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Showing posts from October, 2011

कृष्ण जाम्बवन्त युद्ध

एक बार क􀈧 बात है , एक बार सत्रािजत ने भगवान सूयर् क􀈧 उपासना करके उनसे स्यमन्तक म􀍨ण प्राप्त क􀈧। उस म􀍨ण का प्रकाश भगवान सूयर् के समान ह􀈣 था। एक 􀇑दन भगवान कृष्ण जब चौसर खेल रहे थे तभी सत्रािजत उस म􀍨ण को पहन कर उनके पास आया। दूर से उसे आते देख कर यादव􀉉 ने कहा, "हे कृष्ण! आपके दशर्न􀉉 के 􀍧लये सा􀂢ात् सूयर् भगवान या अिग्नदेव चले आ रहे ह􀉇।" इस पर श्री कृष्ण हँस कर बोले, "हे यादव􀉉! यह सत्रािजत है, उसने सूयर् भगवान से प्राप्त स्यमन्तक म􀍨ण को पहन रखा है इसी 􀍧लये वह तेजोमय हो रहा है।" उसी समय सत्रािजत वहाँ पर आ पहुँचा। सत्रािजत को देखकर उन यादव􀉉 ने कहा, "अरे सत्रािजत! तेरे पास यह अलौ􀍩कक 􀇑दव्य म􀍨ण है। अलौ􀍩कक सुन्दर वस्तु का अ􀍬धकार􀈣 तो राजा होता है। इस􀍧लये तू इस म􀍨ण को हमारे राजा उग्रसेन को दे दे।" 􀍩कन्तु सत्रािजत यह बात सुन कर 􀇒बना कुछ उत्तर 􀇑दये ह􀈣 वहाँ से उठ कर चला गया। सत्रािजत ने स्यमन्तक म􀍨ण को अपने घर के एक देव मिन्दर म􀉅 स्था􀍪पत कर 􀇑दया। वह म􀍨ण 􀇓नत्य उसे आठ भार सोना देती थी। िजस स्थान म􀉅 वह म􀍨ण होती थी वहाँ के सारे कष्ट स्वयं ह

दुर्घटना से बचने के उपाय

जन्म कुंडली के माध्यम से किसी भी व्यक्ति के भूत, भविष्य के बारे में जाना जा सकता है। विद्वान पंडित कुंडली देखकर यह भी बता सकते हैं कि किन ग्रहों के कारण कौन सा समय व्यक्ति के लिए ठीक नहीं है। ग्रहों के योग देखकर किसी दुर्घटना की पूर्व जानकारी के बारे में भी पता चल जाता है। यदि आपकी कुंडली में भी दुर्घटना के योग बन रहे हैं तो नीचे लिखे उपाय करने से होने वाले अनिष्ट को रोका या कम किया जा सकता है। दुर्घटना से बचने के उपाय - महामृत्युंजय मंत्र का जप प्रत्येक अनिष्ट दूर करने वाला है। - शनिवार को छाया दान करना हितकारी है। - विष्णु सहस्त्रनाम का प्रतिदिन जप लाभदायक है। - सोना दान, गौ दान करने से भी अनिष्ट की शांति होती है। - पुखराज धारण करना भी ग्रह योगानुसार दुर्घटना से बचाता है। - जो ग्रह 6/8/11 भाव से संबंधित अनिष्ट कारक हो, उनका पत्थर पहनने से अनिष्ट टल जाता है। - भूखे पशुु को चारा खिलाना और पक्षियों, मछलियों को भोजन कराने से भी ग्रहों की शांति होती है। इन उपायों को करने से दुर्घटना के योग टल सकते हैं।

गोवर्धन पूजा का माहात्म्य

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कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस बार गोवर्धन पूजा का पर्व 27 अक्टूबर, गुरुवार को है। आईए जानते हैं गोवर्धन पूजा का माहात्म्य- हमारे कृषि प्रधान देश में गोवर्धन पूजा जैसे प्रेरणाप्रद पर्व की अत्यंत आवश्यकता है। इसके पीछे एक महान संदेश गो यानी पृथ्वी और गाय दोनों की उन्नति तथा विकास की ओर ध्यान देना और उनके संवर्धन के लिए सदा प्रयत्नशील होना छिपा है। अन्नकूट का महोत्सव भी गोवर्धन पूजा के दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाया जाता है। यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा का पर्व यूं तो अति प्राचीनकाल से मनाया जाता रहा है, लेकिन आज जो विधान मौजूद है वह भगवान श्रीकृष्ण के इस धरा पर अवतरित होने के बाद द्वापर युग से आरंभ हुआ है। उस समय जहां वर्षा के देवता इंद्र की ही उस दिन पूजा की जाती थी, वहीं अब गोवर्धन पूजा भी प्रचलन में आ गई है। धर्मग्रंथों में इस दिन इंद्र, वरुण, अग्नि आदि देवताओं की पूजा करने का उल्लेख मिलता है। उल्लेखनीय है कि ये पूजन पशुधन व अन्न आदि के भंडार के लिए किया जाता है। बालखिल्य ऋषि का

गोवर्धन पूजा

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कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन पर्वतराज गोवर्धन की पूजा की जाती है। इसकी कथा इस प्रकार है- एक समय की बात है भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं, गोप-ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि नाच-गाकर खुशियां मना रही हैं। जब श्रीकृष्ण ने इसका कारण पूछा तो गोपियों ने कहा कि आज मेघ व देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होगा। पूजन से प्रसन्न होकर वे वर्षा करते हैं, जिससे अन्न पैदा होता है तथा ब्रजवासियों का भरण-पोषण होता है। तब श्रीकृष्ण बोले- इंद्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है। हमें इंद्र से भी बलवान गोवर्धन की ही पूजा करना चाहिए। तब सभी श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन की पूजा करने लगे। यह बात जाकर नारद ने इंद्र को बता दी। यह सुनकर इंद्र को बहुत क्रोध आया। इंद्र ने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर प्रलय का-सा दृश्य उत्पन्न कर दें। मेघ ब्रज-भूमि पर जाकर मूसलधार बरसने लगे। इससे भयभीत होकर सभी गोप-ग्वाले श्रीकृष्ण की शरण में गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे।गोप-गोपियों की पुकार सुनकर श्रीकृ

गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा दीपावली की अगली सुबह गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है । शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की । जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन

नीम

नीम को एक ऐसे पेड़ के रूप में पेश किया जा रहा है, जो डायबिटीज से लेकर एड्स, कैंसर और न जाने किस-किस तरह की बीमारियों का इलाज कर सकता है। दाद वाली जगहों पर लगाएं, कुछ ही दिनों में दाद का काम तमाम हो जाएगा।अस्थमा के मरीज को नीम के बीजों का तेल पान में डालकर चबाना चाहिए। पथरी होने पर पानी के साथ नीम की पत्तियों की राख नियमित लेने से पथरी गल कर बाहर निकल जाती है। नीम के फूलों का सेवन करने से कफ नष्ट होता है। नीम की छाल से खांसी, बवासीर आदि रोग दूर होते हैं। शरीर पर सफेद दाग होने पर नीम के फूल, फल तथा पत्तियों को मिलाकर बारीक पीस लें। इसे पानी में मिलाकर पीने से लाभ पहुंचता है। नीम की कच्ची निबोरी के सेवन से पेट के कीड़े, बवासीर व कोढ आदि रोग दूर होते हैं। खाने में अरूचि होने पर नीम के पत्तों का सेवन लाभप्रद है। यही नहीं, नीम के हरे पत्तों का रस नाक में टपकाने से सिर का दर्द दूर होता है और कान में टपकाने से कान की पीड़ा में आराम मिलता है। जबकि मीठी नीम के सूखे गीले पत्ते कढ़ी में छोंक लगाने तथा दाल को मजेदार बनाने के काम आते हैं। इनको चने के बेसन में मिलाकर पकोड़ी भी बनाई जाती है। नीम

दीपावली पर धनलक्ष्मी कर देगी मालामाल अगर घर के बाहर हो ये निशान

जी हां आपको यकिन नहीं होगा कि र्सिफ एक पवित्र निशान घर के बाहर लगा कर आप इस दीपावली पर मालामाल बन सकते हैं। जानिए क्यों और कैसे दीपावली रौशनी और खुशहाली का पर्व है। इस दिन श्री गणेश जी एवं लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गणेश एवं लक्ष्मी जी उस घर मे रहने के लिये आते हैं जिस घर मे उनका पूजा सत्कार किया जाता है। गणेश पूजा के बिना कोई भी पूजन अधूरा होता है इसलिए लक्ष्मी के साथ गणेश पूजन भी किया जाता है। घर को साफ-सुथरा कर रंगोली और स्वस्तिक बनाने की भी परंपरा है। दरअसल स्वस्तिक को गणेशजी का प्रतीक माना जाता है। सभी मांगलिक चिन्हों में से स्वस्तिक सबसे कल्याणकारी चिन्ह है। इस चिन्ह को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। शुभ कार्यो में आम की पत्तियों को घर के दरवाजे पर बांधा जाता है। क्योंकि आम की पत्ती, इसकी लकड़ी और फल को ज्योतिष की दृष्टी से भी बहुत शुभ माना जाता है। मंगल प्रसंगों के अवसर पर पूजा स्थान तथा दरवाजे की चौखट और प्रमुख दरवाजे के आसपास स्वस्तिक चिन्ह बनाने की परंपरा है। वे स्वस्तिक कतई परिणाम नहीं देते, जिनका संबंध प्लास्टिक, लोहा या स्टील से हो। सोना

किस लकड़ी का बना हो फर्निचर

घर की सजावट में फर्निचर का बहुत महत्व है। आजकल हम फर्निचर पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। कई बार ऐसा होता है कि अगर फर्निचर दिखने में आकर्षक हो तो हम ये भी नहीं देखते हैं कि किस लकड़ी का बना है। ऐसे में हम कई बार आनन-फानन में मनहूस फर्निचर उठा लाते हैं और धीरे धीरे मुसिबत ये घीर जाते हैं। कुछ फर्निचर ऐसे होते हैं जो आपके घर को धीरे धीरे बरबाद करने लगते हैं। ऐसे फर्निचर वास्तु के अनुसार अशुभ लकडिय़ों के बने होते हैं जिनसे घर में अशांति, रोग और खर्च बढऩे लगता है। वास्तु ने बहेड़ा, पीपल और बड़ के पेड़ की लकडिय़ों के फर्निचर को अशुभ और रोग देने वाला माना है। ऐसी लकडिय़ों से बनें फर्निचरों के उपयोग करने से बचें। वास्तु के अनुसार घर में फर्नीचर बनवाने के लिए वटवृक्ष, पाकर, कैथ, करंज, गुलर आदि लकडिय़ों का भी उपयोग करने से बचें। अगर आप इन लकडिय़ों का उपयोग करते हैं तो ऐसा करने पर सुख का नाश होता है। साथ ही ऐसे फर्निचर जिन पर अशुभ आकृति होती है वे भी आपके घर को बरबाद ही करते हैं चाहे धीरे-धीरे ही सही। ध्यान रखें सिंह, गिद्द, बाज या अन्य हिंसक पशुओं की आकृति आपके फर्निचर पर नहीं होना चाहिए। ऐस

करें हनुमान और मंगल की पूजा...

जीवन में मनोबल और आत्मविश्वास की कमी असफलता का बड़ा कारण बनती है। जरूरी है कि गुण, योग्यता होने के बाद भी मन को व्यर्थ भय और अनिश्चितताओं से भरी सोच से दूर रख पक्के इरादों के साथ आगे बढ़ा जाए। धर्मशास्त्रों में श्री हनुमान चरित्र शक्ति व मनोबल और मंगल देव की पूजा पराक्रम नियत करने वाली मानी गई है। जिससे कोई भी इंसान पुरुषार्थी बनकर बुलंद हौसले के साथ हर जगह व कार्य में अपना दबदबा बना सफल हो सकता है। शास्त्रों के मुताबिक मंगलवार को दिन श्री हनुमान और मंगलदेव की उपासना में कुछ विशेष मंत्र और उपाय सफलता की ऐसी ही कामना को पूरा करने वाले माने गए हैं। जानते हैं ये उपाय व मंत्र - - मंगलवार को पूर्ण पवित्रता के साथ हनुमान मंदिर में श्री हनुमान को मंगल के नीचे लिखा वैदिक मंत्र बोलते हुए सिंदूर व घी के लेप से चोला चढएं, लाल फूल, यज्ञोपवीत के साथ गुड़ के लड्डू का भोग लगाएं। मंत्र है - ऊँ अग्रिर्मू्र्द्धादव: ककुत्पति पृथिव्याअयमपाग्वं रेताग्वंसि जिन्वति।। - इस मंगल वैदिक मंत्र के स्मरण के बाद श्री हनुमान को गुग्गल धूप व चमेली के तेल या गाय के घी का दीप जला आरती करें। - यथाशक्ति हनुमान

कोई भी कार्य असंभव नहीं है बजरंग बली के लिए

कलियुग में बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले देवी-देवताओं में से एक हैं हनुमानजी। बजरंग बली श्रीराम के अनन्य भक्त हैं और इनके लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है। हमारे जीवन की सभी समस्याओं का निराकरण हनुमानजी की भक्ति से हो जाता है। जीवन में जब भी कोई अत्यधिक मुश्किल प्रतीत हो रहा हो या लाख कोशिशों के बाद भी वह पूर्ण नहीं हो पा रहा हो या बार-बार बाधाएं उत्पन्न हो रही हों तब हनुमानजी को प्रसन्न कर उन रुकावटों को दूर किया जा सकता है। वैसे तो बजरंग बली की कृपा प्राप्ति के लिए कई उपाय बताए गए हैं लेकिन सबसे सटीक उपाय है हनुमानजी के सामने रामायण का पाठ करना। जब भी हम किसी भयंकर मुसीबत में फंस जाए और कोई रास्ता न दिखाई दे तो किसी भी हनुमान मंदिर में जाकर वहां रामायण या श्रीरामचरित मानस का पाठ करना चाहिए। श्रीराम के स्तुति गान से हनुमानजी अति प्रसन्न होते हैं और भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। यदि संपूर्ण रामायण का पाठ करना संभव न हो तो राम नाम का जप भी किया जा सकता है। बजरंग बली के समक्ष राम नाम का जप करने से भी उनकी कृपा प्राप्त हो जाती है। पवनपुत्र बजरंग बली की कृपा प्राप्ति के बाद कोई भी

ऐसीडिटी सिर्फ बीमारी नहीं

ऐसीडिटी या बार-बार पेट में जलन होना बीमारी तो है ही ये आपके भविष्य की और इशारा भी है। ये बात आपको अनोखी लग रही होगी लेकिन ज्योतिष के नजरीये से देखा जाए तो ग्रह-नक्षत्र और सितारो का बुरा असर इस बीमारी के रूप में होता है। ये बुरा असर भी आने वाले कल का इशारा होता है जानिए ऐसीडिटी क्या इशारा करती है। अगर कोई ऐसीडिटी, पेट के छाले, जलन या मुंह के छालों से लगातार परेशान हो रहा हो तो उसे समझ लेना चाहिए कि उसकी कुंडली में सूर्य अशुभ स्थान पर है या अशुभ फल देने वाला है। सूर्य अशुभ होने से ये बीमारियां तो होती ही है साथ ही ज्योतिष के अनुसार उसको सरकारी कामकाजों में परेशानियां आने लगेगी। ऐसे लोगों का पैसा चालान के रूप में सरकारी कोष में जाता है। सूर्य के कारण ही ऐसे लोगों में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। जो लोग अक्सर ऐसीडिटी से परेशान रहते हैं ऐसे लोगों को अशुभ सूर्य होने के कारण अपनी पद प्रतिष्ठा का नुकसान झेलना पड़ता है। सूर्य किस्मत का स्वामी होता है अगर आपकी कुंडली में सूर्य अच्छी स्थिति में नहीं है तो आपको ऐसीडिटी तो होगी ही साथ ही अचानक कुछ समय के लिए आपकी किस्मत आपका साथ छोड़ सकती है

जिद और गुस्सा हो जाते हैं गायब

सभी माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देना चाहते हैं, अपने बच्चों की सभी इच्छाएं पूरी करना चाहते हैं, ऐसे में कई बार बच्चे जिद्दी भी हो जाते हैं। जैसे-जैसे बच्चा बड़े होते जाता है उसकी जिद भी बढ़ती जाती है जो कि कई परेशानियों का कारण भी बन सकती है। वैसे इससे बचने के लिए कई उपाय बताए जाते हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार भी एक सटीक उपाय बताया गया है। कई बार बच्चे छोटी-छोटी बातों को मनवाने के लिए जिद करते हैं और यही आदत धीरे-धीरे बड़ी होती जाती है। ऐसे में अक्सर माता-पिता को काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। बच्चों को अच्छे से समझने और समझाने से उनकी जिद कम हो सकती है। शास्त्रों के अनुसार बताया गया है कि अगर कोई बच्चा ज्यादा जिद्दी हो, चिडचिड़ा हो, क्रोध अधिक करता हो, माता-पिता या अन्य बड़े लोगों की बातें नहीं सुनता हो, जमीन पर लौट लगाता हो तो उसको हनुमानजी के बांए पैर का सिंदूर हर मंगलवार और शनिवार को लगाएं। सिंदूर मस्तक या माथे पर लगाएं। ऐसा माना जाता है कि हनुमानजी के बाएं पैर का सिंदूर माथे पर लगाने से सद्बुद्धि प्राप्त होती है। हनुमानजी को बल और बुद्धि का दाता माना जाता

वहां आते हैं हनुमानजी...

ऋषि-मुनियों ने जिसे तप कहा है, आज उसे अनुशासन कहा जा सकता है। अनुशासन एक सुव्यवस्था है। हनुमानजी अत्यधिक सुव्यवस्थित देवता हैं। सीताजी की खोज के लिए जब वे लंका पहुंचते हैं तो एक-एक भवन में ढूंढ़ने पर सीताजी नहीं मिलतीं। तभी उन्हें विभीषण का घर दिखता है। तुलसीदासजी ने सुंदरकांड में लिखा है - भवन एक पुनि दीख सुहावा। हरि मंदिर तहं भिन्न बनावा।। फिर एक सुंदर महल दिखाई दिया। उसमें भगवान का मंदिर बना हुआ था। यहां एक बात समझने वाली है। विभीषण लंका में रहते थे और उनके घर में चार विशेषताएं थीं, इसीलिए हनुमानजी उनके जीवन में आ गए। पहली विशेषता ‘हरि मंदिर तहं भिन्न बनावां’ घर में भगवान के लिए एक पृथक स्थान होना चाहिए। रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ। नव तुलसिका बृंद तहं देखि हरष कपिराइ।। दूसरी, वह महल श्रीरामजी के आयुध के चिह्नें से अंकित था। तीसरा, वहां तुलसी के पौधे थे। चौथी बात, विभीषणजी के मकान पर मांगलिक चिह्न् बने हुए थे। हमारे निवास स्थान के द्वार पर शुभ चिह्न् होना चाहिए। आंगन में तुलसी का पौधा था, तुलसी संतोष का पौधा है। यह देखकर हनुमानजी प्रसन्न हुए। हमारे निवास स्थान म

न हो मन में पाप..!

नवरात्रि में शक्ति की उपासना के साथ ही शारदीय नवरात्र में भगवान राम की भी आराधना की जाती है। असल में शक्ति और श्रीराम उपासना के पीछे संदेश यह भी है कि जीवन में कामयाबी को छूने के लिए बेहतर व मर्यादित चरित्र व व्यक्तित्व की शक्ति भी जरूरी है। इस तरह नवरात्रि व विजयादशमी शक्ति के साथ मर्यादा के महत्व की ओर इशारा करती है। खासतौर पर शक्ति के मद में रिश्तों, संबंधों और पद की मर्यादा न भूलकर दुर्गति से बचना ही दुर्गा पूजा की सार्थकता भी है। जगतजननी का यही स्वरूप व्यावहारिक जीवन में स्त्री को माना जाता है। यही कारण है कि वेद-पुराणों में 16 स्त्रियों को माता की तरह सम्मान देने का महत्व बताया गया है। कौन हैं ये स्त्रियां जानते हैं- स्तनदायी गर्भधात्री भक्ष्यदात्री गुरुप्रिया। अभीष्टदेवपत्नी च पितु: पत्नी च कन्यका।। सगर्भजा या भगिनी पुत्रपत्त्नी प्रियाप्रसू:। मातुर्माता पितुर्माता सोदरस्य प्रिया तथा।। मातु: पितुश्र्च भगिनी मातुलानी तथैव च। जनानां वेदविहिता मातर: षोडश स्मृता:।। जिसका अर्थ है कि वेद में नीचे बताई 16 स्त्रियां मनुष्य के लिए माताएं हैं- स्तन या दूध पिलाने वाली, गर्भधा

फूल चढ़ाने से पहले ध्यान रखना चाहिए ये पांच बातें...

भगवान की पूजा-अर्चना में फूल अर्पित करना अति आवश्यक माना गया है। पुष्प के बिना कोई भी पूजन कर्म पूर्ण नहीं हो सकता। ऐसी मान्यता है कि भगवान के प्रिय पुष्प अर्पित करने से वे जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मनावांछित फल प्रदान करते हैं। सभी मांगलिक कार्य और पूजन कर्म में फूलों का विशेष स्थान होता है। सभी देवी-देवताओं को अलग-अलग फूल प्रिय हैं। साथ ही इन्हें कुछ फूल नहीं चढ़ाएं जाते। इसी वजह से बड़ी सावधानी से पूजा आदि के लिए फूलों का चयन करना चाहिए। - शिवजी की पूजा में मालती, कुंद, चमेली, केवड़ा के फूल वर्जित किए गए हैं। - सूर्य उपासना में अगस्त्य के फूलों का उपयोग नहीं करना चाहिए। - सूर्य और श्रीगणेश के अतिरिक्त सभी देवी-देवताओं को बिल्व पत्र चढ़ाएं जा सकते हैं। सूर्य और श्री गणेश को बिल्व पत्र न चढ़ाएं। - प्रात: काल स्नानादि के बाद भी देवताओं पर चढ़ाने के लिए पुष्प तोड़ें या चयन करें। ऐसा करने पर भगवान प्रसन्न होते हैं। - बिना नहाए पूजा के लिए फूल कभी ना तोड़े।

एक श्लोक से मिलेगा संपूर्ण रामायण पढऩे का पुण्य

रामायण भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। इसे पढऩे या सुनने मात्र से जन्म-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। वर्तमान की भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी के पास इतना समय नहीं होता कि वह संपूर्ण रामायण का पाठ या श्रवण कर सके। ऐसे में नीचे लिखे इस एक श्लोक का विधि-विधान पूर्वक जप करने से संपूर्ण रामायण पढऩे या सुनने का फल मिलता है। इसीलिए इस श्लोक को एक श्लोकी रामायण भी कहते हैं। मंत्र आदि राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्। वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।। बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्। पश्चाद् रावण कुम्भकर्ण हननम्, एतद्धि रामायणम्।। जप विधि - सुबह जल्दी नहाकर, साफ वस्त्र पहनकर भगवान श्रीराम के चित्र का विधिवत पूजन करें। - भगवान श्रीराम के चित्र के सामने आसन लगाकर इस श्लोक का जप करें। प्रतिदिन पांच माला जप करने से उत्तम फल मिलता है। - आसन कुश का हो तो अच्छा रहता है।

श्री हनुमान की उपासना

जीवन की सार्थकता तभी संभव है जब व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में बेहतरीन तालमेल द्वारा जिम्मेदारियों का सफलतापूर्वक निर्वहन किया जाए। इससे मिलने वाले यश, सफलता रूपी सुखद नतीजेे अपनों के साथ परायों के लिये भी अनुकूल व प्रेरणादायी हो। ऐसा ही संदेश देने वाला पर्व है - विजयादशमी। यह देवी की विजय का पर्व है। लौकिक परंपराओं में खासतौर पर यह श्रीराम की रावण पर विजय के लिये जाना जाता है। वहीं शास्त्रों में यह माता दुर्गा की शुंभ-निशुंभ आदि असुरों पर विजय की घड़ी माना गया है। शक्ति पूजा के इस विशेष अवसर पर देवी, शक्तिधर श्रीराम के अलावा एक और शक्ति स्वरूप देवता श्री हनुमान उपासना भी बहुत ही मंगलकारी मानी गई है। शास्त्रों के मुताबिक श्री हनुमान रुद्र अवतार ही नहीं बल्कि आदिशक्ति और श्रीराम के सेवक भी बताए गए हैं। यही कारण है श्री हनुमान की आराधना शक्ति, शिव व विष्णु अवतार श्री राम की प्रसन्नता व कृपा देकर जीवन के हर मोर्चे पर संकट और पीड़ा हर मनचाही सफलता देने वाली भी मानी गई है। जानते हैं विजयादशमी के अवसर पर श्री हनुमान की उपासना की आसान विधि - - हनुमान पूजा के लिये सूर्योदय