कलियुग

शास्त्रों के अनुसार चार युग बताए गए हैं। ये चार युग हैं सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग। अभी तक तीन युग समाप्त हो चुके हैं और अब कलियुग चल रहा है। ऐसी मान्यता है कि कलियुग के अंतिम समय में भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा। इसके बाद ही सृष्टि का विनाश होगा। श्रीमद्भागवत के अनुसार जब पांडवों द्वारा स्वर्ग की यात्रा प्रारंभ की गई तब वे समस्त राज्य और प्रजा के भरण-पोषण और सुरक्षा का भार परिक्षित को सौंप गए। राजा परिक्षित के जीवन में ही द्वापर युग की समाप्ति हुई और कलियुग का प्रारंभ हुआ। कथा के अनुसार जब कलियुग का आगमन हुआ तब चारों ओर पाप, अत्याचार और अधर्म बढऩे लगा। इस प्रकार बढ़ते कलियुग के प्रभाव को समाप्त करने के लिए राजा परिक्षित कलियुग को नष्ट करने के लिए धनुष पर बाण चढ़ा लिया। जब कलियुग को ऐसा प्रतीत हुआ कि राजा परिक्षित से जीतना संभव नहीं है। अत: उसने राजा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और खुद के निवास करने के लिए स्थान मांगा। इस प्रकार अपनी शरण में कलियुग को परिक्षित ने पांच स्थान बताए जहां कलियुग को निवास करना था। ये स्थान हैं- झूठ, मद, काम, वैर और रजोगुण। इन पांच स्थानों का अर्थ यही है कि जहां-जहां झूठ होगा, नशा होगा, वैश्यावृत्ति होगी, वैर-क्रोध होगा, सोना या धन होगा वहीं कलियुग निवास करता है। अत: इन पांचों से हमें दूर रहना चाहिए। जो भी व्यक्ति इनके मोह में फंस जाता है उसका नाश होना निश्चित है। यह सभी पाप को बढ़ाने वाले ही है। इनके प्रभाव में आने के बाद व्यक्ति के परिवार और पुण्य कर्म नष्ट हो जाते हैं।

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