वहां आते हैं हनुमानजी...
ऋषि-मुनियों ने जिसे तप कहा है, आज उसे अनुशासन कहा जा सकता है। अनुशासन एक सुव्यवस्था है। हनुमानजी अत्यधिक सुव्यवस्थित देवता हैं। सीताजी की खोज के लिए जब वे लंका पहुंचते हैं तो एक-एक भवन में ढूंढ़ने पर सीताजी नहीं मिलतीं। तभी उन्हें विभीषण का घर दिखता है।
तुलसीदासजी ने सुंदरकांड में लिखा है -
भवन एक पुनि दीख सुहावा। हरि मंदिर तहं भिन्न बनावा।।
फिर एक सुंदर महल दिखाई दिया। उसमें भगवान का मंदिर बना हुआ था। यहां एक बात समझने वाली है। विभीषण लंका में रहते थे और उनके घर में चार विशेषताएं थीं, इसीलिए हनुमानजी उनके जीवन में आ गए। पहली विशेषता ‘हरि मंदिर तहं भिन्न बनावां’ घर में भगवान के लिए एक पृथक स्थान होना चाहिए।
रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ। नव तुलसिका बृंद तहं देखि हरष कपिराइ।।
दूसरी, वह महल श्रीरामजी के आयुध के चिह्नें से अंकित था। तीसरा, वहां तुलसी के पौधे थे। चौथी बात, विभीषणजी के मकान पर मांगलिक चिह्न् बने हुए थे। हमारे निवास स्थान के द्वार पर शुभ चिह्न् होना चाहिए।
आंगन में तुलसी का पौधा था, तुलसी संतोष का पौधा है। यह देखकर हनुमानजी प्रसन्न हुए। हमारे निवास स्थान में या जीवन में जब कोई आए तो उसे प्रसन्नता होनी चाहिए। हम सब भी विभीषण की तरह इस संसार रूपी लंका में रहते हैं, लेकिन यदि हमारे घरों में भी ये विशेषताएं हों तो हनुमानरूपी भगवंत का प्रवेश होगा ही।
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