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Showing posts from February, 2014

चमत्कारिक मंदिर मेहंदीपुर बालाजी..!!!

कहावत है चमत्कार को नमस्कार। राजस्थान के दौसा जिले में मेहंदीपुर बालाजी का चमत्कारिक मंदिर है। बाल रूप हनुमान का स्वरूप ही बालाजी के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर जयपुर-आगरा मार्ग पर जयपुर से सौ किमी और आगरा से १३५ किमी और दिल्ली से वाया २७५ किमी की दूरी पर स्थित है। आगरा-जयपुर मार्ग पर बालाजी मोड़ एक स्थान है। हरेक बस यहां रुकती है। यहां से मंदिर तीन किमी दूर है और दर्शनार्थइयों को लाने-ले जाने के लिए यहां से टेंपो, जीप या रिक्शा आदि हर समय मिलते हैं। इस मंदिर में भारत के हर स्थान से दर्शनार्थी तीन में से किसी उद्देश्य को लेकर आते हैं। पहला मात्र दर्शन, दूसरा मनोकामना की पूर्ति के लिए अर्जी लगाना और तीसरा भूत-प्रेत से पीडि़तों के लिए मुक्ति के लिए। इस मंदिर में तीन देवताओं का वास है-बाल रूप में हनुमान जी, भैंरो बाबा और प्रेत राज सरकार। प्रत्येक दर्शनार्थी तीनों देवों के दर्शन कर कृतार्थ महसूस करता है। कामना पूर्ति के लिए यहां अर्जी लगायी जाती है। इसका नियम से पालन करने वाले की बालाजी तत्काल सुनते हैं। नियम इस तरह है-सबसे पहले हलवाई से दरख्वास्त लेते हैं। यह कागज पर कलम से लिखी दरख

कर्म बाई जी भगवान को बाल भाव से भजती थी

कर्म बाई जी भगवान को बाल भाव से भजती थी. बिहारी जी से रोज बाते किया करती थी. एक दिन बिहारी जी से बोली - तुम मेरी एक बात मानोगे. ------------------------------------------------------------------- भगवान ने कहा- कहो ! क्या बात है? कर्म बाई जी ने कहा- मेरी एक इच्छा है कि एक बार अपने हाथो से आपको कुछ बनाकर खिलाऊ. बिहारी जी ने कहा- ठीक है! अगले दिन कर्माबाई जी ने खिचड़ी बनायीं और बिहारी जी को भोग लगाया,जब बिहारी जी ने खिचड़ी खायी, तो उन्हे इतनी अच्छी लगी, कि वे रोज आने लगे. कर्मा बाई जी रोज सुबह उठकर सबसे पहले खिचड़ी बनाती बिहारी जी भी सुबह होते ही दौड़कर आते और दरवाजे से ही आवाज लगाते, माँ में आ गया जल्दी से खिचड़ी लाओ कर्मा बाई जी लाकर सामने रख देती भगवान भोग लगाते और चले जाते एक बार एक संत कर्माबाई जी के पास आये और उन्होंने सब देखा तो वे बोले आप सर्वप्रथम सुबह उठाकर खिचड़ी क्यों बनाती है, ना स्नान किया, ना रसोई घर साफ की, आप को ये सब करके फिर भगवान के लिये भोग बनाना चाहिये,अगले दिन कर्माबाई जी ने ऐसा ही किया. जैसे ही सुबह हुई भगवान आये और बोले माँ में आ गया, खिचड़ी लाओ. कर्मा बाई जी

Krishna and Shrila Prabhupada

Acharya Prabhakar said that on Shri Krishna Janmashtami in 1954, he had to go to Delhi. When he returned to Jhansi, he took a little rest, woke up at 1:00 am and heard Shrila Prabhupada ecstatically playing mridanga in the temple room. Prabhupada was chanting in total bliss. Acharya Prabhakar went upstairs and saw Shrila Prabhupada bouncing around the temple room performing kirtan. Prabhupada was wearing a kadamba flower garland that went all the way down to his feet. Kadamba flowers are very rare in Jhansi and when they are available they are usually the size of a golf ball.But the ones Prabhupada was wearing were big, the size of tennis balls. And he said that the atmosphere right down to the atoms in the room was not material, aprakrita. The place was surcharged with the fragrance of the heavenly planets. Acharya Prabhakar wanted to ask Shrila Prabhupada, “Where did this garland come from? It is not available from the market.” But Shrila Prabhupada would not answer. His Divine Grace