कृष्ण के कुछ ऐसे नाम और उनके अर्थ
व्यासजी ने धृतराष्ट्र से कहा तुम मेरी बात सुनो। तुम श्रीकृष्ण के प्यारे हो। तुम्हारा संजय जैसा दूत है। जो तुम्हे कल्याण के मार्ग पर ले जाएगा। यदि तुम संजय की बात सुनोगे तो यह तुम्हे जन्म-मरण सबके भय से मुक्ति दिलवाएगा। तुम्हे क ल्याण और स्वर्ग के मार्ग पर ले जाएगा। जो लोग कामनाओं में अंधे के समान अपने कर्मों के अनुसार बार-बार मृत्यु के मुख में जाते हैं। तब धृतराष्ट्र ने संजय से पूछा- तुम मुझे कोई निर्भय मार्ग बताओ, जिससे चलकर मैं श्रीकृष्ण को पा सकूं और मुझे परमपद पाप्त हो जाए। संजय ने कहा-अजितेन्द्रिय भगवान को प्राप्त करने के लिए इंद्रियों पर जीत जरूरी है। इन्द्रियों पर निश्चल रूप से काबू रखना इसी को विद्वान लोग ज्ञान कहते हैं। धृतराष्ट्र ने कहा- संजय तुम एक बार फिर श्रीकृष्णचंद्र के स्वरूप वर्णन करो, जिससे कि उनके नाम और कर्मों का रहस्य जानकर मैं उन्हें प्राप्त कर सकूं। संजय ने कहा- मैंने श्रीकृष्ण के कुछ नामों की व्युत्पति सुनी है। उसमें से जितना मुझे स्मरण है। वह सुनाता हूं। श्रीकृष्ण तो वास्तव में किसी प्रमाण के विषय नहीं है। समस्त प्राणियों को अपनी माया से आवृत किए रहने और देवताओं के जन्मस्थान होने के कारण वे वासुदेव हैं। व्यापक तथा महान होने के कारण माधव है। मधु दैत्य का वध होने के कारण उसे मधुसूदन कहते हैं। कृष धातु का अर्थ सत्ता है और ण आनंद का वाचक है। इन दोनों भावों से युक्त होने के कारण यदुकुल में अवर्तीण हुए श्रीविष्णु कृष्ण कहे जाते हैं। आपका नित्य आलय और अविनाशी परमस्थान हैं, इसलिए पुण्डरीकाक्ष कहे जाते हैं। दुष्टों के दमन के कारा जनार्दन है। इनमें कभी सत्व की कमी नही होती इसलिए सातत्व हैं। उपनिषदों से प्रकाशित होने के कारण आप आर्षभ हैं। वेद ही आपके नेत्र हैं इसलिए आप वृषभक्षेण हैं। आप किसी भी उत्पन्न होने वाले प्राणी से उत्पन्न नहीं होते इसलिए अज है। उदर- इंद्रियोके स्वयं प्रकाशक और दाम -उनका दमन करने वाले होने से आप दामोदर है। हृषीक, वृतिसुख और स्वरूपसुख भी कहलाते हैं। ईश होने से आप हृषीकेश कहलाते है। अपनी भुजाओं से पृथ्वी और आकाश को धारण करने वाले होने से आप दामोदर है। अपनी भुजाओं से पृथ्वी और आकाश को धारण करने वाले होने से आप महाबाहु हैं।आप कभी अध: क्षीण नहीं होते, इसलिए अधोक्षज है। नरो के अयन यानी आश्रय होने के कारण उन्हें नारायण कहा जाता है। जो सबसे पूर्ण और सबका आश्रय हो, उसे पुरुष कहते है। उनमें श्रेष्ठ होने से उत्पति को पुरुषोत्तम हैं। आप सत और असत सबकी उत्पति और ल के स्थान हैं तथा सर्वदा उन सबको जानते हैं, इसलिए सर्व हैं। श्रीकृ ष्ण सत्य में प्रतिष्ठित हैं और सत्य से भी सत्य है। वे पूरे विश्व में प्याप्त है इसलिए विष्णु हैं, जय करने के कारण विष्णु हैं नित्य होने के कारण अनंत हैं और गो इंद्रियो के ज्ञाता होने से गोविंद है।
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