जगतजननी दुर्गा और मधुकैटभ युद्ध

धर्मशास्त्र और मानव सभ्यता का इतिहास उजागर करते हैं कि धर्म रक्षा और अधर्म के नाश के लिये अनेक बड़े युद्ध लड़े गए। राम-रावण हो या महाभारत युद्ध दोनों ने ही जीवन में धर्म, सत्य पालन का जो संदेश दिया, वह युग-युगान्तर से मानव को सुख और सफल जीवन की राह बताता है।

वैसे युद्ध युक्तियों, रणनीतियों और अस्त्र-शस्त्र कलाओं के बूते लड़े जाते हैं। किंतु धर्मशास्त्रों में ही अनेक ऐसी कलाओं का वर्णन भी मिलता है, जिनके द्वारा बिना हथियार युद्ध कर शत्रु को पस्त करने का वर्णन मिलता है।

शास्त्रों के मुताबिक शरीर, हाव-भाव, व्यवहार से जुड़ी अनेक कलाएं है, जिनकी गणना भी संभव नहीं। किंतु मुख्य रूप से 64 कलाएं प्रसिद्ध है। ऐसी ही कलाओं में से एक कला के उपयोग द्वारा जगत कल्याण के लिए एक युद्ध जीता गया।

पुराणों के मुताबिक यह युद्ध जगतजननी दुर्गा और मधुकैटभ के बीच हुआ। जिसमें भगवान विष्णु द्वारा मधुकैटभ दैत्यों से बाहुयुद्ध करने का वर्णन है, जो ऐसी कला का अंग है, जिसे युद्ध या कुश्ती कला के नाम से भी जाना जाता है।

शरीर के अंगो की खींचतान और जोड़ों पर प्रहार करना इस कुश्ती कला की खूबी है। इसी कला के एक रुप बाहुयुद्ध में शस्त्रों का उपयोग न कर मात्र मुष्टि यानी मुक्कों द्वारा प्रहार किया जाता है। द्वापर युग में भगवान कृष्ण द्वारा भी इसी कला से कंस, चाणूर जैसे दैत्यों का वध किया गया। शास्त्रों में यह युद्ध कला मरनेवाले को अपयश का भागी और जीतने वाले को अपार यश देने वाली मानी गई है। क्योंकि यह दुश्मन के अहं का अंत करती है। इसलिए शत्रु के प्राणों के अंत होने तक बाहुयुद्ध करने पर जोर दिया गया है।

इसी तरह का बाहुयुद्ध कर भगवान विष्णु ने मधु-कैटभ का अंत कर जगतजननी की कृपा से जगत के दु:खों का नाश किया। जिसका वर्णन सप्तशती में मिलता है। लिखा है कि -

मधुकैटभौ दुरात्मानावतिवीर्यपराक्रमौ।

क्रोधरक्तेक्षणावत्तुं ब्रह्माणं जनितोद्मौ।

समुत्थाय ततस्ताभ्यां युयुधे भगवान् हरि:।

पञ्चवर्षसहस्त्राणि बाहुप्रहरणो विभु:।।

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