न हो मन में पाप..!

नवरात्रि में शक्ति की उपासना के साथ ही शारदीय नवरात्र में भगवान राम की भी आराधना की जाती है। असल में शक्ति और श्रीराम उपासना के पीछे संदेश यह भी है कि जीवन में कामयाबी को छूने के लिए बेहतर व मर्यादित चरित्र व व्यक्तित्व की शक्ति भी जरूरी है। इस तरह नवरात्रि व विजयादशमी शक्ति के साथ मर्यादा के महत्व की ओर इशारा करती है। खासतौर पर शक्ति के मद में रिश्तों, संबंधों और पद की मर्यादा न भूलकर दुर्गति से बचना ही दुर्गा पूजा की सार्थकता भी है। जगतजननी का यही स्वरूप व्यावहारिक जीवन में स्त्री को माना जाता है। यही कारण है कि वेद-पुराणों में 16 स्त्रियों को माता की तरह सम्मान देने का महत्व बताया गया है। कौन हैं ये स्त्रियां जानते हैं- स्तनदायी गर्भधात्री भक्ष्यदात्री गुरुप्रिया। अभीष्टदेवपत्नी च पितु: पत्नी च कन्यका।। सगर्भजा या भगिनी पुत्रपत्त्नी प्रियाप्रसू:। मातुर्माता पितुर्माता सोदरस्य प्रिया तथा।। मातु: पितुश्र्च भगिनी मातुलानी तथैव च। जनानां वेदविहिता मातर: षोडश स्मृता:।। जिसका अर्थ है कि वेद में नीचे बताई 16 स्त्रियां मनुष्य के लिए माताएं हैं- स्तन या दूध पिलाने वाली, गर्भधारण करने वाली, भोजन देने वाली, गुरुमाता, यानी गुरु की पत्नी, इष्टदेव की पत्नी, पिता की पत्नी यानी सौतेली मां, पितृकन्या यानी सौतेली बहिन, सगी बहन, पुत्रवधू या बहू, सासु, नानी, दादी, भाई की पत्नी, मौसी, बुआ और मामी।

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