हनुमानजी से सीखें गलत का विरोध


सहमति और विरोध की जीवन में अलग-अलग स्थिति में जरूरत पड़ती है, लेकिन यदि गलत में सहमति हो जाए और सही का विरोध हो जाए तो नुकसान भी उठाना पड़ता है। कहां सहमति देना और कहां विरोध करना है, इसमें हनुमानजी बहुत जागरूक थे।


जब सुंदरकांड में वे लंका प्रवेश के समय लंका की सुरक्षा अधिकारी लंकिनी के सामने आते हैं, तो मच्छर के समान छोटा-सा आकार लेकर हनुमानजी लंका में प्रवेश कर रहे होते हैं और लंकनी उन्हें पकड़ लेती है। तुलसीदासजी ने लिखा है-

जानेहि नहीं मरम् सठ मोरा। मोर अहार जहां लगि चोरा।।


हे मूर्ख! तूने मेरा भेद नहीं जाना। जितने चोर हैं, वे सब मेरे आहार हैं। लंकिनी ने हनुमानजी को चोर बोला। बस, यहीं से हनुमानजी ने विरोध का स्वर प्रकट किया। उन्होंने लंकिनी से कहा- तुम मुझे क्या चोर बता रही हो, दुनिया का एक बड़ा चोर रावण हमारी मां सीता को चुरा लाया है।


जब सुरक्षा व्यवस्था चोरों की ही रक्षा करने लग जाए, तब हनुमान का विरोध आरंभ होता है। हनुमानजी ने लंकिनी को एक मुक्का मारा और उसके मुंह से रक्त निकल आया। यह उनका सीधा विरोध था। गलत के प्रति आवाज उठाना, अनुचित का प्रतिकार करना हनुमानजी के चरित्र में था।


हम उनसे सीखें कि जब गलत बात हो तो हम विरोध में आगे खड़े हों और सही बात के समर्थन में पीछे न हटें। आमतौर पर लोग तटस्थ हो जाते हैं, इसीलिए उनकी अच्छाई के नीचे भी बुराई पनप जाती है

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