शिव का मृत्यंञ्जय स्वरुप

शिव को अविनाशी भी पुकारा जाता है। यह शब्द और भाव ही शिव की अनंत शक्तियों, मंगलमयी रूप व नाम की महिमा प्रकट करता है। जब शिव ने विषपान किया तो नीलकंठ बने, गंगा को सिर पर धारण किया तो गंगाधर। वहीं भूतों के स्वामी होने से भूतभावन भी कहलाते हैं। इसी कड़ी में शिव का एक अद्भुत स्वरूप हैं - मृत्युंजय। माना गया है कि इस शिव स्वरूप की दिव्य शक्तियों के आगे काल भी पराजित हो जाता है। मृत्यु्ञ्जय का मतलब भी होता है - मृत्यु को जीतने वाला। काल के अलावा यह शिव शक्ति सभी सांसारिक पीड़ा व भय को हर लेती है। कैसा है मृत्यंञ्जय स्वरूप? शास्त्रों के मुताबिक शिव का मृत्यंञ्जय स्वरुप अष्टभुजाधारी है। सिर पर बालचन्द्र धारण किए हुए हैं। कमल पर विराजित हैं। ऊपर के हाथों से स्वयं पर अमृत कलश से अमृत धारा अर्पित कर रहें हैं। बीच के दो हाथों में रुद्राक्ष माला व मृगमुद्रा। नीचे के हाथों में अमृत कलश थामें हैं। कैसे मृत्युञ्जय के आगे काल भी हो जाता है पस्त ? महामृत्युञ्जय के काल को पराजित करने के पीछे शास्त्रों के मुताबिक दर्शन यह भी है कि असल में यह स्वरुप आनंद, विज्ञान, मन, प्राण व वाक यानी शब्द, वाणी, बोल इन पांच कलाओं का स्वामी है। व्यावहारिक जीवन में भी जो इंसान इन कलाओं से दक्ष और पूर्ण हो जाता है, वह सुखी, निरोगी, पीड़ा और तनाव मुक्त हो लंबी आयु को प्राप्त करता है। यही नहीं माना जाता है कि इन पांच विद्याओं की शक्ति के बूते सृष्टि का चक्र चलता रहता है यानी ये संसार को विनाश से बचाती है। इस तरह आनंद व प्राण स्वरूप महामृत्युञ्जय शिव की उपासना से जुड़ी ऐसी आस्था और विश्वास के आगे मौत ही मात नहीं खाती, बल्कि निर्भय व निरोगी जीवन भी प्राप्त होता है। जिसके लिए महामृत्युञ्जय मंत्र का स्मरण बेहद असरदार माना गया है।

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