भगवान श्री कृष्ण लीलाधर हैं
भगवान श्री कृष्ण लीलाधर हैं। उनकी हर लीला के पीछे एक समान जीवन सूत्र जरूर छिपा है और वह है- कर्म। गोकुल में ग्वालों के संग बाललीला हो या कुरूक्षेत्र में वीर योद्धा अर्जुन को गीता उपदेश द्वारा श्रीकृष्ण ने कर्म से जुड़े अनेक पहलुओं को ही सफल जीवन का सार बताया।
ऐसे ही कर्मयोगी श्रीकृष्ण के ही परम भक्त हैं शनिदेव। शास्त्रों के मुताबिक शनि ने कृष्ण दर्शन के लिए घोर तप किया। तब कृष्ण ने मथुरा के पास कोकिला वन में प्रकट होकर आर्शीवाद दिया कि शनि भक्ति करने वाला हर व्यक्ति दरिद्रता, पीड़ा व संकटमुक्त रहेगा।
असल में शनि भक्ति भी श्रीकृष्ण की भांति सार्थक कर्म, बोल व विचारों को अपनाने का संदेश देती है। क्योंकि माना जाता है कि अच्छे-बुरे कर्म व विचार ही शनि के दण्ड का आधार है। यही कारण है कि शनि की प्रसन्नता के लिए शनि दशाओं में श्रीकृष्ण भक्ति व स्मरण बहुत ही फलदायी होते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण के किसी भी मंत्र का स्मरण शनि कृपा से सफलता व सुख के लिए की गई हर कोशिशों की बाधाओं व अभावों को दूर करता है। इसलिए 15 नवम्बर से बदली हुई शनि दशा में हर राशि के व्यक्ति के लिए यहां बताए जा रहे श्रीकृष्ण मंत्र का ध्यान शनि के अनिष्ट प्रभावों से रक्षा करने वाला माना गया है -
- हर रोज प्रात: जल में काले तिल डालकर स्नान के बाद यथासंभव पीले वस्त्र पहनें।
- यथासंभव देवालय में श्रीकृष्ण की काले पाषाण की प्रतिमा को दूध मिले जल से स्नान कराएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान के बाद श्रीकृष्ण को केसर मिले या पीले चंदन, पीले फूल, तुलसी दल चढ़ाने के साथ माखन-मिश्री का भोग लगाएं।
- चंदन धूप व गाय के घी का दीप जलाकर नीचे लिखें विष्णु अवतार श्रीकृष्ण के इस मंत्र का ध्यान करें या तुलसी के दानों की माला से कम से कम 108 बार जप कर श्रीकृष्ण की आरती करें -
ऊँ श्रीं (श्री:) श्रीधराय त्रैलोक्यमोहनाय नम:
- पूजा, जप व आरती के बाद श्रीकृष्ण से कर्मदोषों की क्षमा मांग शनि दोष से रक्षा की भी प्रार्थना कर प्रसाद ग्रहण करें।
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