हनुमान चालीसा के दो दोहों

गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा की शुरुआत दो दोहों और गुरु के स्मरण से की है। लिखा है कि- श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनऊँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।। बुद्धिहीन तनु जानिक सुमिरौ पवन कुमार। बल, बुद्धि, विद्या देहु मोहि हरहु क्लेश विकार।। अर्थ है - श्री गुरु के चरण कमलों की रज से अपने मन रूपी दर्पण को साफ कर मैं श्री रघुनाथ के उस पावन यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फलों यानी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है। तुलसीदासजी ने दोहे की शुरुआत पहले गुरु को स्मरण कर की है। दरअसल, व्यावहारिक रूप से धूल से दर्पण साफ नहीं होता, बल्कि दर्पण से धूल साफ होती है। किंतु तुलसीदासजी की इस बात में भी जीवन को साधने के गहरे सूत्र हैं। उनका संकेत है कि जिस तरह हम दर्पण देखकर स्वयं के सौंदर्य को बेहतर ढंग से व्यवस्थित कर बाहर जाते हैं। ठीक उसी तरह से जीवन से जुड़े हर विषय की शुरुआत के लिए मन का साफ, मजबूत और संतुलित होना अहम है। जिसके लिये सत्य व ज्ञान से जुडऩे की अहमियत है, जिनकी यहां गुरु के रूप वंदना और आवाहन कर अहमियत बताई गई है। इसी तरह दोहे में श्री हनुमान के लिए रघुवर शब्द उपयोग किया है। जिसका अर्थ है श्रीराम, राम के भाई या रघुवंश के सदस्य। जिज्ञासा यह बनती है कि जब हनुमान रघुवंशी नहीं थे तो उनके लिए यह शब्द क्यों प्रयोग किया गया? तुलसीदासजी के मुताबिक इसका जिज्ञासा का हल यही मिलता है श्री हनुमान को माता सीता ने अपना पुत्र माना था, जो सुंदरकाण्ड की इन पंक्तियों से उजागर होता है - हैं सुत कपि सब तुम्हहिं समाना। सीता माता ने कहा - हे पुत्र, सभी वानर तुम्हारे जैसे होंगे। यह प्रसंग सीता खोज के दौरान श्री हनुमान के अशोक वाटिका पहुंचने के वक्त का है। इसी कारण रामचरित मानस में भी राम और सीता के पहले हनुमान को रघुवंशी मान वंदना की गई। इन सब बातों में अध्यात्म से जुड़े जीवन प्रबंधन के यही सूत्र है कि किसी लक्ष्य या काम को पाने की शुरुआत अपनी योग्यता ही नहीं बल्कि स्वयं की कमजोरियों को भी पहचान कर करें, जो बार-बार अभ्यास व गौर करने पर सामने आ जाती है। यही नहीं गुरु की शरण के लिए जरूरी नीचे लिखी 6 बातें भगवान की तरह कर्म से भी जोड़कर देखें तो फिर जीवन की सफलता तय है - - ईश्वर को पाने में मददगार हर जरिया और विषय की समझ विकसित करें। - जो भी विषय या वस्तु भगवान को पाने में अड़चने बने, उसे छोड़ देना। - ईश्वर मेरे रक्षक है, यह पक्का भरोसा रखें। - हमेशा भगवान से रक्षा की प्रार्थना करते रहें। - किसी भी तरह एक ही मकसद रखें कि भगवान प्रसन्न हों। - अपनी कमजोरी, अभाव को भगवान के सामने उजागर करना। अगर आज के तेज रफ्तार भरे जीवन में फौरन पाने की चाहत के चलते दोहे के आखिरी शब्द जो दायकु फल चारि प्रासंगिक हैं।

Comments

Popular posts from this blog

Chaturvedis' of Mathura

आम की लकड़ी का स्वस्तिक

चमत्कारिक मंदिर मेहंदीपुर बालाजी..!!!