होलिका दहन

होलिका दहन पर्व के कई मत, मतांतर हैं। इसे मुख्य रूप से हिरण्य कश्यप की बहन होलिका के दहन का दिन माना जाता है, वहीं शास्त्रों में कई तरह के मत दिए गए हैं। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिन होलाष्टक के बाद होलिका दहन की परंपरा है। प्राचीन समय से पंरपरा है कि खेत से नव अन्न को यज्ञ हवन किया जाता है, यह परंपरा गांवों में अभी भी प्रचलित है। सामान्यत: रंगों को इस त्यौहार के संबंध में भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के दहन की कथा प्रचलित है। इसके साथ ही होली से कई मान्यताएं प्रचलित हैं- शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के दौरान मानव मन-मस्तिष्क में काम भाव रहता है। भगवान शंकर द्वारा क्रोधाग्नि से काम दहन किया गया था, तभी से होलिका दहन की शुरुआत होना भी माना गया है। एक अन्य कथा के अनुसार होलिका दहन पर्व को राजा हिरण्य कश्यप की बहन होलिका की याद में भी मनाया जाता है। होलिका को अग्नि स्नान कर सकने का वरदान था, जिसने भक्त प्रहलाद को गोद में बैठाकर अग्नि स्नान किया था। इसमें प्रहलाद का बचना और होलिका का जलना एक पर्व का रूप बन गया। होली इस पर्व के पीछे वैज्ञानिक कारण भी मौजूद हैं। ऐसा माना जाता है कि अभी सर्दी जाने और गर्मी आने के दिन हैं। ऐसे में सर्द गर्म (शीत ज्वर) से अधिकाधिक लोगों के स्वास्थ्य खराब होते हैं। इसी के निवारणार्थ वातावरण में गर्मी लाने के लिए होलिका दहन किए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन आम्र मंजरी, चंदन का लेप लगाने व उसका पान करने, गोविंद पुरुषोत्तम के हिंडोलने में दर्शन करने से वैकुंठ में स्थान मिलना माना गया है। भविष्य पुराण में बताया गया कि नारद ने युधिष्ठिर से कहा कि इस दिन अभय दान देने व होलिका दहन करने से अनिष्ठ दूर होते हैं।

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