राम स्तुति का पाठ करें-रामचरितमानस

तरक्की के बिना जिंदगी थम सी जाती है। पूरी मेहनत और साधना के उपयोग के बाद भी अनेक बार सफलता दूर रह जाती है। ऐसी स्थितियां किसी भी योग्य व्यक्ति को तोड़ सकती है। किंतु कर्म के साथ धर्म को भी जीवन में उतारा जाए तो कोई भी आत्मविश्वास के साथ कार्य में सफलता को सुनिश्चित कर सकता है। क्योंकि धर्मशास्त्रों में कुछ ऐसे देव स्त्रोत बताए गए हैं। जिनका पाठ मानसिक परेशानियों से छुटकारा देकर मनचाहे फल देता है। ऐसा ही पाठ है रामचरितमानस जैसे पावन ग्रंथ में मुनि अत्रि द्वारा की गई श्री राम स्तुति। व्यावहारिक जीवन में इस राम स्तुति के पाठ से नौकरी, व्यवसाय या किसी भी कार्यक्षेत्र में सफलता और तरक्की के साथ ऊंचा पद मिलता है। यह राम स्तुति रामचरितमानस के अरण्यकाण्ड में आई है। हर रोज देवालय में श्रीराम की प्रतिमा की पंचोपचार (गंध, अक्षत, फूल, धूप, दीप) पूजा के साथ इस रामस्तुति का पाठ करें। नमामि भक्त वत्सलं । कृपालु शील कोमलं ॥ भजामि ते पदांबुजं । अकामिनां स्वधामदं ॥ निकाम श्याम सुंदरं । भवाम्बुनाथ मंदरं ॥ प्रफुल्ल कंज लोचनं । मदादि दोष मोचनं ॥ प्रलंब बाहु विक्रमं । प्रभोऽप्रमेय वैभवं ॥ निषंग चाप सायकं । धरं त्रिलोक नायकं ॥ दिनेश वंश मंडनं । महेश चाप खंडनं ॥ मुनींद्र संत रंजनं । सुरारि वृंद भंजनं ॥ मनोज वैरि वंदितं । अजादि देव सेवितं ॥ विशुद्ध बोध विग्रहं । समस्त दूषणापहं ॥ नमामि इंदिरा पतिं । सुखाकरं सतां गतिं ॥ भजे सशक्ति सानुजं । शची पतिं प्रियानुजं ॥ त्वदंघ्रि मूल ये नराः । भजंति हीन मत्सरा ॥ पतंति नो भवार्णवे । वितर्क वीचि संकुले ॥ विविक्त वासिनः सदा । भजंति मुक्तये मुदा ॥ निरस्य इंद्रियादिकं । प्रयांति ते गतिं स्वकं ॥ तमेकमभ्दुतं प्रभुं । निरीहमीश्वरं विभुं ॥ जगद्गुरुं च शाश्वतं । तुरीयमेव केवलं ॥ भजामि भाव वल्लभं । कुयोगिनां सुदुर्लभं ॥ स्वभक्त कल्प पादपं । समं सुसेव्यमन्वहं ॥ अनूप रूप भूपतिं । नतोऽहमुर्विजा पतिं ॥ प्रसीद मे नमामि ते । पदाब्ज भक्ति देहि मे ॥ पठंति ये स्तवं इदं । नरादरेण ते पदं ॥ व्रजंति नात्र संशयं । त्वदीय भक्ति संयुता ॥

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