी और चांदी की बांसुरी विशेष असर दिखाने वाली और कमाल की होती है। - चांदी की बांसुरी अगर आपके घर में होगी तो उस घर में पैसों से जूड़ी कोई परेशानी नहीं होगी। - सोने की बांसुरी घर में रखने से उस घर में लक्ष्मी रहने लग जाती है और ऐसे घर में पैसा ही पैसा होता है। - बाँस के पौधे से बनी होने के कारण लकड़ी की बांसुरी शीघ्र उन्नतिदायक प्रभाव देती है अत: जिन व्यक्तियों को जीवन में पर्याप्त सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही हो, अथवा शिक्षा, व्यवसाय या नौकरी में बाधा आ रही हो, तो उसे अपने बैडरूम के दरवाजे पर दो बाँसुरियों को लगाना चाहिए। - यदि घर में बहुत ही अधिक वास्तु दोष है, या दो से अधिक दरवाजे एक सीध में है, तो घर के मुख्यद्वार के ऊपर दो बांसुरी लगाने से लाभ मिलता है तथा वास्तु दोष धीरे धीरे समाप्त होने लगता है। - घर का कोई सदस्य अगर बहुत दिनों से बीमार हों या अकाल मृत्यु का डर या अन्य कोई स्वास्थ्य से सम्बन्धित बड़ी समस्या हो, तो प्रत्येक कमरें के ब

होली

होली... बसंत उत्सव... फाग... फागुन... एक ऐसा त्यौहार जिसमें सभी रिश्तों, दोस्ती आदि के मतभेद, मनमुटाव, गिले-शिकवे, दूरियां मिट जाती हैं... और मजबूत होती है रिश्तों की नाजुक डोर। होली को लेकर यह बात आधुनिक समाज में ही नहीं प्रचलित है अपितु पुरातन काल से ही होली का त्यौहार मिलन का प्रतिक माना गया है। होली को सबसे प्राचीन पर्व माना जाता है। होली की शुरूआत कब हुई इसकी ठीक-ठीक जानकारी नहीं है। परंतु पुराण आदि धर्म ग्रंथों में होली संबंधी अनेक कथाएं मिलती है। उन्हीं में से कुछ प्रमुख दंत कथाएं इस प्रकार है: प्रहलाद और होलिका होली का प्रारंभ प्रहलाद और होलिका के जीवन से जुड़ा है। प्रहलाद और होलिका की कथा विष्णु पुराण में उल्लेखित है। हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर वरदान प्राप्त कर लिया। अब वह न तो पृथ्वी पर मर सकता था न आकाश में, न दिन में, न रात में, न घर में, न बाहर, न अस्त्र से, न शस्त्र से, न मानव से मर सकता था न पशु से। वरदान के बल से उसने देवताओं-मानव आदि लोकों को जीत लिया और विष्णु पूजा बंद करा दी। परंतु पुत्र प्रहलाद को नारायण की भक्ति से विमुख नहीं कर सका। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को बहु