बुलाएं हनुमानजी को अपने जीवन में...

भक्ति में हृदय की प्रमुखता होती है। बुद्धि से भक्ति करने में बाधा आएगी। प्रेम का स्थान हृदय है। हनुमानचालीसा की अंतिम चौपाई में तुलसीदासजी ने भगवान से निवेदन किया है कि हमारे हृदय में विराजिए। हनुमानचालीसा मन से आरंभ हुई थी। पहले ही दोहे में

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।

यहां निज मनु का अर्थ है कि मन रूपी दर्पण को गुरु के चरणों की धूल से साफ किया जाता है। तो मन को लगातार साफ, शुद्ध करें और हृदय में परमात्मा के लिए स्थान बनाएं। 40वीं चौपाई में लिखा गया है -

तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।

हे हनुमानजी! यह तुलसीदास सदा सर्वदा के लिए श्रीराम (हरि) का सेवक है। ऐसा समझकर आप उसके (तुलसीदास) हृदय में निवास करिए। इस चौपाई में ‘नाथ’ इसलिए कहा कि यदि हमको लगे कि हम अनाथ हैं, तो फिर हमारे भीतर बाबा हनुमंतलालजी की कृपा का अनुभव करें, हम अनाथ नहीं रहेंगे। आगे ‘डेरा’ शब्द का प्रयोग किया है।

गोस्वामीजी ने स्पष्ट मांग की है कि हे हनुमानजी! अकेले मत आना, पूरा डेरा-डंडा लेकर आना। डेरा-डंडा से मतलब है कि आप तो आएंगे ही, साथ में रामजी, सीताजी, लक्ष्मणजी पूरा डेरा लेकर आना। भक्त का हृदय भगवान का कैंप होता है। डेरे में जब सब होते हैं, तब जाकर डेरा पूरा लगता है और एक दिन में नहीं उठता। इसलिए कहा है कि महाराज डेरा लेकर आना।

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