चमत्कारिक मंदिर मेहंदीपुर बालाजी..!!!

कहावत है चमत्कार को नमस्कार। राजस्थान के दौसा जिले में मेहंदीपुर बालाजी का चमत्कारिक मंदिर है। बाल रूप हनुमान का स्वरूप ही बालाजी के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर जयपुर-आगरा मार्ग पर जयपुर से सौ किमी और आगरा से १३५ किमी और दिल्ली से वाया २७५ किमी की दूरी पर स्थित है। आगरा-जयपुर मार्ग पर बालाजी मोड़ एक स्थान है। हरेक बस यहां रुकती है। यहां से मंदिर तीन किमी दूर है और दर्शनार्थइयों को लाने-ले जाने के लिए यहां से टेंपो, जीप या रिक्शा आदि हर समय मिलते हैं। इस मंदिर में भारत के हर स्थान से दर्शनार्थी तीन में से किसी उद्देश्य को लेकर आते हैं। पहला मात्र दर्शन, दूसरा मनोकामना की पूर्ति के लिए अर्जी लगाना और तीसरा भूत-प्रेत से पीडि़तों के लिए मुक्ति के लिए। इस मंदिर में तीन देवताओं का वास है-बाल रूप में हनुमान जी, भैंरो बाबा और प्रेत राज सरकार। प्रत्येक दर्शनार्थी तीनों देवों के दर्शन कर कृतार्थ महसूस करता है। कामना पूर्ति के लिए यहां अर्जी लगायी जाती है। इसका नियम से पालन करने वाले की बालाजी तत्काल सुनते हैं। नियम इस तरह है-सबसे पहले हलवाई से दरख्वास्त लेते हैं। यह कागज पर कलम से लिखी दरख्वास्त नहीं, अपितु यह एक दौने में छह बूंदी के लड्डू, कुछ बताशे तथा घी का एक दीपक होता है। इसकी कीमत अब पांच रुपए हो गयी है। इस दौने को लेकर बालाजी के मंदिर में जाते हैं। वहां पुजारी को यह दौना दे देते हैं। पुजारी दौने में से कुछ बताशे, लड्डू जल रहे अग्निकुंड में डाल देता है। जिस समय वह प्रसाद कुंड में डाल रहा हो, आपको अपनी मनोकामना मन में ही कहनी होती है। जैसे कि बालाजी भगवान मैं आपके दरबार में हूं, मेरी रक्षा करते रहना आदि। पुजारी दौने में शेष रहा प्रसाद आपको वापस कर देता है। तब उसमें से दो लड्डू निकाल कर अपने पास रख लेते हैं और शेष दौने को भैंरो बाबा के मंदिर में पुजारी को दे देते हैं। वह भी उस दौने में से कुछ प्रसाद लेकर हवन कुंड में प्रवाहित कर देता है। ठीक उसी समय आपको वहीं मनोकामना के शब्द दोहराने हैं, जो आपने बालाजी के सामने मन ही मन कहे थे। अब वही दौना लेकर आगे प्रेतराज सरकार के दरबार में पुजारी को देते हैं। वह भी कुछ सामग्री लेकर हवन कुंड में डालेगा। यहां भी वही मनोकामना के शब्द आपको दोहराने हैं। पुजारी शेष दौना आपको वापस कर देता है। यहां से बाहर एक चबूतरा है, वहां वह दौना फैंक देते हैं और मंदिर से बाहर आकर जो दो लड्डू बालाजी के भोग लगाने के बाद मिले थे, उन्हें खा लेते हैं। इस तरह अर्जी का एक चरण पूरा हो जाता है। कामना की अर्जी का तरीका --------- अब अर्जी की कीमत ८१ रुपए हो गयी है। इतनी धनराशि लेकर आप हलवाई से अर्जी का सामान ले सकते हैं। हलवाई के थाल में सवा किलो बूंदी के लड्डू, एक कटोरी में घी थाल में रखकर देता है। फिर वापस दूसरे रास्ते से बालाजी के मंदिर में जाते हैं और थाल पुजारी को देते हैं। वह कुछ लड्डू भोग के लिए तथा घी निकाल लेता है और कुछ लड्डू हवन में डालता है। अब इसी समय आपको फिर से अपनी मनोकामना के वही शब्द मन ही मन दोहराने हैं। पुजारी थाली में खाली घी की कटोरी और छह लड्डू आपको वापस कर देता है। वह थाल आप सीधे हलवाई को दे दें। हलवाई आपको एक थाल में उबले चावल तथा दूसरे थाल में उबले हुए साबुत उरद देता है। छह लड्डुओं में से दो लड्डू उरद के थाल में रख देगा तथा दो लड्डू चावल के दाल में रखेगा। शेष दो लिफाफे में रखकर आपको दे देगा, जो आपको जेब में रख लेने हैं। दोनों थालों को बाहर के रास्ते से भैंरो जी के मंदिर में पुजारी के सामने रख देने है। पुजारी उसमें से कुछ सामग्री हवन कुंड में डालेगा। ठीक उसी समय आपको अपनी मनोकामना के वही शब्द मन ही मन कहने हैं। अब दोनों थाल लेकर प्रेतराज सरकार के मंदिर में जाएंगे। यहां भी पुजारी कुछ सामग्री लेकर हवन कुंड में डालेगा। ठीक उसी समय आपको वही मनोकामना यहां भी कहनी है, जो पहले बालाजी और भैंरो जी के सामने कही थी। अब मंदिर से बाहर चबूतरे पर आकर पीछे मुड़कर पूरी सामग्री वहां डाल देते हैं। वापस आकर थाल हलवाई को दे देते हैं और हाथ धोकर जेब में रखे दो लड्डू अर्जी लगाने वाले को खाने होते हैं। किसी और को नहीं देते। इसके बाद एक दरख्वास्त लेकर फिर बालाजी के मंदिर में जाते हैं और पुजारी को देते हैं। पुजारी के उसे हवन कुंड में डालते समय मन ही मन प्रार्थना करते हैं कि बालाजी महाराज मैंने जो अर्जी लगायी थी, ( मनोकामना के वही शब्द बोलते हैं) उसे पूरी करना। दो लड्डू दौने से निकाल कर जेब में रख लेते हैं, फिर उसी क्रम में भैंरो बाबा और प्रेतराज सरकार से मांगते हैं और अंत में दौना फैंक कर नीचे आकर हनुमान जी के भोग से निकाले दोनों लड्डू खा लेते हैं। मंदिर छोड़ने तथा घर वापस चलते समय की एक दरख्वास्त फिर लगाते हैं, जिसमें तीनों देवों से पहले बताए क्रम के अनुसार पारिवारिक सुख शांति तथा उनकी कृपा मांगते हैं। यहां बालाजी का भोग लगाने पर पहले जो दो लड्डू निकाले थे, वे नहीं निकालते हैं और रुकते नहीं हैं, सीधे घर को प्रस्थान कर देते हैं। भूत-प्रेत की अर्जी ------------------- भूत-प्रेत ग्रस्त लोग यहां उपरोक्तानुसार अर्जी लगाते हैं। यहां भूत प्रेतों को संकट कहते हैं-अर्जी में बालाजी, भैंरो जी व प्रेतराज जी से यही कहते हैं कि मेरे ऊपर जो संकट है, उससे मुझे मुक्त करें। प्रार्थना करते ही यहां की अदृश्य शक्तियां क्रियाशील हो जाती हैं और संकट को उस पीडि़त व्यक्ति पर लाकर कई तरीकों से कसती हैं। वह संकट को तीन प्रकार की गति देती हैं। एक तो संकट को फांसी दी जाती है। वह संकट भैरों जी के यहां पीडि़त के शरीर में शीर्षासन की स्थिति बनाकर पीडि़त को मुक्त करने का वचन देता है। और यह भी बताता है कि उसे किस तांत्रिक ने लगाया है। अथवा वह स्वयं ही उसके पीछे कब और कहां से लगा है। और उस संकट ने पीडि़त का क्या-क्या अहित किया है। अंत में उस संकट को फांसी दे दी जाती है। या उस संकट को भंगीपाड़े में जला भी दिया जाता है। यदि बालाजी समझते हैं कि संकट अच्छी आत्मा है तो उसे शुद्ध कर अपने चरणों में जगह भी देते हैं। बाद में वही संकट शक्ति अर्जित कर अन्य पीडि़तों का कल्याण करता है। जिससे संकट हरा जाता है, बालाजी उसकी रक्षा के लिए अपने दूत दे देते हैं जो उसकी रक्षा करते रहते हैं। यह सारा काम यहां स्वचालित अदृश्य शक्तियों द्वारा होता है, जिसमें किसी जीवित व्यक्ति या पुजारी का कोई योगदान नहीं होता। यदि संकट ग्रस्त पीडि़त यह अर्जी लगाता है कि बालाजी महाराज जो संकट उसे परेशान कर रहा है, उसे वह कैद कर लें तो वह संकट बालाजी महाराज के यहां कैद हो जाता है। और वह उन संकटों से मुक्त हो जाता है। यहां संकटग्रस्तों को विभिन्न यातनाएं जैसे कलामुंडी खाते, दौड़-दौड़ कर दीवार में पीठ मारते, धरती पर हाथ मारते, भारी-भारी पत्थर अपने ऊपर रखवाते, अग्नि में तपते आदि देखकर दर्शनार्थी भयभीत हो जाता है। किंतु यहां भयभीत होने की कोई बात नहीं है। संकटग्रस्त व्यक्ति किसी दर्शनार्थी को कोई हानि नहीं पहुंचाते। बालाजी महाराज के अदृश्य गण दर्शनार्थियों की रक्षा को तत्पर रहते हैं। सवा मनी का विधान जो दर्शनार्थी अपने किसी कार्य के लिए अर्जी लगाता है, वह यह भी कहता है कि बालाजी महाराज मेरा काम होने पर आपकी सवा मनी करूंगा, तो कार्य पूरा होने पर सवा मनी की जाती है। सवा मनी के लिए श्रीराम जानकी मंदिर के पुजारी को सवा मनी के पैसे जमा कराने होते हैं। यह दो प्रकार की होती है। एक लड्डू-पूरी और दूसरी हलुआ-पूरी। पुजारी उस राशि की रसीद दे देता है। दोपहर बारह बजे मंदिर में प्रसाद लगने के बाद आपको प्रसाद दे दिया जाता है। यह प्रसाद अपने परिजनों व साथियों के लिए मंदिर से धर्मशाला में ले जाकर सेवन करना चाहिए। इस मंदिर में यह विशेष बात है कि मंदिर में लगाया भोग प्रसाद न कोई लेता है और न किसी को दिया जाता है। और न कोई खाता है। यह प्रसाद अपने घर भी नहीं ले जाया जाता। केवल मिश्री-मेवा का प्रसाद ही घर ले जा सकते हैं। व्यवस्थाएं यहां करीब तीन सौ धर्मशालाएं हैं। भोजन की अच्छी व्यवस्था है। किसी को रहने व भोजन की असुविधा नहीं होती। विडंबना यह है कि दूर से आने वालों को गाइड करने वाला कोई नहीं है। दुकानदारों से पूछकर ही सब काम करने पड़ते हैं। इसमें दुकानदारों का व्यापारिक दृष्टिकोण भी रहता है। यह लेख दर्शनार्थियों के मार्गदर्शन में उपयोगी सिद्ध हुआ तो ही मेरा लेखन सार्थक हो सकेगा। ‪#‎Dada‬ Er.R.N Chaturvedi

Comments

Unknown said…
बहुत सुन्दर और उपयोगी मारगदर्शन 🙏🙏🚩🚩 जय श्री बालाजी महाराज की 🚩🚩
Jai balaji. Prabhu aapka klyaan Karen
Unknown said…
Kai balji maharaj meri galtio ko chama karna
Unknown said…
Kya yha jane se ghar par kabza jamaye jinnat bhi khatm ho jate hai pls mujhe bataiye mujhe bhi aana h pls bataiye
I believe you need to visit Balaji Maharaj temple for that

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